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उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] देवी की दो भुजाओं में पुस्तक, दूसरी नागवाहना देवी की भुजाओं में पात्र एवं दण्ड, और तीसरी अजवाहना देवी की भुजाओं में खड्ग एवं फलक हैं। नाडोल
नाडोल या नड्डुल (पाली) में पद्मप्रभ, नेमिनाथ एवं शान्तिनाथ को समर्पित ग्यारहवीं शती ई० के तीन श्वेताम्बर जैन मन्दिर हैं।
नेमिनाथ मन्दिर नेमिनाथ मन्दिर के शिखर पर चक्रेश्वरी एवं शान्तिदेवी की चतुर्भुज मूर्तियां हैं। दक्षिणो शिखर पर किसी जिन के जन्म-कल्याणक का दृश्य है जिसमें एक बालक (जिन) चतुर्भुज इन्द्र की गोद में बैठा है । इन्द्र ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और उनकी निचली भुजायें गोद में हैं तथा ऊपरी में अंकुश एवं वज्र हैं । जगती की एक वषभवाहना (?) देवी की भुजाओं में गदा प्रदर्शित है । देवी की पहचान सम्भव नहीं है। गूढ़मण्डप की पश्चिमी भित्ति पर चतुर्भज कृष्ण निरूपित हैं। कृष्ण समभंग में खड़े हैं और किरीटमुकुट, छन्नवीर और वनमाला से अलंकृत हैं। उनकी ऊपरी भजाओं में गदा और चक्र हैं। सम्भवतः नेमिनाथ मन्दिर होने के कारण ही कृष्ण को यहां आमूर्तित किया गया।
शान्तिनाथ मन्दिर-मन्दिर की भित्ति पर स्त्री दिक्पालों की आकृतियां हैं। जंघा की मूर्तियों में केवल गौरी महाविद्या की ही पहचान सम्भव है। भित्ति की गजवाहना और भुजाओं में वरदमुद्रा, परशु, मुद्गर एवं जलपात्र, तथा वरदाक्ष, त्रिशूल, नाग एवं फल से युक्त दो देवियों की पहचान सम्भव नहीं है।
पद्मप्रभ मन्दिर–पद्मप्रभ मन्दिर नाडोल का विशालतम जैन मन्दिर है। मन्दिर की भित्तियों पर अप्रतिचक्रा, वैरोटया एवं वज्रशृंखला महाविद्याओं एवं अष्ट-दिक्पालों की मूर्तियां हैं। अधिष्ठान पर सर्वानुभूति यक्ष एवं अम्बिका यक्षी की भी मूर्तियां हैं। अधिष्ठान की पद्म, खड्ग और जलपात्र से युक्त एक यक्ष की पहचान सम्भव नहीं है। यहां शान्तिदेवी की सर्वाधिक स्वतन्त्र मूर्तियां (११) हैं। शान्तिदेवी की ऊपरी भुजाओं में सनाल पद्म और निचली में वरदमुद्रा एवं फल
हैं। वीणा और पुस्तक धारिणी सरस्वती की भी चार मूतियां हैं। अधिष्ठान पर वज्रांकुशा (१),
का (३), महाकाली (१), काली (१) महाविद्याओं एवं महालक्ष्मी की भी मूर्तियां हैं । त्रिशूल सर्प, फल; दो ऊपरी भुजाओं में मुक; और गदा एवं धनुष धारण करने वाली तीन देवियों की पहचान सम्भव नहीं है। नाङलाई
नाड्लाई (पाली) में दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० के श्वेताम्बर जैन मन्दिर हैं। यहां के मुख्य मन्दिर आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ को समर्पित हैं। इनमें आदिनाथ मन्दिर विशालतम एवं प्राचीन है। मन्दिर के लेख से ज्ञात होता है कि मन्दिर मूलतः महावीर को समर्पित था। इसका निर्माण दसवीं शती ई० के अन्त में हुआ । मन्दिर के गर्भगृह की दहलीज पर सर्वानुभूति एवं अम्बिका की द्विभुज मूतियां हैं। नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ मन्दिरों का निर्माण ग्यारहवीं शती ई० में हुआ। इन पर मूर्तियां नहीं उत्कीर्ण हैं। केवल शान्तिनाथ मन्दिर (११वीं शती ई०) पर ही जैन देवों की मूर्तियां हैं।
१ ढाकी, एम० ए०, पू०नि०, पृ० ३४३-४५ २ वही, पृ० ३४३ ३ देवी वरदमुद्रा, अंकुश, त्रिशूल-घण्टा एवं कुण्डिका से युक्त हैं। ४ काली की ऊपरी भुजाओं में गदा एवं सनाल पद्म हैं। विमलवसही के रंगमण्डप की मूति में भी काली की भुजाओं
में गदा एवं सनाल पद्म प्रदर्शित हैं । ५ ढाकी, एम० ए०, पू०नि०, पृ० ३४१-४२ । शान्तिनाथ मन्दिर के अतिरिक्त अन्य मन्दिरों पर मूर्तियां नहीं
उत्कीर्ण हैं। ६ साहित्यिक परम्परा में इस मन्दिर के निर्माण की तिथि ९०८ ई० है-ढाकी, एम०ए०, पू०नि०.१० ३४१
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