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स्पष्टता का
तर्क, अनुमान
होने पर
स्मृति
शानमीमांसा स्पष्टता का अभाव है वह परोक्ष है। परोक्ष के पांच भेद हैंस्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ।'
स्मृति-वासना का उद्बोध होने पर उत्पन्न होने वाला 'वह' इस आकार वाला ज्ञान स्मृति है। स्मृति अतीत के अनुभव का स्मरण है। किसी ज्ञान या अनुभव की वासना की जागृति से उत्पन्न होने वाला ज्ञान स्मृति कहलाता है। वासना की जागृति कैसे होती है ? समानता, विरोध आदि अनेक कारणों से वासना का उद्बोध हो सकता है। चूंकि स्मृति अतीत के अनुभव का स्मरण है इसलिए 'वह' इस प्रकार का ज्ञान स्मृति की विशेषता है। __ भारतीय दर्शनशास्त्र के 'इतिहास में जैन दर्शन हो ऐसा है जो स्मृति को प्रमाण मानता है । स्मृति को प्रमाण न मानने वाले दार्शनिक खास दोष यह देते हैं कि स्मृति का विषय अतीत का अर्थ है । वह तो नष्ट हो चुका। उसके ज्ञान को इस समय प्रमाण कसे कहा जा सकता है ? जिस ज्ञान का कोई विषय नहीं, जिस अनुभव का कोई वर्तमान आधार नहीं, वह उत्पन्न ही कैसे हो सकता है ? बिना विषय के ज्ञानोत्पत्ति कैसे सम्भव है ? इसका उत्तर यह है कि ज्ञान के प्रामाण्य का आधार वस्तु की यथार्थता है, न कि उसकी वर्तमानता। पदार्थ किसी भी समय उपस्थित क्यों न हो, यदि ज्ञान उसकी वास्तविकता का ग्रहण करता है तो वह प्रमाण है। वर्तमान, भूत
और भविष्य किसी भी काल में रहने वाला पदार्थ ज्ञान का विषय बन सकता है। यदि वर्तमानकालीन पदार्थ को ही ज्ञान का विषय माना जाय तो अनुमान भी प्रमाण की कोटि से १. स्मरणप्रत्यभिज्ञानतर्वानुमानागमभेदतस्तत् पंचप्रकारम् ।-बही,३.२. २. वासनोबोधहेतुका तदित्याकारा स्मृतिः ।-प्रमाणमीमांसा, १.२.३.
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