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जैन देवकुल का विकास ]
यक्ष — गोवदन, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर, तुम्बुरष, मातंग, विजय, अजित, ब्रह्म ब्रह्मेश्वर कुमार, षण्मुख, पाताल, किन्नर, किंपुरुष, गरुड, गन्धर्व, कुबेर, वरुण, भृकुटि, गोमेध, पावं, मातंग और गुह्यक ।' यक्षियां - चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंखला, वज्रांकुशा, अप्रतिचक्रेश्वरी, पुरुषदत्ता, ज्वालामालिनी, महाकाली, गौरी, गांधारी, वैरोटी, सोलसा, अनन्तमती, मानसी, महामानसी, जया, बहुरूपिणी, कुष्माण्डी, पद्मा और सिद्धायिनी ।
प्रवचनसारोद्धार में प्राप्त २४ यक्ष-यक्षियों की सूची निम्नलिखित है:
यक्ष - गोमुख, महायक्ष, त्रिमुख, ईश्वर, तुंबरु, कुसुम, मातंग, विजय, अजित, ब्रह्मा, मनुज (ईश्वर), सुरकुमार, षण्मुख, पाताल, किन्नर, गरुड, गन्धर्व, यक्षेन्द्र, कूबर, वरुण, भृकुटि, गोमेध, वामन (पाखं) और मातंग | 3
यक्षियां - चक्रेश्वरी, अजिता, दुरितारि, काली, महाकाली, अच्युता, शान्ता, ज्वाला, सुतारा, अशोका, श्रीवत्सा (मानवी), प्रवरा ( चंडा), विजया ( विदिता ), अंकुशा, पन्नगा ( कन्दर्पा ), निर्वाणी, अच्युता (बला), धारणी, वैरोट्या, अच्छुता (नरदत्ता), गांधारी, अम्बा, पद्मावती और सिद्धायिका ।
१ गोवदणमहाजक्खा तिमुहो जक्खेसरो य तुंबुरओ । मादंगविजयअजिओ बम्हो बम्हेसरो य कोमारो ॥ छम्मुहओ पादालो किण्णर किंपुरुसगरुडगंधव्वा । तह य कुबेरो वरुणो भिउडीगोमेघपासमातंगा || गुज्झकओ इदि एदे जक्खा चउवीस उसहपहुदीणं । तित्थयराण २ जक्खीओ
२४ - यक्ष-यक्षी युगलों के लाक्षणिक स्वरूपों का विस्तृत निरूपण सर्वप्रथम ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० के ग्रन्थों, निर्वाणकलिका, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र एवं प्रतिष्ठासारसंग्रह में प्राप्त होता है ।" जैन शिल्प में केवल यक्षियों के ही सामूहिक उत्कीर्णन के प्रयास किये गये जिसका प्रथम उदाहरण देवगढ़ ( ललितपुर, उ० प्र० ) के शान्तिनाथ मन्दिर
पासे चें भत्तिसत्ता || तिलोयपण्णत्त ४.९३४-३६ चक्केसरिरोहिणीपणत्तिवज्जसिखलाया ।
अपदिचक्के सरिपुरिसदत्ता य ॥
वज्जं कुसा य मणवेगाकालीओ तह जालामालिणी महाकाली । गउरीगंधारीओ वेरोटी सोलसा अनंतमदी || माणसिमहमाणसिया जया य विजयापराजिदाओ य ।
बहुरूपिणि कुम्भंडी पउमासिद्धायिणीओ त्ति ।। तिलोयपणत्ति ४९३७-३९
३ जक्खो गोमुह महजक्ख तिमुह ईसरतुंबरू कुसुमो । मायं गो विजया जिय बंभो मणुओ य सुर कुमारो ॥ छमुह पायाल किन्नर गरुडो गंधव्व तह य जक्खिदो ।
कुबर वरुणो भिउडा गोमेहो वामण मायंगो || प्रवचनसारोद्वार ३७५-७६
४ देवी च चक्केसरी । अजिया दुरियारि काली महाकाली । अच्युत संता जाला । सुतारयाऽसोय सिरिवच्छा ॥ पवर विजयां कुसा | पणत्ति निव्वाणी अच्युता धरणी । वइरो दुत्त गंधारि । अंब ५ श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों में
अन्तर है ।
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मनोवेगा, काली, विजया, अपराजिता,
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पउमावई सिद्धा । प्रवचनसारोद्धार ३७७-७८
इन यक्ष-यक्षियों के नामों एवं लाक्षणिक विशेषताओं के सन्दर्भ में पर्याप्त
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