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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान सरस्वती (४), सर्पफणों के छत्र से युक्त पाखं यक्ष, तथा अर्द्धमण्डप के पूर्वी छज्जे पर मुनिसुव्रत के वरुण यक्ष की मी मूर्तियां दृष्टिगत होती हैं ।' मन्दिर पर तीन ऐसी भी मूर्तियां हैं जिनकी पहचान सम्भव नहीं । अर्द्धमण्डप के उत्तरी छज्जे पर सर्वानुभूति एवं अम्बिका से युक्त ऋषभ की एक मूर्ति है। गूढ़मण्डप के प्रवेश द्वार के दहलीज पर भी सर्वानुभूति और अम्बिका निरूपित हैं । सर्वानुभूति की दो अन्य मूर्तियां गूढ़मण्डप की पश्चिमी भित्ति पर हैं । मन्दिर की भित्ति पर त्रिभंग में खड़ी द्विभुज अष्टदिक्पालों की सवाहन मूर्तियां भी हैं। गूढ़मण्डप में सुपार्श्व एवं पार्श्व की दो मूर्तियां हैं । ५८ देवकुलिकाओं की सवाहन महाविद्या मूर्तियां द्विभुज, चतुर्भुज एवं षड्भुज " हैं । इनमें मानवी और महाज्वाला महाविद्याओं की एक मो मूर्ति नहीं है । हंसवाहना मानसी की केवल एक ही मूर्ति (देवकुलिका ४ ) है । देवकुलिकाओं की महाविद्या मूर्तियों के निरूपण में महावीर मन्दिर की पूर्ववर्ती मूर्तियों एवं चतुविशतिका के प्रभाव स्पष्ट हैं । देवकुलिकाओं पर सरस्वती (६), अम्बिका यक्षी ( २ ), सर्वानुभूति यक्ष, अष्ट-दिक्पालों, गणेश (३) एवं जीवन्तस्वामी महावीर की मूर्तियां हैं। सरस्वती की भुजाओं मे पद्म और पुस्तक प्रदर्शित हैं। एक मूर्ति (देवकुलिका १ ) में सरस्वती के दोनों हाथों में वीणा है । देवकुलिकाओं की गणेश मूर्तियां जैन शिल्प में गणेश की प्राचीनतम ज्ञात मूर्तियां हैं। इनमें चतुर्भुज एवं गजमुख गणेश परशु (या शूल), स्वदंत ( या अंकुश ), पद्म एवं मोदकपात्र से युक्त हैं । ७ पाश और शंख से युक्त एक द्विभुज देवी की पहचान सम्भव नहीं है । देवकुलिका १ के दक्षिणी अधिष्ठान पर श्मश्रु एवं जटामुकुट से शोभित और ललितमुद्रा में आसीन ब्रह्मशान्ति यक्ष की एक चतुर्भुज मूर्ति उत्कीर्ण है । ब्रह्मशान्ति की भुजाओं में वरदमुद्रा, स्रुक, पुस्तक एवं जलपात्र हैं । वलानक में १०१९ ई० की एक विशाल पार्श्वनाथ मूर्ति रखी है । देवकुलिकाओं और तोरणद्वार पर जीवन्तस्वामी महावीर की कुल आठ मूर्तियां हैं ( चित्र ३७) । इनमें मुकुट एवं हार आदि आभूषणों से सज्जित जीवन्तस्वामी महावीर कायोत्सर्ग में खड़े हैं । जीवन्तस्वामी की तीन स्वतन्त्र मूर्तियां (११वीं शती ई०) वलानक में भी सुरक्षित हैं । इन मूर्तियों में जीवन्तस्वामी के साथ अष्ट- प्रातिहार्यं यक्ष-यक्षी युगल, महाविद्याएं एवं लघु जिन आकृतियां भी निरूपित हैं । देवकुलिका १ और ३ के वेदिकाबन्धों पर जिनों के जीवनदृश्य उत्कीर्णं हैं । ये जीवनदृश्य सम्भवतः ऋषभ और पार्श्व से सम्बन्धित हैं । देवकुलिका २ के वेदिकाबन्ध पर किसी जिन के जन्म अभिषेक का दृश्य है । वलानक के एक पट्ट (१२०२ ई०) पर २२ जिनों की माताओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं जिनकी गोद में एक-एक बालक बैठा है। ओसिया के हिन्दू मन्दिरों पर भी दो जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं जो उस स्थल पर हिन्दुओं एवं जैनों के मध्य की सौमनस्यता की साक्षी हैं। एक मूर्ति (पार्श्वनाथ ) सूर्य मन्दिर की पुर्वी भिति पर है और दूसरी पूर्वी समूह के पंचरथ मन्दिर पर है । १ ढाकी, एम० ए० पू०नि०, पृ० ३१७ २ सर्वानुभूति धन के थैले और अम्बिका आम्रलुम्बि एवं बालक से युक्त हैं । ३ दो भुजाओं में शूल एवं सर्प से युक्त ईशान् चतुर्भुज है, और कुबेर एवं यम की दो-दो मूर्तियां हैं । ४ पूर्वी और पश्चिमी समूहों की उत्तरी ( प्रथम ) देवकुलिकाओं को क्रमशः १ और २ एवं उसी क्रम में दूसरी देवकुलिकाओं को ३ और ४ की संख्याएं देकर अभिव्यक्त किया गया है । वलानक की पूर्वी देवकुलिका की संख्या ५ है । ५ केवल महामानसी ही षड्भुज है । ६ देवकुलिकाओं (१ और २) पर अम्बिका की लाक्षणिक विशेषताओं से प्रभावित ५ द्विभुज स्त्री मूर्तियां हैं जो सम्भवतः मातृदेवियों की मूर्तियां हैं। इन आकृतियों की एक भुजा में बालक ओर दूसरी में फल या जलपात्र है । देवकुलिका १ की दक्षिण जंघा की एक मूर्ति में बालक के स्थान पर आम्रलुम्बि भी प्रदर्शित है । ७ एक उदाहरण में वाहून गज है । ८ तिवारी, एम० एन० पी०, 'ओसिया से प्राप्त जीवन्तस्वामी की अप्रकाशित मूर्तियां', विश्वभारती, खं० १४, अं० ३, पृ० २१५-१८ ९ यहां अष्ट- प्रातियों में सिंहासन नहीं उत्कीर्ण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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