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[ जैन प्रतिमाविज्ञान गोमुख (८) की भी मूर्तियां हैं। गोमुख आकृतियों की भुजाओं में पद्म और घट हैं। प्रवेश-द्वार पर १६ मांगलिक स्वप्न और गंगा-यमुना की मूर्तियां भी अंकित हैं । छतों और स्तम्भों पर जिनों एवं जैनाचार्यों की लघु मूर्तियां हैं ।
आदिनाथ मन्दिर-योजना, निर्माण शैली एवं मूर्तिकला की दृष्टि से आदिनाथ मन्दिर खजुराहो के वामन मन्दिर (ल. १०५०-७५ ई०) के निकट है। कृष्णदेव ने इसी आधार पर मन्दिर को ग्यारहवीं शती ई० के उत्तरार्ध में निर्मित माना है। गर्भ गृह में ११५८ ई० की काले प्रस्तर की एक आदिनाथ मति है। ललाट-बिम्ब पर चक्रेश्वरी आमूर्तित है। मन्दिर के मण्डोवर पर मूर्तियों की तीन समानान्तर पंक्तियां हैं। ऊपर की पंक्ति में गन्धर्व, किन्नर एवं विद्याधर मतियां हैं। मध्य की पंक्ति में चार कोनों पर त्रिभंग में आठ चतुर्भुज गोमुख आकृतियां उत्कीर्ण हैं। आठ गोमुख आकृतियां सम्भवतः अष्ट-वासुकियों का चित्रण है। इनके करों में वरदमुद्रा, चक्राकार सनाल पद्म (या परशु), चक्राकार सनाल पद्म एवं जलपात्र हैं। निचली पंक्ति में अष्ट-दिक्पालों की चतुर्भुज मतियां हैं। दक्षिणी अधिष्ठान पर ललितमुद्रा में आसीन चतुर्भुज क्षेत्रपाल की मूर्ति है । क्षेत्रपाल का वाहन श्वान् है और करों में गदा, नकुलक, सर्प एवं फल प्रदर्शित हैं। सिंहवाहना अम्बिका की तीन और गरुडवाहना चक्रेश्वरी की दो मूर्तियां हैं।
___आदिनाथ मन्दिर के मण्डोवर की १६ रथिकाओं में १६ देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। ये मूर्तियां मूर्तिवैज्ञानिक दृष्टि से विशेष महत्व की हैं। भिन्न आयुधों एवं वाहनों वाली स्वतन्त्र देवियों की सम्भावित पहचान १६ महाविद्याओं से की जा सकती है। ललितमुद्रा में आसीन या त्रिभंग में खड़ी देवियां चार से आठ भुजाओं वाली हैं। उत्तर और दक्षिण की भित्तियों पर ७-७ और पश्चिम की भित्ति पर दो देवियां उत्कीर्ण हैं। सभी उदाहरणों में रथिका-बिम्ब काफी विरूप हैं, जिसकी वजह से उनकी पहचान कठिन हो गई है। केवल कुछ ही देवियों के निरूपण में पश्चिम भारत के लाक्षणिक ग्रन्थों के निर्देशों का आंशिक अनुकरण किया गया है। सभी देवियां वाहन से युक्त हैं और उनके शीर्ष भाग में लघु जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं । देवियों के स्कन्धों के ऊपर सामान्यतः अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं जलपात्र से युक्त देवियों की दो छोटी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । दिगंबर ग्रन्थों से तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कुछ देवियों की सम्भावित पहचान के प्रयास किये गये हैं । वाहनों या कुछ विशिष्ट आयुधों या फिर दोनों के आधार पर जांबूनदा, गौरी, काली, महाकाली, गांधारी, अच्छुप्ता एवं वैरोटया महाविद्याओं की पहचान की गई है।
मन्दिर के प्रवेश-द्वार पर वाहन से युक्त चतुर्भुज देवियां निरूपित हैं। इनमें केवल लक्ष्मी, चक्रेश्वरी, अम्बिका एवं पद्मावती की ही निश्चित पहचान सम्भव है।" दहलीज पर दो चतुर्भुज पुरुष आकृतियां ललितमुद्रा में उत्कीर्ण हैं । इनकी तीन अवशिष्ट भुजाओं में अभयमुद्रा, परशु एवं चक्राकार पद्म हैं। देवता की पहचान सम्भव नहीं है । दहलीज के बायें छोर पर महालक्ष्मी की मति है। दाहिने छोर पर त्रिसर्पफणा और पद्मासना देवी की मूर्ति है। देवी की पहचान सम्भव नहीं है। प्रवेश-द्वार पर मकरवाहिनी गंगा एवं कूर्मवाहिनी यमुना और १६ मांगलिक स्वप्न उत्कीर्ण हैं।
शान्तिनाथ मन्दिर-शान्तिनाथ मन्दिर (मन्दिर १) में शान्ति की एक विशाल कायोत्सर्ग प्रतिमा है । कनिंघम ने इस मति पर १०२८ ई० का लेख देखा था, जो सम्प्रति प्लास्टर के अन्दर छिप गया है।
१ वही, पृ० ५८ २ खजुराहो के चतुर्भुज एवं दूलादेव हिन्दू मन्दिरों पर भी समान विवरणों वाली आठ गोमुख आकृतियां उत्कीर्ण हैं। ___ इनकी भुजाओं में वरदमुद्रा (या वरदाक्ष), त्रिशूल (या स्रुक), पुस्तक-पद्म एवं जलपात्र प्रदर्शित हैं। ३ मध्य भारत में १६ महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण का यह एकमात्र सम्भावित उदाहरण है। ४ उत्तरी भित्ति की दो रथिकाओं के बिम्ब सम्प्रति गायब हैं। ५ तिवारी, एम० एन० पी०, 'खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर के प्रवेश-द्वार की मूर्तियां', अनेकान्त, वर्ष २४, अं० ५,
पृ० २१८-२१ ६ कनिंघम, ए०, आ०स०ई०रि०, १८६४-६५, खं० २, पृ० ४३४
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