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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
मन्दिर पर शान्तिदेवी (४०), महालक्ष्मी (७), महाविद्याओं, अम्बिका, सरस्वती एवं दिक्पालों की चतुर्भुज मूर्तियां हैं । शान्तिदेवी की भुजाओं में वरदमुद्रा, पद्म, पद्म और जलपात्र हैं। दो गजों से अभिषिक्त महालक्ष्मी के करों में अभयाक्ष (या वरदाक्ष), पद्य, पद्म एवं जलपात्र हैं। पद्मासन में विराजमान महालक्ष्मी के आसन के नीचे नौ घट (नवनिधि के सूचक) उत्कीर्ण हैं । जंघा पर महाविद्याओं की सवाहन मूर्तियां हैं । इनमें केवल रोहिणी (३), वज्रांकुशी (७), अप्रतिचक्रा (३), महाकाली (२), गौरी (३), मानवी (२), अच्छुप्ता (१) एवं मानसी (५) की ही मूर्तियां हैं। महाकाली का वाहन मानव के स्थान पर पद्य है। गौरी के साथ वाहन रूप में गोधा और वृषभ दोनों ही प्रदर्शित हैं । हंसवाहना मानसी की ऊपरी भुजाओं में वज्र के स्थान पर खड्ग एवं पुस्तक प्रदर्शित हैं।
मन्दिर पर अष्ट-दिक्पालों के दो समूह उत्कीर्ण हैं। इनमें सामान्य पारम्परिक विशेषताएं प्रदर्शित हैं। गढ़मण्डप की दक्षिणी भित्ति पर जटामुकुट एवं मेषवाहन (?) से युक्त ब्रह्मशान्ति यक्ष (?) की एक मूर्ति है। यक्ष की तीन अवशिष्ट भुजाओं में सूक, पुस्तक एवं पद्म हैं। अम्बिका की दो मूर्तियां हैं। अधिष्ठान की एक मूर्ति में सिंहवाहना अम्बिका की निचली भुजाओं में आम्रलंबि एवं बालक और उपरी भुजाओं में दो चक्र प्रदर्शित हैं। गूढमण्डप की पूर्वी देवकुलिका के प्रवेश-द्वार की अप्रतिचक्रा एवं वज्रांकुशी महाविद्याओं की मूर्तियों में तीन और पांच सर्पफणों के छत्र भी प्रदर्शित हैं। सम्भव है देवकुलिकाओं की सुपार्श्व या पार्श्व की मूर्तियों के कारण महाविद्याओं के मस्तक पर सर्पफणों के छत्र प्रदर्शित हुए हों । सम्प्रति इन देवकुलिकाओं में सत्रहवीं शती ई० को जिन मूर्तियां हैं।
मन्दिर में कुछ ऐसी भी देवियां हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है। गूढ़मण्डप की पश्चिमी भित्ति की वृषभवाहना (?) देवी की ऊपरी भुजाओं में दो वज्र हैं। गूढ़मण्डप की दक्षिणी जंघा की दूसरी वृषभवाहना देवी वरदाक्ष, शूल, पद्मकलिका एवं जलपात्र से युक्त है। गूढ़मण्डप एवं मूलप्रासाद की पश्चिमी भित्तियों पर ऊपरी भुजाओं में बाण और खेटक धारण करनेवाली दो देवियां उत्कीर्ण हैं। एक उदाहरण में वाहन पद्म है और दूसरे में नर । गूढ़मण्डप की पूर्वी जंघा की सिंहवाहना देवी की तीन अवशिष्ट भुजाओं में वरदाक्ष, घण्टा और घण्टा प्रदर्शित हैं। गढ़मण्डप की पूर्वी देवकूलिका की गजवाहना देवी वरदमुद्रा, अंकुश, पाश एवं जलपात्र से युक्त है।
आबू रोड स्टेशन से लगभग ६ किलोमीटर दूर स्थित चन्द्रावती (सिरोही) से ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की दस जैन मतियां मिली हैं। इनमें द्विभुज अम्बिका एवं जिनों की मूर्तियां हैं। सिरोही जिले के आसपास के अन्य कई क्षेत्रों से भी जैन मतियां मिली हैं। झरोला का शान्तिनाथ मन्दिर, नडियाद का महावीर मन्दिर एवं झाडोली और मुंगथला के जैन मन्दिर ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० के हैं। चित्तौड़ जिले का सम्मिधेश्वर मन्दिर बारहवीं शती ई० का है। इस मन्दिर पर अप्रतिचक्रा, वज्रांकुशी और वज्रशृंखला महाविद्याओं एवं दिक्पालों की मूर्तियां हैं। कोजरा, वाघिण, पालधी, फलोदी, सरपर. सांगानेर, झालरापाटन, अटरू, लोद्रवा, कृष्णविलास, नागोर, बघेरा एवं मारोठ आदि स्थलों से भी ग्यारहवींबारहवीं शती ई० की जैन मूर्तियां मिली हैं । भरतपुर में भरतपुर, कटरा, बयाना, जघीना; कोटा में शेरगढ: बांसवाडा में तलवर एवं अर्थणा और अलवर में परानगर एवं बहादुरपुर से ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० को अनेक दिगंबर जैन मतियां मिली हैं । बिजौलिया में चाहमान शासकों के काल में निर्मित पार्श्वनाथ के पांच मन्दिरों के भग्नावशेष हैं। उत्तर प्रदेश
देवगढ़ (ललितपुर) एवं मथुरा उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण मध्ययगीन जैन स्थल हैं। यहां से आठवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की प्रचुर शिल्प सामग्री मिली है। उत्तर प्रदेश की जैन मूर्तियां दिगंबर सम्प्रदाय से सम्बद्ध . १ तिवारी, एम० एन० पी०, 'चन्द्रावती का जैन पुरातत्व', अनेकान्त, वर्ष १५, अं० ४-५, पृ० १४५-४७ २ प्रो०रि०आ०स०६०,वे०स०,१९०९, पृ० ६०,१९०९-१०, पृ० ४७,१९११-१२, पृ०५३; जैन, के०सी०, पू०नि०,
पृ० ११७-१८, १२०-२२, १३२ ३ टाड, जेम्स, एनाल्स ऐण्ड ऐन्टिक्विटीज ऑव राजस्थान, खं० २, लन्दन, १९५७, पृ० ५९५
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