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________________ ه فا मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश में लगभग सभी क्षेत्रों में आठवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य के जैन मन्दिर एवं मूर्ति अवशेष मिले हैं । ये अवशेष मुख्यतः ग्यारसपुर, खजुराहो, गंधावल, अहाड़, पधावली, नरवर, ऊन, नवागढ़, ग्वालियर, सतना ( पतिया दाई मन्दिर), अजयगढ़, चन्देरी, उज्जैन, गुना, शिवपुर, शहडोल, तेरही, दमोह, बानपुर आदि स्थलों पर हैं । मध्य प्रदेश का जैन शिल्प दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है । [ जैन प्रतिमाविज्ञान मध्य प्रदेश में जिन मूर्तियां सर्वाधिक हैं । इनमें ऋषभ, पार्श्व एवं महावीर की मूर्तियां सबसे अधिक हैं । अजित, सम्भव, सुपार्श्व, पद्मप्रभ, शान्ति, मुनिसुव्रत एवं नेमि की भी पर्याप्त मूर्तियां हैं। जिन मूर्तियों में लांछनों, अष्ट-प्रातिहार्यो एवं यक्ष-यक्षी युगलों का नियमित अंकन हुआ है । कुछ उदाहरणों में नवग्रह भी उत्कीर्ण हैं । पारम्परिक यक्ष-यक्षी केवल ऋषभ, नेमि, पार्श्व एवं कुछ उदाहरणों में महावीर के साथ निरूपित हैं । अन्य जिनों के साथ सामान्य लक्षणों वाले यक्षयक्षी हैं। जिनों की द्वितीर्थी, त्रितीर्थी, चोमुखी एवं चौबीसी मूर्तियां भी मिली हैं । ७२ और १०८ जिनों का अंकन करने वाले पट्ट भी मिले हैं। यक्षियों में केवल चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती एवं सिद्धायिका की ही स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं । इनमें अम्बिका एवं चक्रेश्वरी की सर्वाधिक मूर्तियां हैं । पतियानदाई मन्दिर (सतना) की ग्यारहवीं शती ई० की एक अम्बिका मूर्ति के परिकर में अन्य २३ यक्षियां भी निरूपित हैं (चित्र ५३ ) | यह मूर्ति सम्प्रति इलाहाबाद संग्रहालय ( ए०एम० २९३ ) में है । यक्षों में केवल गोमुख एवं सर्वानुभूति की ही स्वतन्त्र मूर्तियां मिली हैं । महाविद्याओं के चित्रण का एकमात्र सम्भावित उदाहरण खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर के मण्डोवर पर देखा जा सकता है । सरस्वती, लक्ष्मी, जैन युगलों, बाहुबली, जैन आचार्यों, १६ मांगलिक स्वप्नों आदि के भी अनेक उदाहरण हैं । सतना के समीप का पतियानदाई मन्दिर ल० सातवीं-आठवीं शती ई० का है । बडोह का गाडरमल जैन मन्दिर ल० नवीं दसवीं शती ई० का है। ग्वालियर किले एवं समीप के स्थलों से गुप्तकाल से आधुनिक युग तक की जैन मूर्तियां मिली हैं | ग्वालियर स्थित तेली के मन्दिर से ल० नवीं शती ई० की एक ऋषभ मूर्ति मिली है ।" ग्यारसपुर एवं खजुराहो के जैन मूर्ति अवशेषों का यहां विस्तार से उल्लेख किया गया है । ग्यारसपुर ग्यारसपुर (विदिशा ) का मालादेवी मन्दिर दिगंबर जैन मन्दिर है । कुछ जैन मूर्तियां ग्यारसपुर के हिन्दू मन्दिर बजरामठ के प्रकोष्ठों में भी सुरक्षित हैं । मालादेवी मन्दिर — मालादेवी मन्दिर का निर्माण नवीं शती ई० के उत्तरार्ध या दसवीं शती ई० के प्रारम्भ में हुआ। कुछ समय पूर्व तक इसे हिन्दू मन्दिर समझा जाता था ।' गर्भगृह एवं भित्ति की जिन एवं चक्रेश्वरी और अम्बिका १ अष्ट- प्रातिहार्यो में सामान्यतः अशोक वृक्ष नहीं उत्कीर्ण है । २ कनिंघम, ए०, आ०सं०ई०रि०, खं० ९, पृ० ३१-३३; प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९१९ - २०, पृ० १०८-०९: स्ट०जै० आ०, पृ० १८ ३ द्रष्टव्य, तिवारी, एम० एन० पी०, 'ए नोट ऑन दि फिगर्स ऑव सिक्सटीन जैन गॉडेसेस ऑन दि आदिनाथ 'टेम्पल ऐट खजुराहो', ईस्ट वे० ( स्वीकृत ) ४ कनिंघम, ए०, पू०नि०, पृ० ३१-३३ ५ कनिंघम, ए० आ०स०ई०रि०, १८६४-६५, खं० २, पृ० ३६२-६५; स्ट०जै० आ०, पृ० २३-२४ ६ कृष्ण देव, 'मालादेवी टेम्पल ऐट ग्यारसपुर, म०जे०वि०गो०जु०वा, बम्बई, १९६८, पृ० २६० ७ ब्राउन, पर्सी, पु०नि०, पृ० ११५ ८ कृष्ण देव, पू०नि०, पृ० २६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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