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________________ २२८ जैन धर्म-दर्शन प्रारंभ होता है। समतल से ६०० योजन ऊचे से ऊर्ध्वभाग शुरू होता है। ऊर्ध्वलोक से नीचे और अधोलोक से ऊपर १८०० योजन का मध्यभाग अर्थात् मध्यलोक है। अधोलोक का आकार औंधे किये हुए शराव के समान है अर्थात् नीचे-नीचे विस्तीर्ण है। मध्यलोक थाली के समान गोलाकार है अर्थात् समान लम्बाई-चौड़ाई वाला है । ऊर्ध्वलोक आकार में पखावज के समान है। अधोलोक : ____ अधोलोक में सात भूमियां हैं जिनमें नारकियों के निवास स्थान अर्थात् नरक हैं । ये भूमियां समश्रेणी में नहीं हैं अपितु एक-दूसरे के नीचे हैं । इनकी लम्बाई-चौड़ाई एक-सी नहीं है। नीचे-नीचे की भूमियां ऊपर-ऊपर की भूमियों से अधिक लम्बीचौड़ी हैं । ये भूमियां एक-दूसरे के नीचे है किन्तु एक-दूसरे से सटी हुई नहीं हैं । बीच-बीच में काफी अन्तर है । इस अन्तराल में घनोदधि, वात और आकाश हैं।' प्रत्येक पृथ्वी के नीचे क्रमशः धन जल, धन वात, तनु वात और आकाश है। इसी बात को व्याख्याप्रज्ञप्ति में इस प्रकार कहा गया है : त्रसस्थावरादि प्राणियों का आधार पृथ्वी है, पृथ्वी का आधार उदधि है, उदधि का आधार वायु है और वायु का आधार आकाश है । वायु के आधार पर उदधि और उदधि के आधार पर पृथ्वी कैसे टिक सकती है ? इसका समाधान इस प्रकार किया गया है : एक मशक में हवा भर कर ऊपर से उसे बांध दिया जाय। बाद में उसे बीच से बांध कर ऊपर का मुंह खोल दिया जाय। इससे ऊपर के भाग की हवा निकल जायगी। फिर उस खाली भाग में पानी भर कर ऊपर से मुंह बांध दिया १. तत्त्वार्थसूत्र, ३.१-२. २. सर्वार्थसिद्धि, ३. १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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