________________
तत्त्वविचार
१२६ द्रव्यात्मा द्रव्यदृष्टि से और शेष सात पर्यायदृष्टि से हैं । इस प्रकार की अनेक चर्चाएं जैन दार्शनिक साहित्य में मिलती हैं जिनसे द्रव्य और पर्याय के सम्बन्ध का पता लगता है । द्रव्य और पर्याय एक-दूसरे से इस प्रकार मिले हुए हैं कि एक के बिना दूसरे की स्थिति असम्भव है। जिस प्रकार द्रव्यरहित पर्याय की उपलब्धि नहीं हो सकती उसी प्रकार पर्यायरहित द्रव्य की उपलब्धि भी असम्भव है। जहाँ पर्याय होगा वहाँ द्रव्य अवश्य होगा और जहाँ द्रव्य होगा वहाँ उसका कोई न कोई पर्याय अवश्य होगा। भेदाभेदवाद :
दर्शन के क्षेत्र में भेद और अभेद को लेकर मुख्य रूप से चार पक्ष बन सकते हैं । एक पक्ष केवल भेद का समर्थन करता है, दूसरा पक्ष केवल अभेद को स्वीकार करता है, तीसरा पक्ष भेद और अभेद दोनों को मानता है, चौथा पक्ष भेद-विशिष्ट अभेद का समर्थन करता है।
भैदवादी किसी भी पदार्थ में अन्वय नहीं मानता। वह प्रत्येक क्षण में भिन्न-भिन्न तत्त्व और भिन्न-भिन्न ज्ञान की सत्ता में विश्वास करता है। उसकी दृष्टि में भेद को छोड़कर किसी भी प्रकार का तत्त्व निर्दोष नहीं होता । जहाँ भेद होता है वहीं वास्तविकता रहती है। भारतीय दर्शन में वैभाषिक और सौत्रान्तिक इस पक्ष के प्रबल समर्थक हैं । वे क्षण-भंगवाद को ही अंतिम सत्य मानते हैं। प्रत्येक पदार्थ क्षणिक है । प्रत्येक क्षण में पदार्थ की उत्पत्ति और विनाश होता है। कोई भी वस्तु चिरस्थायी नहीं है । जहाँ स्थायित्व नहीं वहाँ अभेद कैसे हो सकता है ? ज्ञान और पदार्थ दोनों क्षणिक हैं । जिसे हम आत्मा कहते हैं वह पंचस्कन्ध के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। विज्ञान, वेदना,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org