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________________ ज्ञानमीमासा संवेदन आगम है।' आप्त पुरुष का अर्थ है तत्त्व को यथावस्थित जानने वाला व तत्त्व का यथावस्थित निरूपण करने वाला । रागद्वेषादि दोषों से रहित पुरुष ही आप्त हो सकता है, क्योंकि वह मिथ्यावादी नहीं हो सकता। ऐसे पुरुष के वचनों से होने वाला ज्ञान आगम कहलाता है। उपचार से आप्त के वचनों का संग्रह भी आगम है। परार्थानुमान और आगम में यही अन्तर है कि परार्थानुमान के लिए आप्तत्व आवश्यक नहीं है, जब कि आगम के लिए आप्तत्व अनिवार्य है। अमुक पुरुष आप्त है इसीलिए उसके वचन प्रमाण हैं। उनके प्रामाण्य के लिए अन्य कोई हेतु नहीं। परार्थानुमान के लिए हेतु का आधार आवश्यक है। हेतु की सचाई पर ज्ञान की सचाई निर्भर है। लौकिक और लोकोत्तर के भेद से आप्त दो प्रकार के होते हैं। साधारण व्यक्ति लौकिक आप्त हो सकते हैं। लोकोत्तर आप्त तीर्थंकरादि विशिष्ट पुरुष ही होते हैं। ____ आगमों, शास्त्रों अथवा ग्रन्थों की प्रामाणिकता का आधार क्या है ? क्या किसी ग्रन्थ को आगम या शास्त्र कह देने मात्र से वह स्वतः प्रामाणिक हो जाता है ? अथवा किसी ग्रन्थ की गणना शास्त्रों में नहीं की जाने से क्या उसकी प्रामाणिकता स्वतः समाप्त हो जाती है ? किसी ग्रन्थ को शास्त्र क्यों कहा जाता है ? इसलिए कि वह प्रामाणिक है ? यदि प्रामाणिकता के कारण किसी ग्रन्थ को शास्त्र की संज्ञा दी जाती है तो गायों की सख्या असीमित हो जायेगी क्योंकि विश्व में ऐसे जनक ग्रन्थ लिखे गये हैं, लिख जा रहे हैं और लिखे जायेंगे जो पूर्णतः प्रामाणिक हैं अर्थात् जिनकी प्रामाणिकता सर्वसम्मत है। उदाहरण के तौर पर भाषा, गणित, विज्ञान, भूगोल, १. आप्तवचनादाविभूतमर्थ संवेदनमागमः । -वही, ४.१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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