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________________ उत्तर भारत के जैन मति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण 1 ७३ निचली दोनों पंक्तियों की देव युगल एवं स्वतन्त्र मूर्तियों में देवता सदैव चतुर्भुज हैं। पर देवताओं की शक्तियां द्विभुजा हैं। सभी मूर्तियां त्रिभंग में खड़ी हैं। इन मूर्तियों में शक्ति की एक भुजा आलिंगन-मुद्रा में है और दूसरी में दर्पण या पन है । तात्पर्य यह कि विभिन्न देवों के साथ पारम्परिक शक्तियों, यथा विष्णु के साथ लक्ष्मी, ब्रह्मा के साथ ब्रह्माणी, के स्थान पर सामान्य एवं व्यक्तिगत विशेषताओं से रहित देवियां निरूपित हैं। स्वतन्त्र देव मूर्तियों में शिव (१९), विष्णु (१०) एवं ब्रह्मा (१) की मूर्तियां हैं। देवयुगलों में शिव (९), विष्णु (७), ब्रह्मा (१), अग्नि (१), कुबेर (१), राम )3 एवं बलराम (१) की मूर्तियां हैं। अम्बिका (२), चक्रेश्वरी (१),सरस्वती (६),लक्ष्मी (५) एवं त्रिमुख ब्रह्माणी (३) की भी मतियां उत्कीर्ण हैं। जिन, अम्बिका एवं चक्रेश्वरी की मूर्तियों के अतिरिक्त मण्डोवर की अन्य सभी मतियां हिन्द देवकुल से सम्बन्धित और प्रभावित हैं । उत्तरी एवं दक्षिणी शिखर पर काम-क्रिया में रत दो युगल चित्रित हैं। उल्लेखनीय है कि खजुराहो के दुलादेव, लक्ष्मण, कन्दरिया महादेव, देवी जगदम्बी एवं विश्वनाथ मन्दिरों पर उत्कीर्ण काम-क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न मूर्तियों में अनेकशः मुण्डित-मस्तक, निर्वस्त्र एवं मयूरपीचिका लिए जैन साधुओं को रतिक्रिया को विभिन्न मुद्राओं में दरशाया गया है । लक्ष्मण मन्दिर की उत्तरी भित्ति को ऐसी एक दिगम्बर मूर्ति में जैन साधु के वक्षःस्थल में श्रीवत्स चिह्न भी उत्कीर्ण है। हरिवंशपुराण (२९.१-५) में एक स्थान पर जिन मन्दिर में सम्पूर्ण प्रजा के कौतूक के लिए कामदेव और रति की मूर्ति बनवाने और मन्दिर के कामदेव मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध होने के उल्लेख हैं। ये बातें जैन धर्म में आये शिथिलन का संकेत देती हैं। गर्भगृह की भीत्ति पर अष्ट-दिक्पाल, जिनों, बाहुबली एवं शिव (८) की मूतियां हैं। उत्तरंगों पर द्विभुज नवग्रहों (३ समूह) और द्वार-शाखाओं पर मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियां हैं। ___ मण्डप की भित्ति की जिन मूर्तियों में लांछन और यक्ष-यक्षी नहीं उत्कीर्ण हैं। पर गर्भगृह की भित्ति की जिन मूर्तियों (९) में लांछन', अष्ट-प्रातिहार्य एवं यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं। यक्ष-यक्षी सामान्यतः अभयमुद्रा एवं फल (या जलपात्र) से युक्त हैं । लांछनों के आधार पर अभिनन्दन, सुमति (?), चन्द्रप्रभ एवं महावीर की पहचान सम्भव है। मन्दिर की जिन मूर्तियां मूर्तिवैज्ञानिक दृष्टि से प्रारम्भिक कोटि की हैं। जिनों के स्वतन्त्र यक्ष-यक्षी युगलों के स्वरूप का निर्धारण अभी नहीं हो पाया था। गर्भगृह की दक्षिणी मित्ति पर बाहुबली की एक मूर्ति है। सिंहासन पर कायोत्सर्ग में निर्वस्त्र खड़े बाहुबली के साथ जिन मूर्तियों की विशेषताएं (सिंहासन, चामरधर, उड्डीयमान गन्धर्व) प्रदर्शित हैं। बाहुबली के पाश्वों में विद्यारियों की दो आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं। घण्टई मन्दिर-कृष्ण देव ने स्थापत्य, मूर्तिकला और लिपि सम्बन्धी साक्ष्यों के आधार पर घण्टई मन्दिर को दसवीं शती ई० के अन्त का निर्माण माना है।' मन्दिर के अर्धमण्डप के उत्तरंग पर ललाट-बिम्ब के रूप में अष्टभूज चक्रेश्वरी की मति उत्कीर्ण है जो मन्दिर के ऋषभदेव को समर्पित होने की सूचक है। उत्तरंग पर द्विभुज नवग्रहों एवं १ देवयुगलों की कुछ मूर्तियां मन्दिर के अन्य भागों पर भी हैं। २ विभिन्न देवताओं का शक्तियों के साथ आलिंगन-मुद्रा में अंकन जैन परम्परा के विरुद्ध है। जैन परम्परा में कोई भी देवता अपनी शक्ति के साथ नहीं निरूपित है, फिर शक्ति के साथ और वह भी आलिंगन-मुद्रा में चित्रण का प्रश्न ही नहीं उठता। ३ मन्दिर के दक्षिणी शिखर पर रामकथा से सम्बन्धित एक दृश्य भी उत्कीर्ण है। क्लांतमुख सीता अशोक वाटिका में बैठी हैं और हनुमान उन्हें राम की अंगूठी दे रहे हैं-तिवारी, एम०एन०पी०, 'ए नोट आन ऐन इमेज आँव राम ऐण्ड सीता आन दि पाश्वनाथ टेम्पल, खजुराहो', जैन जर्नल, खं० ८, अं० १, पृ० ३०-३२ ४ द्रष्टव्य, त्रिपाठी,एल०के०, दि एराटिक स्कल्पचर्स ऑव खजूराहो ऐण्ड देयर प्राबेबल एक्सप्लानेशन'. भारती. अं०३. पृ० ८२-१०४ ५ केवल चार उदाहरणों में लांछन स्पष्ट हैं । ६ प्राचीनतम मूर्ति जूनागढ़ संग्रहालय में है। ७ हरिवंशपुराण ११.१०१ ८ कृष्ण देव, पू०नि०, पृ० ६० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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