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________________ तत्त्वविचार १९५ एक अव पव से दूसरे अवयव में स्निग्धत्व या रूक्षत्व के दो, तीन, चार, यावत् अनन्त गुण अधिक होने पर भी बन्ध हो जाता है, केवल एक अंश अधिक होने पर बन्ध नहीं होता। दिगम्बर मान्यता के अनुसार केवल दो गुण अधिक होने पर ही बन्ध माना जाता है । एक अवयव से दूसरे अवयव में स्निग्धत्व या रूक्षत्व तीन, चार यावत् अनन्त गुण अधिक होने पर बन्ध नहीं माना जाता । श्वेताम्बर परम्परा की धारणा के अनुसार दो, तीन आदि गुणों के अधिक होने पर जो बन्ध का विधान है वह सदृश अवयवों के लिए ही है, असदृश अवयवों के लिए नहीं। दिगम्बर धारणा के अनुसार यह विधान सदृश और असदृश दोनों प्रकार के अवयवों के लिए है। श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं के बन्ध-विषयक मतभेद का सार' निम्नलिखित है : श्वेताम्बर-परम्परा विसदृश नहीं the ho गुण सदश १-जघन्य+जधन्य२-जघन्य+एकाधिक ३-जघन्य+द्वयधिक ४-जघन्य + अधिकादि ५--जघन्येतर+ समजघन्येतर नहीं ६-जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं । ७-जघन्येतर + द्वयधिक जघन्येतर है ८-जघन्येतर + व्यधिकादि जघन्येतर है। to the to to to sto do १. तत्त्वार्थसूत्र (पं० सुखलाल संघवी), पृ० २०२-२०३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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