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________________ जैन धर्म-दर्शन १. जघन्य गुणवाले अवयवों का बन्ध नहीं होता। २. समानगुण होने पर सदृश अर्थात् स्निग्ध से स्निग्ध . अवयवों का तथा रूक्ष से रूक्ष अवयवों का बन्ध नहीं होता। ३. द्वयधिकादि गुणवाले अवयवों का बन्ध होता है । बन्ध के लिए सर्वप्रथम बात यह है कि जिन परमाणुओं में स्निग्धत्व या रूक्षत्व का अंश अर्थात् गुण जघन्य हो उनका पारस्परिक बंध नहीं हो सकता । इसका अर्थ यह हुआ कि मध्यम और उत्कृष्ट गुणवाले स्निग्ध और रूक्ष अवयवों का पारस्परिक बंध हो सकता है । इस सिद्धांत को पुनः सीमित करते हुए दूसरी बात कही गई। उसके अनुसार समान गुणवाले सदृश अवयवों का पारस्परिक बन्ध नहीं हो सकता । इसका अर्थ यह हुआ कि असमान गुणवाले सदेश अवयवों का बन्ध हो सकता है। इसका निषेध करते हुए तीसरा सिद्धान्त स्थापित किया गया। इसके अनुसार असमान गुणवाले सदृश अवयवों में भी यदि एक अवयव का स्निग्धत्व या रूक्षत्व दो गुण, तीन गुण आदि अधिक हो तो उन दो सदृश अवयवों का बन्ध हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि एक अवयव के स्निग्धत्व या रूक्षत्व की अपेक्षा दूसरे अवयव का स्निग्धत्व या रूक्षत्व केवल एक गुण अधिक हो तो उनका बन्ध नहीं हो सकता, अन्यथा उनका बन्ध हो सकता है। बन्ध की इस चर्चा का जब और स्पष्ट विवेचन किया जाता है तब हमारे सामने दो परम्पराएं उपस्थित होती हैं । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार दो परमाणु जब जघन्य गुणवाले हों तभी उनका बन्ध निषिद्ध है। यदि एक परमाणु जघन्य गुण वाला हो और दूसरा जघन्यगुण न हो तो उनका बन्ध हो सकता है । दिगम्बर मान्यता के अनुसार जघन्य गुणवाले एक भी परमाणु के रहते हुए बन्ध नहीं होता । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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