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________________ उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] ११ के वितानों पर नेमि के जीवनदृश्य उत्कीर्ण हैं। देवकूलिका १६ के वितान पर पाव के जीवनदृश्य हैं। देवकूलिका १९ में एक पट्ट है जिस पर मुनिसुव्रत के जीवन से सम्बन्धित अश्वावबोध एवं शकुनिका विहार की कथाएं उत्कीर्ण हैं। रंगमण्डप के वितान पर १६ महाविद्याओं की चतुर्भुज मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । व्रजांकुशी, काली, पुरुषदत्ता, मानवी, वैरोटया, अच्छुप्ता, मानसी एवं महामानसी महाविद्याओं के अतिरिक्त अन्य सभी महाविद्याओं की मूर्तियां नवीन हैं । महाविद्याओं की लाक्षणिक विशेषताएं विमलवसही के रंगमण्डप की १६ महाविद्या मूर्तियों के समान हैं। विमलवसही से भिन्न यहां मानवी की ऊपरी भुजाओं में अंकूश और पाश प्रदर्शित हैं। रोहिणी, पुरुषदत्ता, गौरी, काली, वज्रशृंखला एवं अच्छुप्ता महाविद्याओं की कई स्वतन्त्र मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं। अम्बिका (७), महालक्ष्मी (५) और शान्तिदेवी की भो कई मूर्तियां हैं। देवकुलिका २४ की अम्बिका मूर्ति के परिकर में रोहिणी, मानवी, पुरुषदत्ता, अप्रतिचक्रा आदि महाविद्याओं एवं ब्रह्मशान्ति यक्ष की लघु आकृतियां उत्कीर्ण हैं। रंगमण्डप के समीप के वितान पर अष्टभुज महालक्ष्मी की चार मूर्तियां हैं। इनमें देवी की पांच भुजाओं में पद्म और शेष में पाश, अभयमुद्रा और कलश हैं। हंसवाहना सरस्वती की कई चतुर्भुज एवं षड्भुज मूर्तियां हैं। इनमें देवी वीणा, पद्म एवं पुस्तक से युक्त है। चक्रेश्वरी यक्षी की केवल एक मूर्ति (देवकुलिका १०) है। गरुडवाहना यक्षी अष्टभुज है और उसके करों में वरदमुद्रा, चक्र, व्याख्यानमुद्रा, छल्ला, छल्ला, पद्मकलिका, चक्र एवं फल हैं। गूढ़मण्डप के प्रवेश-द्वार पर पद्मावती को दो मूर्तियां हैं। चतुर्भुजा पद्मावती वरदाक्ष, सर्प, पाश एवं फल से युक्त है और उसका वाहन सम्भवतः नक है। ब्रह्मशान्ति यक्ष की एक षड्भुज मूर्ति रंगमण्डप से सटे वितान पर है। श्मश्रु एवं जटामुकुट से शोभित ब्रह्मशान्ति का वाहन हंस है और उसकी भुजाओं में वरदाक्ष, अभयमुद्रा, पद्म, मुक, वज्र और कमण्डलु प्रदर्शित हैं। धरणेन्द्र यक्ष की एक चतुर्भुज मूर्ति गूढमण्डप के प्रवेश-द्वार (दक्षिणी) के चौखट पर है। धरणेन्द्र को तीन अवशिष्ट भुजाओं में वरदाक्ष, सर्प एवं सर्प हैं। लूणवसही में चार ऐसी भी देवियां हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है। पहली देवी की ऊपरी भुजाओं में पाश एवं अंकुश, दूसरी की भुजाओं में धन का थैला, तोसरी की भुजाओं में गदा एवं अंकुश, और चौथी की मुजाओं में दण्ड हैं । रंगमण्डप से सटे वितान पर त्रिशल एवं शूल से युक्त एक षड्भुज देवता निरूपित है। देवता के दोनों पार्यों में सिंह और शूकर की आकृतियां हैं। यह सम्भवः कपद्दि यक्ष है। गूढ़मण्डप के पश्चिमी प्रवेश-द्वार की चौखट पर सर्पवाहन से यक्त एक चतुर्भुज देवता की मूर्ति है। देवता की भुजाओं में बाण, गदा एवं शंख हैं। देवता की पहचान सम्भव नहीं है। सर्वानुभूति यक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं है । अजमुख नंगमेषी की कई मूर्तियां हैं । नैगमेषी की एक भुजा में सदैव एक बालक प्रदर्शित है। रंगमण्डप के समीप के वितान पर कृष्ण-जन्म एवं उनकी बाल-क्रीड़ा के कुछ दृश्य उत्कीर्ण हैं। जालोर जालोर की पहाड़ियों पर बारहवीं-तेरहवीं शती ई० के तीन श्वेतांबर जैन मन्दिर हैं, जो आदिनाथ, पाखनाथ एवं महावीर को समर्पित हैं।' महावीर मन्दिर चौलुक्य शासक कुमारपाल के शासनकाल का है। महावीर मन्दिर जालोर के जैन मन्दिरों में विशालतम और शिल्प सामग्री की दृष्टि से समृद्ध भी है। आदिनाथ और पार्श्वनाथ मन्दिर तेरहवीं शती ई० के हैं। सभी मन्दिरों की मूर्तियां खण्डित हैं। पाश्वनाथ मन्दिर के गूढ़मण्डप की दीवार में बारहवीं शती ई० का एक पट्ट है जिस पर मुनिसुव्रत के जीवन की अश्वावबोध एवं शकुनिका विहार की कथाएं उत्कीर्ण हैं। यहां केवल महावीर मन्दिर की मतिवैज्ञा निक सामग्री का ही उल्लेख किया जायगा । १ प्रो.रि.०आ०स०ई०,वे०स०, १९०५-०८, पृ० ३४-३५; जैन, के० सी०, पू०नि०, पृ० १२० २ जालोर लेख (११६४ ई०) से ज्ञात होता है कि महावीर मन्दिर मूलतः पार्श्वनाथ को समर्पित था। मन्दिर के गर्भगृह में आज १७ वीं शती ई० की महावीर मूर्ति है-नाहर, पी० सी०, जैन इन्स्क्रिप्शन्स, भाग १, कलकत्ता, १९१८, पृ० २३९, लेख सं० ८९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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