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________________ जैन धर्म-दर्शन गुण नहीं नहीं नहीं नहीं दिगम्बर-परम्परा सदृश विसदृश १-जघन्य+जघन्य २-जघन्य+ एकाधिक ३-जघन्य+द्वधिक ४-जघन्य+यधिकादि ५-अघन्येतर+समजघन्येतर नहीं ६-जघन्ये तर+एकाधिक जघन्येतर नहीं ७--जघन्येतर+द्वयधिक जघन्येतर है ८-जघन्येतर +त्र्यधिकादि जघन्येतर नहीं बन्ध हो जाने पर कौन से परमाणु किन परमाणुओं में परिणत होते हैं ? सदृश और विसदृश परमाणुओं में से कौन किसको अपने में परिणत करता है ? समान गुणवाले सदृश अवयवों का तो बन्ध होता ही नहीं। विसदृश बन्ध के समय कभी एक सम दूसरे सम को अपने रूप में परिणत कर लेता है, कभी दूसरा सम पहले को अपने रूप में बदल लेता है । द्रव्य, क्षेत्रादि का जैसा संयोग होता है वैसा हो जाता है । इस प्रकार का बन्ध एक प्रकार का मध्यम बन्ध है। अधिक गुण और हीनगुण के बन्ध के समय अधिक गुणवाला हीन गुणवाले को अपने रूप में परिणत कर लेता है। जिस परम्परा में समान गुण का पारस्परिक बन्ध कतई नहीं होता वहाँ अधिकगुण हीनगुण को अपने रूप में परिणत कर लेता है, यही मानना काफी है।। पुद्गल द्रव्य के अणु और स्कन्ध ये दो मुख्य भेद हैं । इन १. बन्धे समाधिको पारिणामिको।-तत्त्वार्थसूत्र, ५.३६. २. बन्धेऽधिको पारिणामिको ।-वही, ५.३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002139
Book TitleJain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherMutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
Publication Year1999
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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