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________________ जैन देवकुल का विकास ] ४१ ल० ९७३ ई०) में १६ महाविद्याओं की प्रारम्भिक सूची प्राप्त होती है जिसे बाद में उसी रूप में स्वीकार कर लिया गया। १६ महाविद्याओं की अन्तिम सूची में निम्नलिखित नाम हैं : __ रोहिणी, प्राप्ति, वज्रशृंखला, वज्रांकुशा, चक्रेश्वरी या अप्रतिचक्रा (जाम्बुनदा-दिगम्बर), नरदत्ता या पुरुषदत्ता, काली या कालिका, महाकाली, गौरी, गान्धारी, सर्वास्त्र-महाज्वाला या ज्वाला (ज्वालामालिनी-दिगम्बर), मानवी, वैरोट्या (वैरोटी-दिगम्बर), अच्छुप्ता (अच्युता-दिगम्बर), मानसी एवं महामानसी । महाविद्याओं के लाक्षणिक स्वरूपों का निरूपण सर्वप्रथम बप्पमट्टि की चतुर्विशतिका एवं शोभनमुनि की स्तुति चतुर्विशतिका में किया गया है । जैन शिल्प में महाविद्याओं के स्वतन्त्र उत्कीर्णन का प्राचीनतम उदाहरण ओसिया (जोधपुर, राजस्थान) के महावीर मन्दिर (ल०८ वीं-९ वींशती ई०) से प्राप्त होता है। नवीं शती ई० के बाद गुजरात एवं राजस्थान के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों पर महाविद्याओं का नियमित चित्रण प्राप्त होता है। गुजरात एवं राजस्थान के बाहर महा. विद्याओं का निरूपण लोकप्रिय नहीं था । १६ महाविद्याओं के सामूहिक चित्रण के उदाहरण कुम्भारिया (बनासकांठा, गुजरात) के शान्तिनाथ मन्दिर (११वीं शतीई०), विमलवसही (दो समूह : रंगमण्डप एवं देवकुलिका ४१,१२वीं शती ई०) एवं लूणवसही (रंगमण्डप, १२३० ई०) से प्राप्त होते हैं (चित्र ७८)। राम और कृष्ण राम और कृष्ण-बलराम को जैन ग्रन्थकारों ने विशेष महत्व दिया। इसी कारण इनके जीवन की घटनाओं का विस्तार से उल्लेख करने वाले स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना की गई। वसुदेवहिण्डी, पद्मपुराण, कहावली, उत्तरपुराण (गुणभद्रकृत-९ वीं शती ई०), महापुराण (पुष्पदन्तकृत-९६५ ई०), पउमचरिउ (स्वयम्भूदेवकृत-९७७ ई०) और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों में रामकथा, और हरिवंशपुराण (जिनसेनकृत), हरिवंशपुराण (धवलकृत-११ वीं-१२ वीं शती ई०) एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि में कृष्ण-बलराम से सम्बन्धित विस्तृत उल्लेख हैं। जैन शिल्प में राम का चित्रण केवल खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर पर प्राप्त होता है। कृष्ण-बलराम का निरूपण देवगढ़ (मन्दिर २) एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ (क्र० ६६.५३) को नेमिनाथ मूर्तियों में प्राप्त होता है (चित्र २७,२८) । विमलवसही, लूणवसही और कुंभारिया के महावीर मन्दिर के वितानों पर भी नेमिनाथ के जीवनदृश्यों में और स्वतन्त्र रूप में कृष्ण-बलराम के चित्रण हैं (चित्र २२,२९)।" भरत और बाहुबली जैन ग्रन्थों में ऋषभनाथ के दो पुत्रों, भरत और बाहुबली के युद्ध के विस्तृत उल्लेख हैं। युद्ध में विजय के पश्चात् बाहुबली ने संसार त्याग कर कठोर तपस्या की और भरत ने चक्रवर्ती के रूप में शासन किया। जीवन के अन्तिम वर्षों में भरत ने भी दीक्षा ग्रहण की। दोनों ने कैवल्य प्राप्त किया। जैन शिल्प में भरत-बाहुबली के युद्ध का चित्रण १ शाह, यू० पी०, पू०नि०, पृ० ११९-२० २ गुजरात और राजस्थान के बाहर १६ महाविद्याओं के सामूहिक शिल्पांकन का एकमात्र सम्भावित उदाहरण खजुराहो के आदिनाथ मन्दिर (११ वीं शती ई०) के मण्डोवर पर है। ३ तिवारी, एम० एन० पी०, 'दि आइकानोग्राफी ऑव दि सिक्सटीन जैन महाविद्याज ऐज डेपिक्टेड इन दि शांतिनाथ टेम्पल्, कुंभारिया', संबोधि, खं० २, अं० ३, पृ० १५-२२ ४ तिवारी, एम० एन० पी०, 'ए नोट आन ऐन इमेज ऑव राम ऐण्ड सीता आन दि पार्श्वनाथ टेम्पल, खजुराहो', जैन जर्नल, खं० ८, अं० १, पृ० ३०-३२ ५ तिवारी, एम० एन० पी०, 'जैन साहित्य और शिल्प में कृष्ण', जै०सि०भा०, भाग २६, अं० २, पृ० ५-११; तिवारी, एम०एन०पी०, 'ऐन अन्पब्लिश्ड इमेज ऑव नेमिनाथ फ्राम देवगढ़',जैन जर्नल, खं०८, अं०२, पृ.०८४-८५ ६ पउमचरिय ४.५४-५५; हरिवंशपुराण ११.९८-१०२; आदिपुराण ३६.१०६-८५; त्रिश०पु०च० ५.७४०-९८ ७ हरिवंशपुराण १३.१-६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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