________________
जैन धर्म-दर्शन का साहित्य
ब्राह्मण धर्म-दर्शन का आधारभूत साहित्य संस्कृत वेद तथा वैदिक ग्रन्थ हैं। वौद्ध धर्म-दर्शन का आधार पालि त्रिपिटक तथा तन्मूलक साहित्य है। जैन धर्म-दर्शन प्राकृत आगमों एवं तदाधारित ग्रन्थों पर अवलम्बित हैं। आगम :
आगम से हमारा तात्पर्य आचारांगादि अंगग्रन्थों तथा औपपातिकादि अंगबाह्य ग्रन्थों से है। स्वयं महावीर ने कुछ नहीं लिखा। महावीर के उपदेशों अथवा विचारों का सार उनके गणधरों अर्थात् प्रधान शिष्यों ने शब्दबद्ध किया । जब हम वर्तमान आगमों को महावीर-प्रणीत कहते हैं तो इसका तात्पर्य यही है कि अर्थरूप से इनका प्ररूपण भगवान् महावीर ने किया तथा ग्रन्थरूप से गणधरादि ने । आगमों का प्रामाण्य गणधरादि की अपेक्षा से नहीं, अपितु महावीर की वीतरागता की अपेक्षा से है । आगम-रचना दो प्रकार के पुरुषों द्वारा हुई है : १. गणधर अर्थात् भगवान् महावीर के साक्षात् प्रमुख शिष्य तथा २. स्थविर अर्थात् अन्य वरिष्ठ आचार्य । गणधरकृत आगम अंग अथवा अंगप्रविष्ट तथा स्थविरकृत आगम अनंग अथवा अंगबाह्य कहलाते हैं। वर्तमान में उपलब्ध आगमों का सम्पादन अथवा संस्करण देवद्धिगणि क्षमाश्रमण ने किया था।
कालक्रम से स्मृति का ह्रास होते देख महावीर-निर्वाण के लगभग १६० वर्ष बाद, बारह वर्ष का लम्बा दुष्काल समाप्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org