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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
की तीन स्थानक मूर्तियां हैं। दो उदाहरणों में सरस्वती की भुजाओं में पुस्तक एवं पद्म (या व्याख्यान-मुद्रा) हैं। उत्तरी जंघा की तीसरी मूर्ति में दोनों भुजाओं में वीणा है।
बजरामठ–यह दसवीं शती ई० के प्रारम्भ का हिन्दू मन्दिर है। पर इसके प्रकोष्ठों में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की जैन मूर्तियां रखी हैं। मन्दिर के मण्डोवर पर सूर्य, विष्णु, नरसिंह, गणेश, वराह आदि हिन्दू देवों की मूर्तियां हैं। बायीं ओर के पहले प्रकोष्ठ में लांछनरहित किन्तु जटाओं से शोभित ऋषभ की एक विशाल मूर्ति (बी १२) है। मध्य के प्रकोष्ठ में भी लांछन, जटाओं एवं पारम्परिक यक्ष-यक्षी से युक्त ऋषभ की एक मूर्ति है । अन्तिम प्रकोष्ठ में ऋषभ, नेमि, सूपार्श्व एवं पार्श्व की चार कायोत्सर्ग मूर्तियां हैं।
खजुराहो
खजुराहो (छतरपुर) के मन्दिर अपनी वास्तुकला एवं शिल्प वैभव के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। हिन्दू मन्दिरों के साथ ही यहां चन्देल शासकों के काल के कई जैन मन्दिर भी हैं। सम्प्रति यहां तीन प्राचीन (पार्श्वनाथ, आदिनाथ, घंटई) और ३२ नवीन जैन मन्दिर हैं। वर्तमान में पार्श्वनाथ और आदिनाथ मन्दिर ही पूर्णतः सुरक्षित हैं। खजुराहो की जैन शिल्प सामग्री दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है और उसकी समय-सीमा ल० ९५० ई० से ११५० ई० है।
पार्श्वनाथ मन्दिर-पार्श्वनाथ मन्दिर जैन मन्दिरों में प्राचीनतम और स्थापत्यगत योजना एवं मर्त अलंकरणों की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट एवं विशालतम है। कृष्णदेव ने पार्श्वनाथ मन्दिर को धंग के शासनकाल के प्रारम्भिक दिनों (९५०७० ई.) में निर्मित माना है।५ पार्श्वनाथ मन्दिर मूलतः प्रथम तीर्थंकर ऋषभ को समर्पित था। गर्भगृह में स्थापित १८६० ई० को काले प्रस्तर की पाश्वनाथ मूर्ति के कारण ही कालान्तर में इसे पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाने लगा । गर्भगृह में मूल प्रतिमा के सिंहासन और परिकर सुरक्षित हैं। मूल प्रतिमा की पीठिका पर ऋषभ के लांछन (वृषभ) और यक्ष-यक्षी (गोमुख एवं चक्रेश्वरी) उत्कीर्ण हैं । साथ ही मूलनायक के पार्यों की सुपार्श्व और पार्श्व मूर्तियां भी सुरक्षित हैं। मण्डप के ललाट-बिम्ब पर भी चक्रेश्वरी की ही मूर्ति है।
मन्दिर की बाह्य भित्तियों पर तीन (क्तियों में देव मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।। मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से केवल निचली दो पंक्तियों की मूर्तियां ही महत्वपूर्ण हैं। ऊपरी पंक्ति में केवल पुष्पमाल से युक्त विद्याधर युगल, गन्र्धव एवं किन्नरकिन्नरियों की उड्डीयमान आकृतियां उत्कीर्णित हैं। मध्य की पंक्ति में विभिन्न देव युगलों, लक्ष्मी एवं जिनों (लांछन रहित) आदि की मूर्तियां हैं। निचली पंक्ति में जिनों, अष्ट-दिक्पालों, देवयुगलों (शक्ति के साथ आलिंगन-मुद्रा में), अम्बिका यक्षी, शिव, विष्णु, ब्रह्मा एवं विश्वप्रसिद्ध अप्सराओं की मूतियां हैं ।
१ ब्राउन, पर्सी, पू०नि०, पृ० ११५ २ कनिंघम, ए०, आ०स०६०रि०, १८६४-६५, खं० २, पृ० ४३१-३५; ब्राउन, पर्सी, पू०नि०, पृ० ११२-१३ ३ नवीन जैन मन्दिरों में भी चन्देलकालीन जैन मूर्तियां रखी हैं। नवोन जैन मन्दिरों की संख्या का उल्लेख हमने
१९७० में उन मन्दिरों पर अंकित स्थानीय संख्या के अनुसार किया है। ४ जिनों की निर्वस्त्र मतियां और १६ मांगलिक स्वप्नों के चित्रण दिगंबर संप्रदाय की विशेषताएं हैं। ज्ञातव्य है कि
श्वेतांबर सम्प्रदाय में मांगलिक स्वप्नों की संख्या १४ है। ५ कृष्ण देव, 'दि टेम्पल्स ऑव खजुराहो इन सेन्ट्रल इण्डिया', ऐं०शि०६०. अं० १५. पृ० ५५ ६ बुन, क्लाज़, 'दि फिगर ऑव टू लोअर रिलीफ्स आन दि पार्श्वनाथ टेम्पल ऐट खजुराहो',. आचार्य श्री विजय
वल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, बंबई, १९५६, पृ० ७-३५ ७ पार्श्वनाथ मन्दिर की दर्पण देखती, पत्र लिखती, पैर से कांटा निकालती, पैर में पायजेब बांधती कुछ अप्सरा
मूर्तियां अपनी भावभंगिमाओं एवम् शिल्पगत विशेषताओं के कारण विश्वप्रसिद्ध हैं।
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