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________________ उत्तर भारत के जैन मूर्ति अवशेषों का ऐतिहासिक सर्वेक्षण ] ५९ मण्डोर में नाहडराओ गुफा के समीप दसवीं शती ई० का एक जैन मन्दिर है । नदसर (सुरपुर) में भी प्राचीन जैन मन्दिर हैं । नाणा (बाली) में ९६० ई० का एक महावीर मन्दिर है । आहाड़ (उदयपुर) में ल० दसवीं शती ई० का आदिनाथ मन्दिर । मन्दिर की भित्तियों पर भरत, सरस्वती, चक्रेश्वरी एवं अन्य जैन देवियों की मूर्तियां हैं। भद्रेसर एवं उथमण में ग्यारहवीं शती ई० के जैन मन्दिर हैं । बीकानेर, तारानगर (९५२ ई०), राणी, नोहर एवं पालू में दसवींग्यारहवीं शती ई० के कई जैन मन्दिर हैं ।" पल्लू से कई चतुर्भुज सरस्वती मूर्तियां मिली हैं जो कलात्मक अभिव्यक्ति एवं मूर्तिवैज्ञानिक दृष्टि से मध्यकाल की सर्वोत्कृष्ट सरस्वती मूर्तियां हैं । इनमें हंसवाहना सरस्वती सामान्यतः वरदाक्ष, पद्म, पुस्तक एवं कमण्डलु से युक्त हैं । नागदा (मेवाड़) में ९४६ ई० का एक पद्मावती मन्दिर (दिगंबर ) है । प्रताबगढ़ के समीप वीरपुर से नवींदसवीं शती ई० के जैन मन्दिरों के अवशेष मिले हैं। रामगढ़ (कोटा) के समीप आठवीं-नवीं शती ई० की जैन गुफाएं हैं । कृष्णविलास या विलास (कोटा) में आठवीं से दसवीं शती ई० के मध्य के जैन मन्दिरों (दिगंबर) के अवशेष हैं । जयपुर (चाट्सु) एवं अलवर के आसपास के क्षेत्रों में दसवीं - ग्यारहवीं शती ई० के कुछ जैन मन्दिर हैं । जगत (उदयपुर) में भी दसवीं शती ई० का एक अम्बिका मन्दिर है ।" पाली में ग्यारहवीं शती ई० का नवलखा पार्श्वनाथ मन्दिर है ।" घाणेराव महावीर मन्दिर - घाणेराव (पाली) का महावीर मन्दिर दसवीं शती ई० का श्वेताम्बर जैन मन्दिर है ।" ११५६ ई० में मन्दिर में २४ देवकुलिकाओं का निर्माण किया गया । मन्दिर में १४ महाविद्याओं, दिक्पालों, गोमुख (१), सर्वानुभूति (५), ब्रह्मशान्ति (१) चक्रेश्वरी (२), अम्बिका (२), गणेश और नवग्रहों की मूर्तियां हैं। मन्दिर की जंघा पर द्विभुज दिक्पालों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । दिक्पालों के अतिरिक्त मन्दिर की अन्य सभी मूर्तियां चतुर्भुज हैं । जैन परम्परा के अनुरूप यहां दस दिक्पालों की मूर्तियां हैं । नवें और दसवें दिक्पाल क्रमशः ब्रह्मा एवं अनन्त हैं । त्रिमुख ब्रह्मा जटामुकुट एवं श्मश्रु, और अनन्त पांच सर्पफणों के छत्र से युक्त हैं । जटामुकुट से युक्त चतुर्भुज ब्रह्मशान्ति (अधिष्ठान ) की भुजाओं में वरदाक्ष, पद्म, छत्र एवं जलपात्र हैं । अधिष्ठान पर महालक्ष्मी और वैरोट्या की भी मूर्तियां हैं । ause की सीढ़ियों के समीप ऐसी दो देवियां उत्कीर्ण हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं है । एक देवी की भुजाओं में पद्म, अंकुश, पाश एवं फल हैं । १२ दूसरी देवी के पार्श्व में एक घट (वाहन) और भुजाओं में फल, पद्म, दण्ड (?) एवं जलपात्र हैं । गूढ़मण्डप की द्वारशाखा की कुर्मवाहना देवी की पहचान भी सम्भव नहीं है । देवी के करों में अभयमुद्रा, पाश, दण्ड (?) एवं कमल हैं। गूढमण्डप एवं गर्भगृह के प्रवेश द्वारों पर द्विभुज एवं चतुर्भुज महाविद्याओं की सवाहन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । इनमें मानवी एवं सर्वास्त्रमहाज्वाला के अतिरिक्त अन्य सभी महाविद्याओं की मूर्तियां हैं । इनके १. प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९०६-०७, पृ० ३१ २ वही, १९११ - १२, पृ० ५३ -४ जैन, के० सी० पू०नि०, पृ० ११३ ५ वही, पृ० ११३ - १४; गोयत्ज, एच०, दि आर्ट एण्ड आर्किटेक्चर ऑव बीकानेर स्टेट, आक्सफोर्ड, १९५०, पृ० ५८ ६ शर्मा, ब्रजेन्द्रनाथ, जैन प्रतिमाएं, दिल्ली, १९७९, पृ० १०-१९ ७ प्रो०रि०आ०स०इं०, वे०स०, १९०४-०५, पृ० ६१ ३ वही, १९०७-०८, पृ० ४८-४९ ८ जैन, के० सी० पू०नि०, पृ० ११४-१५ ९ ढाकी, एम० ए० पू०नि०, पृ० ३०५ १० प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९०७-०८, पृ० ४३; ढाकी, एम० ए०, पू०नि०, पृ० ३३३ - ३४ ११ प्रो०रि०आ०स०ई०, वे०स०, १९०७-०८, पृ० ५९, कृष्ण देव, पू०नि०, पृ० ३६; ढाकी, एम० ए०, पू०नि०, पृ० ३२८-३२ १२ मन्दिर के गूढमण्डप की द्वारशाखा पर भी इस देवी की एक मूर्ति है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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