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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान ( मन्दिर १२, ८६२ ई०) से प्राप्त होता है । दूसरा उदाहरण ( ११ वीं - १२ वीं शती ई०) खण्डगिरि ( पुरी, उड़ीसा) की बारभुजी गुफा में है । दोनों उदाहरण दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित हैं । विद्यादेवियां ४० विद्यादेवियों से सम्बन्धित उल्लेख वसुदेवहिण्डी (ल०छठीं शती ई०), आवश्यकचूर्ण ( ल०६७७ ई०), आवश्यक निर्युक्ति (८ वीं शती ई०), हरिवंशपुराण ( ७८३ ई०), चउपन्न महापुरुषचरियम् (८६८ ई०) एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में हैं । इनमें पउमचरिय की कथा का ही विस्तार है ।' हरिवंशपुराण एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उल्लेख है कि धरण ने नमि और विनमि को विद्याधरों पर स्वामित्व और ४८ हजार विद्याओं का वरदान दिया । । वसुदेवहिण्डी (संघदासकृतं) में विद्याओं को गन्धर्व एवं पन्नगों से सम्बद्ध कहा गया है और महारोहिणी, प्रज्ञप्ति, गौरी, महाज्वाला, बहुरूपा, विद्युन्मुखी एवं वेयाल आदि विद्याओं का उल्लेख किया गया है । आवश्यकचूर्णि (जिनदासकृत ) एवं आवश्यक निर्युक्ति (हरिभद्रसूरिकृत) में गौरी, गांधारी, रोहिणी और प्रज्ञप्ति का प्रमुख विद्याओं के रूप में उल्लेख है । ४ नवीं शती ई० के अन्त में निश्चित १६ महाविद्याओं की सूची में उपर्युक्त चार विद्याएं भो सम्मिलित हैं । पद्मचरित (रविषेणकृत - ६७६ ई०) में नमि - विनमि की कथा और प्रज्ञप्ति विद्या का उल्लेख है । हरिवंशपुराण में प्रज्ञप्ति, रोहिणी, अंगारिणी, महागौरी, गौरी, सर्वविद्याप्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायूरी, हारी, निर्वज्ञशाड्वला, तिरस्कारिणी, छायासंक्रामिणी, कूष्माण्ड गणमाता, सर्वविद्याविराजिता, आर्य कूष्माण्ड देवी, अच्युता, आर्यवती, गान्धारी, निर्वृति, दण्डाध्यक्षगण, दण्डभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली और कालमुखी आदि विद्याओं का उल्लेख है । चतुविशतिका (बप्पभट्टिसूरिकृत - ७४३-८३८ ई० ) में २४ जिनों के साथ २४ यक्षियों के स्थान पर महाविद्याओं ̈, वाग्देवी सरस्वती एवं कुछ यक्षियों और अन्य देवों के उल्लेख हैं । ग्रन्थ में १६ के स्थान पर केवल १५ महाविद्याओं का ही स्वरूप विवेचित है ।" १६ महाविद्याओं की सूची ल० नवीं शती ई० के अन्त तक निश्चित हुई । १६ महाविद्याओं की सूची में अधिकांशतः पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित विद्याएं हो सम्मिलित हैं । तिजयपहुत्त (मानवदेवसूरिकृत - ९वीं शती ई०), संहितासार ( इन्द्रनन्दिकृत - ९३९ ई०) एवं स्तुति चतुर्विंशतिका ( या शोभन स्तुति - शोभनमुनिकृत १ शाह, यू०पी०, 'आइकनोग्राफी ऑव सिक्सटिन जैन महाविद्याज', ज०ई०सी०ओ०आ०, खं० १५, पृ० ११५ २ हरिवंशपुराण २२.५४-७३ ३ त्रि० श०पु०च० १.३.१२४-२२६ : ग्रन्थ में गौरी, प्रज्ञप्ति, मनुस, गान्धारी, मानवी, कैशिकी, भूमितुण्ड, मूलवीर्य, संकुका, पाण्डुकी, काली, श्वपाकी, मातंगी, पार्वती, वंशालया, पाम्शुमूल एवं वृक्षमूल विद्याओं के उल्लेख हैं । ४ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ० ११६-१७ ५ जैन ग्रन्थों में अनेक विद्यादेवियों के उल्लेख हैं । ल० नवीं शती ई० में १६ विद्यादेवियों की सूची तैयार हुई | विभिन्न लाक्षणिक ग्रन्थों में इन्हीं १६ विद्यादेवियों का निरूपण हुआ एवं पुरातात्विक स्थलों पर भी इन्हीं को मूर्त अभिव्यक्ति मिली । जैन विद्यादेवियों के समूह में इनकी लोकप्रियता के कारण इन्हें महाविद्या कहा गया । ६ हरिवंशपुराण २२.६१-६६ ७ जिनों की प्रशंसा में लिखे स्तोत्रों में यक्ष-यक्षी युगलों के स्थान पर महाविद्याओं का निरूपण इस सम्भावना की ओर संकेत देता है कि १६ महाविद्याओं की सूची २४- यक्ष-यक्षियों की अपेक्षा कुछ प्राचीन थी । दिगम्बर परम्परा की २४ यक्षियों में से अधिकांश के नाम भी महाविद्याओं से ग्रहण किये गये । ८ नेमि और पार्श्व दोनों ही के साथ यक्षी के रूप में अम्बिका निरूपित है । अजित के साथ सर्पफणों से युक्त यक्षी, और ऋषभ, मल्लि एवं मुनिसुव्रत के साथ वाग्देवी सरस्वती निरूपित हैं । ९ सर्वास्त्र -महाज्वाला का अनुल्लेख है । मानसी के नाम से वर्णित देवी में महाज्वाला एवं मानसी दोनों की विशेषताएं संयुक्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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