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________________ उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] मूर्तियों के माधार पर इसका जैन मन्दिर होना निर्विवाद है। गर्भगृह में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की पांच जिन मूर्तियां हैं । गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर सिंह-लांछन से युक्त महावीर की एक ध्यानस्थ मूर्ति (१० वीं शती ई०) है । शान्ति एवं नेमि की दसवीं शती ई० की दो मूर्तियां मण्डप की उत्तरी और दक्षिणी रथिकाओं में सुरक्षित हैं । मन्दिर की जंघा की रथिकाओं में दिक्पाल एवं जैन यक्ष और यक्षियों की मूर्तियां हैं। मन्दिर के मण्डोवर की रथिकाओं में द्विभुज से द्वादशभुज देवियों की मूर्तियां हैं । अधिकांश देवियों की निश्चित पहचान सम्भव नहीं है। केवल चक्रेश्वरी (३),अम्बिका (३),पद्मावती (४) यक्षियों, पार्श्व यक्ष (१) और सरस्वती की ही पहचान संभव है। उत्तरी अधिष्ठान की एक चतुर्भुज देवी की तीन अवशिष्ट भुजाओं में अभयमुद्रा, पद्म और पद्म प्रदर्शित हैं। देवी लक्ष्मी या शान्तिदेवी है । गर्भगृह की भित्ति पर भी पद्म धारण करनेवाली द्विभुज देवी की आठ मूर्तियां हैं। जंघा की बहुभुजी देवियां द्विपद्मासन पर ललितमुद्रा में विराजमान हैं। पूर्वो भित्ति की अष्टभुजा देवी के आसन के नीचे दो मुखों वाला मयूर जैसा कोई पक्षी (सम्भवतः कुक्कुट-सर्प) है। देवी की अवशिष्ट भुजाओं में तूणीर, पद्म, चामर, चामर, ध्वज, सर्प और धनुष प्रशित हैं । कृष्णदेव ने वाहन को कुक्कुट-सर्प माना है और उसी आधार पर देवी की सम्भावित पहचान पद्मावती से की है। पर उसी स्थल की अन्य पद्मावती मूर्तियों के शीर्षभाग में सर्पफणों का प्रदर्शन, जो इस मूर्ति में अनुपस्थित है, इस पहचान में बाधक है। यह देवी दूसरी यक्षी प्रज्ञप्ति, या तेरहवीं यक्षी वैरोट्या भी हो सकती है। दक्षिणी जंघा की गजवाहना एवं चतुर्भुजा देवी के करों में खड्ग, चक्र, खेटक और शंख हैं । गजवाहन एवं चक्र के आधार पर देवी की संभावित पहचान पांचवीं यक्षो पुरुषदत्ता से की जा सकती है। दक्षिणी जंघा की दूसरी देवी अष्टभुज है और उसका वाहन अश्व है । देवी की अवशिष्ट भुजाओं में खड्ग, पद्य (जिसका निचला भाग शृंखला के समान है , कलश, घण्टा, फलक, आम्रलुम्बि और फल प्रदर्शित हैं । अश्ववाहन और खड्ग के आधार पर देवी की सम्भावित पहचान छठीं यक्षी मनोवेगा से की जा सकती हैं । दक्षिणो जंघा की तीसरी मृगवाहना देवी चतुर्भुजा है । देवी की भुजाओं में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, नीलोत्पल एवं फल हैं। मृगवाहन और पद्य एवं वरदमुद्रा के आधार पर देवी की सम्भावित पहचान ग्यारहवीं यक्षी मानवी से की जा सकती है। पश्चिमी जंघा की चतुर्भुजा देवी के पद्मासन के समीप मकरमुख (वाहन) उत्कीर्ण है । आसन के नीचे एक पंक्ति में नवनिधि के सूचक नौ घट हैं। देवी की अवशिष्ट भुजाओं में पद्म एवं दर्पण हैं । मकरवाहन और पद्म के आधार पर देवी की सम्भावित पहचान बारहवीं यक्षी गांधारी से की जा सकती है। पर नौ घटों का चित्रण इस पहचान में बाधक है। उत्तरी अधिष्ठान की एक द्वादशभुज देवी लोहासन पर विराजमान है। लोहासन के नीचे सम्भवतः गजमस्तक उत्कीर्ण है। देवी की सुरक्षित भुजाओं में पद्म, वज्र, चक्र, शंख, पुष्प और पद्म हैं। लोहासन और शंख एवं चक्र के आधार पर देवी की पहचान दूसरी यक्षी रोहिणी से की जा सकती है । उत्तरी जंघा पर झषवाहना चतुर्भजा देवी निरूपित । देवी के करों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, पद्म और फल हैं। वाहन के आधार पर देवी की पहचान किसी दिगंबर यमी से सम्भव नहीं है। श्वेतांबर परम्परा में झषवाहन और पद्म पन्द्रहवीं यक्षी कन्दर्पा से सम्बन्धित हैं। ___ पूर्वी जंघा पर अश्ववाहना चतुर्भुजा देवी आमूर्तित है । देवी के करों में वज्र,दंड (शीर्ष भाग पर पंखयुक्त मानव आकति चामर और छत्र हैं। कृष्णदेव ने देवी की पहचान हिन्दू देव रेवन्त की शक्ति से की है। जैन मूर्तियों के सन्दर्भ में यह पहचान उचित नहीं प्रतीत होती है । सम्भवतः यह सातवीं यक्षी मनोवेगा है। गर्भगृह की जंघा पर द्विभुज सरस्वती १ मूर्तियों के शीर्ष भाग में लघु जिन आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं। २ उत्तरी जंघा पर कुबेर एवं इन्द्र दिक्पालों की द्विभुज मूर्तियां हैं। कुबेर का वाहन गज के स्थान पर मेष है। ३ हमने दिगंबर ग्रन्थों के आधार पर देवियों की सम्भावित पहचान के प्रयास किये हैं। ४ कृष्ण देव, पू०नि०, पृ० २६२-६३ __५ कृष्ण देव, पू०नि०, पृ० २६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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