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________________ जैन धर्म-दर्शन उपनय-हेतु का धर्मी में उपसंहार करना उपनय है।' जहाँ साध्य रहता है वह धर्मी कहलाता है। इस पर्वत में अग्नि है। यहाँ अग्नि साध्य है और पर्वत धर्मी है, क्योकि अग्निरूप साध्य पर्वत में रहता है। हेतु का धर्मी में उपसंहार करना अर्थात् “यह हेतु इस धर्मी में है। इस प्रकार के वचन का प्रयोग करना उपनय है। अग्नि की सिद्धि के लिए धूम हेतु दिया गया है। 'इस पर्वत में धूम है' यह उस हेतु का उपसंहार है । यही उपनय है। निगमन-साध्य का पुनर्कथन निगमन है । प्रतिज्ञा के समय जो साध्य का निर्देश किया जाता है उसको उपसंहार के रूप में पुनः दोहराना निगमन कहलाता है। यह अन्तिम निर्णयरूप कथन है । इसलिए यहाँ अग्नि है' यह कथन निगमन का उदाहरण है। इन पाँचों अवयवों को ध्यान में रखते हुए परार्थानुमान का पूर्ण रूप इस प्रकार होगा____ इस पर्वत में अग्नि है, क्योंकि इसमें धूम है, जहाँ-जहाँ धूम होता है वहाँ-वहाँ अग्नि होती है-जैसे पाकशाला (साधर्म्य दृष्टान्त) तथा जहाँ पर अग्नि नहीं होती वहाँ पर धूम नहीं होताजैसे जलाशय ( वैधर्म्य दृष्टान्त ), इस पर्वत में धूम है, इसलिए यहाँ अग्नि है। __आगम -आप्त पुरुष के वचन से आविर्भूत होने वाला अर्थ १. हेतोः साध्यमिण्युपसंहरणमुपनयः यथा धूमश्चात्रप्रदेशे । -प्रमाणनयतत्त्वालोक, ३.४६-५० , २. साध्यधर्मस्य पुननि गमनम । यथा तस्मादग्निरत्र ।। -वही, ३.५१-५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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