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तत्त्वविचार
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सत् हैं । इनको न किसी ने बनाया है और न कोई मिटा सकता है । ये हमेशा से हैं और हमेशा रहेंगे। इनमें सदैव परिवर्तन होते रहते हैं किन्तु ये सर्वथा नष्ट नहीं होते । इनकी न एकदम नई उत्पत्ति ही होती है और न सर्वथा विनाश ही । ये उत्पत्ति और विनाश में भी स्थिर रहते हैं। इनकी उत्पत्ति. विनाश और स्थिरता के लिए ये स्वयं जिम्मेदार हैं, अन्य कोई शक्ति नहीं।
विश्व का आकार नियत एवं अपरिवर्तनीय है । इसके नाप के लिए रज्जु' का आधार लिया जाता है। विश्व की ऊंचाई १४ रज्जुप्रमाण है । चौड़ाई उत्तर-दक्षिण में ७ रज्जु है । पूर्वपश्चिम में सबसे नीचे ७ रज्जु है, फिर क्रमश: घटते-घटते ठीक मध्यभाग में अर्थात् सात-रज्जु की ऊ चाई पर १ रज्जु रह जाती है, फिर धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते शेष अर्धभाग के मध्य में ५ रज्जु हो जाती है, फिर क्रमश: घटते-घटते सबसे ऊपर १ रज्जु रह जाती है । विश्व का घनाकार नाप ३४३ रज्जुप्रमाण है। यह दिगम्बर-मत है। ___ श्वेताम्बर-मतानुसार उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम दोनों ओर की चौड़ाई क्रमशः घटती-बढ़ती है किन्तु विश्व का घनाकार नाप ३४३ रज्जुप्रमाण ही रहता है ।
विश्व तीन भागों में विभक्त है : अधः, मध्य और ऊर्ध्व । अधोभाग मेरुपर्वत के समतल से ६०० योजन" नीचे से १. रज्जु की परिभाषा के लिए देखें-त्रिलोकप्रज्ञप्ति, १. ६३-१३२. २. देखें-त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थ. ३. देखें-व्याख्या प्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थ. ४. मेपर्वत के वर्णन के लिए देखें-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का चौथा
वक्षस्कार. ५. योजन के स्वरूप के लिए देखें-अनुयोगद्वार का क्षेत्रप्रमाण प्रकरण.
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