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________________ ६० [ जैन प्रतिमाविज्ञान चित्रण में निर्वाणकलिका के निर्देशों का पालन किया गया है। गूढ़मण्डप के उत्तरंग पर स्थानक मुद्रा में द्विभुज नवग्रहों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं ।' गूढ़मण्डप के एक स्तम्भ पर चतुर्भुज गणेश एवं ललाट-बिम्ब पर सुपार्श्वनाथ की मूर्तियां हैं । देवकुलिकाओं की भित्तियों पर वैरोट्या, चक्रेश्वरी, वज्रांकुशी एवं सरस्वती की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं | सादरी २ पार्श्वनाथ मन्दिर - सादरी (पाली) का पार्श्वनाथ मन्दिर ग्यारहवीं शती ई० का है । मन्दिर पर चतुर्भुज महाविद्याओं, सरस्वती, दिक्पालों, अप्सराओं एवं जैन ग्रन्थों में अर्वाणित देवियों की मूर्तियां हैं । सर्वानुभूति एवं अम्बिका या किसी अन्य यक्ष-यक्षी की एक भी मूर्ति नहीं उत्कीर्ण है । मन्दिर पर केवल ११ महाविद्याएं निरूपित हुईं । ये रोहिणी, वज्रांकुशी, वज्रशृंखला, अप्रतिचक्रा, गौरी, पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, महाज्वाला, वैरोट्या एवं महामानसी हैं । 3 पूर्वी वरण्ड पर एक चतुर्भुज देवता की मूर्ति है । देवता के हाथों में छल्ला, पद्म, पद्म और कमण्डलु हैं । देव की पहचान सम्भव नहीं है । महाविद्याओं के बाद सर्वाधिक मूर्तियां शान्तिदेवी की हैं। शान्तिदेवी के दो हाथों में पद्म हैं । मन्दिर पर जैन परम्परा में अनुल्लिखित नौ चतुर्भुज देवियां भी उत्कोण हैं । इनकी निचली भुजाओं में सर्वदा अभय(या वरद - ) मुद्रा एवं फल ( या जलपात्र ) हैं । पहली गजवाहना देवी की ऊपरी भुजाओं में त्रिशूल एवं शूल, दूसरी देवी की भुजाओं में सनालपद्म एवं खेटक, तीसरी देवी की भुजाओं में त्रिशूल, चौथी देवी की भुजाओं में खड्ग एवं अभयमुद्रा, पांचवीं देवी की भुजाओं में पाश एवं पद्म, छठीं सिंहवाहना देवी की भुजाओं में अंकुश एवं धनुष, सातवीं गजवाहना देवी की भुजाओं में शूल एवं पाश, आठवीं देवी की भुजाओं में गदा एवं पाश, और नवीं सिंहवाहना देवी की भुजाओं में अंकुश एवं पारा प्रदर्शित हैं । ल० ग्यारहवीं शती ई० का एक नन्दीश्वर द्वीप पट्ट मन्दिर की चहारदीवारी के समीप की दीवार पर उत्कीर्ण है । नन्दीश्वर द्वीप पट्ट का सम्भवतः यह प्राचीनतम ज्ञात उदाहरण है । वर्माण महावीर मन्दिर — वर्माण (पाली) में परवर्ती नवीं शती ई० का एक महावीर मन्दिर है ।" इस श्वेताम्बर मन्दिर में २४ देवकुलिकाएं संयुक्त हैं । मन्दिर में महावीर, अम्बिका एवं महालक्ष्मी की मूर्तियां हैं । सेवड़ी महावीर मन्दिर - सेवड़ी (पाली ) का महावीर मन्दिर ( श्वेताम्बर) ग्यारहवीं शती ई० का चतुर्विंशति जिनालय है । मन्दिर की भीत्तियों पर द्विभुज अप्रतिचक्रा एवं वैरोट्र्या महाविद्याओं, जीवन्तस्वामी महावीर, क्षेत्रपाल, ब्रह्मशान्ति यक्ष एवं महावीर की मूर्तियां हैं । द्विभुज क्षेत्रपाल निर्वस्त्र है और गदा एवं सर्पं से युक्त है । श्मश्रु एवं पादुका से युक्त ब्रह्मशान्ति के हाथों में अक्षमाला एवं जलपात्र हैं । गूढ़मण्डप के द्वारशाखाओं पर चक्रेश्वरी, निर्वाणी एवं पद्मावती यक्षियों की मूर्तियां हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर यक्षियों एवं महाविद्याओं की मूर्तियां हैं। महाविद्याओं में रोहिणी, वज्रांकुशा, गांधारी, वैरोट्या, अच्छुप्ता, प्रज्ञप्ति एवं महामानसी की पहचान सम्भव है । उत्तरंग की जिन आकृति के पाव में पुरुषदत्ता, चक्रेश्वरी एवं काली महाविद्याओं की मूर्तियां हैं। तीन देवियों की पहचान सम्भव नहीं है । पहली नरवाहना १ श्वेताम्बर मन्दिरों में नवग्रहों का चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है । २ ढाकी, एम० ए०, पु०नि०, पृ० ३४५-४६ ३ अन्यत्र विशेष लोकप्रिय प्रज्ञप्ति, अच्छुप्ता एवं मानसी महाविद्याओं की एक भी मूर्ति नहीं है । ४ १३वीं - १४वीं शती ई० के दो अन्य उदाहरण कुंभारिया के नेमिनाथ एवं राणकपुर के आदिनाथ (चौमुखी) मंदिरों में हैं -- स्ट० जै०आ०, पृ० ११९-२१ ढाकी, एम०ए०, पु०नि०, पृ० ३२७-२८ ६ प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९०७-०८, पृ० ५३; ढाकी, एम० ए० पू०नि०, पृ० ३३७-४० " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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