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उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ]
प्राचीन जैन मन्दिरों के अतिरिक्त स्थानीय संग्रहालयों एवं नवीन जैन मन्दिरों में भी जैन मर्तियां सुरक्षित हैं। उनका भी संक्षेप में उल्लेख अपेक्षित है। खजराहो की प्राचीनतम जिन मतियां पार्श्वनाथ मन्दिर की हैं। खजुराहो से दसवीं से बारहवीं शतीई० के मध्य की लगभग २५०जिन मतियां मिली हैं (चित्र४२)। ये मूर्तियां श्रीवत्स एवं लांछनों से युक्त हैं। यहां जिनों की ध्यानस्थ मतियां अपेक्षाकृत अधिक हैं । सुपाश्र्व एवं पार्श्व अधिकांशतः कायोत्सर्ग में निरूपित हैं । अष्ट-प्रातिहार्यों एवं यक्ष-यक्षी युगलों से युक्त जिन मतियों के परिकर में नवग्रहों एवं जिनों की छोटी मतियां भी उत्कीर्ण हैं। सभी जिनों के साथ स्वतन्त्र यक्ष-यक्षी नहीं निरूपित हैं । केवल ऋषभ (गोमुख-चक्रेश्वरी), नेमि (सर्वानुभूति-अम्बिका),पार्श्व (धरणेन्द्र-पद्मावती) एवं महावीर (मातंग-सिद्धायिका) के साथ ही पारम्परिक या स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी निरूपित हैं । अन्य जिनों के साथ वैयक्तिक विशिष्टताओं से रहित सामान्य लक्षणों वाले यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं। खजुराहो में केवल ऋषभ (६०), अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्व, चन्द्रप्रभ, शान्ति, मुनिसुव्रत, नेमि, पावं (११) एवं महावीर (९) की ही मूर्तियां हैं । यहां द्वितीर्थों (९), त्रितीर्थो (१, मन्दिर ८) और चौमुखी (१, पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो १५८८) जिन मूर्तियां भी हैं (चित्र ६१, ६३)। मन्दिर १८ के उत्तरंग पर किसी जिन के दीक्षा-कल्याणक का दृश्य है । जैन युगलों (७) एवं आचार्यों की भी कई मूर्तियां हैं। जैन युगलों के शीर्ष भाग में वृक्ष एवं लघु जिन मूर्ति उत्कीर्ण हैं । स्त्री की बायीं भजा में सदैव एक बालक प्रदर्शित है।
अम्बिका (११) एवं चक्रेश्वरी (१३) खजुराहो की सर्वाधिक लोकप्रिय यक्षियां हैं (चित्र५७) । पार्श्वनाथ मन्दिर को दक्षिणी जंघा की एक द्विभुज मूर्ति के अतिरिक्त अम्बिका सदैव चतुर्भज है। चक्रेश्वरी चार से दस भुजाओं वाली है। पद्मावती की भी तीन मूर्तियां हैं। मन्दिर २४ के उत्तरंग पर सिद्धायिका की भी एक मूर्ति है । अश्ववाहना मनोवेगा की एक मूर्ति पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (९४०) में है । यक्षों में केवल कुबेर की ही स्वतन्त्र मूर्तियां (४) मिली हैं। अन्य स्थल
जबलपुर-भेंडाघाट मार्ग के समीप त्रिपुरी के अवशेष हैं जिसमें चक्रेश्वरी, पद्मावती, ऋषभ एवं नेमि की मूर्तियां हैं। बिल्हारी (जबलपुर) में ल० दसवीं शती ई० का जैन मन्दिर एवं मूर्ति अवशेष हैं। मन्दिर के प्रवेश-द्वार पर पार्श्व
और बाहुबली की मूर्तियां हैं । यहां से चक्रेश्वरी एवं बाहुबली की भी मूर्तियां मिली हैं। जबलपुर से अर की एक मूर्ति मिली है। शहडोल से ऋषभ, पाव, पद्मावती, जैन युगल एवं जिन चौमुखी मूर्तियां (११वीं शती ई०) प्राप्त हुई हैं (चित्र५५) । ऊन (इन्दौर) और अहाड़ (टीकमगढ़) से ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की जैन मूर्तियां मिली हैं (चित्र ६७)। अहाड़ से शान्ति (११८० ई०), कुंथु, अर एवं महावीर की मूर्तियां उपलब्ध हुई हैं। अहाड़ से कुछ दूर बानपुर एवं जतरा से भी जैन मूर्तियां (१२ वीं-१३ वीं शती ई०) मिली हैं। टीकमगढ़ स्थित नवागढ़ से बारहवीं शती ई० के जैन मन्दिर एवं मति अवशेष मिले हैं। यहां से अर (११४५ ई०) और पावं की मूर्तियां मिली हैं। विदिशा के बडोह एवं पठारी से दसवीग्यारहवीं शती ई० के जैन मन्दिर एवं मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। पठारी से अम्बिका एवं महावीर की मूर्तियां मिली हैं। रीवां एवं गुर्गी से जिनों एवं जैन युगलों की मूर्तियां (११ वीं शती ई०) मिली हैं। देवास और गंधावल से प्राप्त जैन मूर्तियों (११ वी-१२ वीं शती ई०) में पार्श्व एवं विंशतिभुज चक्रेश्वरी की मूर्तियां उल्लेखनीय हैं। .
१ जैन मूर्तियां आदिनाथ मन्दिर के पीछे (शान्तिनाथ संग्रहालय', पुरातात्विक संग्रहालय एवं जाडिन संग्रहालय में
सुरक्षित हैं। २ इस संख्या में उत्तरंगों, प्रवेश-द्वारों एवं मन्दिरों के अन्य भागों की लघु जिन आकृतियां नहीं सम्मिलित हैं। ३ कुछ उदाहरणों में ऋषभ, अजित, सुपार्श्व, पावं, मुनिसुव्रत एवं महावीर के साथ यक्ष-यक्षी नहीं निरूपित हैं। ४ शास्त्री, अजयमित्र, 'त्रिपुरी का जैन पुरातत्व', जैन मिलन, वर्ष १२, अं० २, पृ० ६९-७२ ५ स्ट००आ०, पृ० २३; जैन, नीरज, 'अतिशय क्षेत्र अहार', अनेकान्त, वर्ष १८, अं० ४, पृ० १७७-७९ ६ जैन, नीरज, 'नवागढ़ : एक महत्वपूर्ण मध्ययुगीन जैन तीर्थ', अनेकान्त, वर्ष १५, अं० ६, पृ० २७७-७८ ७ गुप्ता, एस०पी० तथा शर्मा, बी०एन०, 'गन्धावल और जैन मूर्तियां', अनेकान्त, खं० १९, अं० १-२, पृ०१२९-३०
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