SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान 1 में प्रारम्भ हुआ। यक्ष की प्रारम्भिक मूर्तियां ओसिया के महावीर मन्दिर से मिली हैं। पाश्वनाथ की मूर्तियों में पारम्परिक यक्ष का चित्रण दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० में प्रारम्भ हआ।' यक्ष के साथ कूर्मवाहन केवल एक ही मूति (विमलवसही की देवकुलिका ४) में उत्कीर्ण है। जिन-संयुक्त एवं स्वतन्त्र मूर्तियों में यक्ष के साथ केवल सर्पफणों के छत्र और हाथ में सर्प के प्रदर्शन में ही परम्परा का निर्वाह किया गया है। पुरातात्विक स्थलों पर मूर्तिविज्ञान की दृष्टि से यक्ष का कोई स्वतन्त्र रूप भी नहीं निश्चित हुआ । केवल विमलवसही की देवकुलिका ४ की मूर्ति में ही यक्ष के निरूपण में पारम्परिक विशेषताएं प्रदर्शित हैं। एक उदाहरण के अतिरिक्त श्वेतांबर स्थलों की अन्य सभी जिन-संयुक्त मूर्तियों में यक्ष सर्वानुभूति है। पर दिगंबर स्थलों पर सामान्य लक्षणों वाले यक्ष के साथ ही कभी-कभी स्वतन्त्र लक्षणों वाले यक्ष भी निरूपित हैं। कई उदाहरणों में सर्पफणों के छत्र वाले यक्ष के हाथ में सर्प भी प्रदर्शित है। (२३) पद्मावती यक्षी शास्त्रीय परम्परा पद्मावती जिन पार्श्वनाथ की यक्षी है। दोनों परम्पराओं में पद्मावती का वाहन कुक्कुट-सर्प (या कुक्कुट) है: तथा देवी के मुख्य आयुध पद्म, पाश एवं अंकुश हैं । ... श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणलिका में चतुर्भुजा पद्मावती का वाहन कुकूट है और उसके दक्षिण करों में पद्म, और पाश तथा वाम में फल और अंकुश वर्णित हैं। समान लक्षणों का उल्लेख करने वाले अन्य सभी ग्रन्थों में कूट के वाहन के रूप में कुर्कुट-सर्प का उल्लेख है । मन्त्राधिराजकल्प में पद्मावती के मस्तक पर तीन सपंफणों के छत्र के प्रदर्शन का निर्देश है । दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में पद्मवाहना पद्मावती का चतुर्भुज, षड्भुज एवं चतुर्विंशतिभुज रूपों में ध्यान किया गया है। चतुर्भुजा पद्मावती के तीन हाथों में अंकुश, अक्षसूत्र एवं पद्म; तथा षड्भुजा यक्षी के करों में पाश, ..... १ देवगढ़, खजुराहो एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ २ मोदकपात्र के अतिरिक्त । ३ विमलवसही की देवकूलिका ४ की मूर्ति । ४ प्रतिष्ठासारसंग्रह मे वाहन पद्म है । ५ पद्मावती देवी कनकवर्णा कुकुंटवाहनां चतुर्भुजां पद्मपाशान्वितदक्षिणकरां फलांकुशाधिष्ठित वामकरां चेति ॥ निर्वाणकलिका १८.२३ ६ त्रिश०पु०च० ९.३.३६४-६५; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-पार्श्वनाथ ९३-९४; पार्श्वनाथचरित्र ७.८२९-३०; आचारदिनकर ३४, पृ० १७७; देवतामूर्तिप्रकरण ७.६३; रूपमण्डन ६.२१ . . . . ७ मन्त्राधिराजकल्प ३.६५ ८ देवी पद्मावती नाम्ना रक्तवर्णां चतुर्भुजा । पद्मासनांकुशं धत्ते अक्षसूत्रं च पंकजं । अथवा षड्भुजा देवी चतुर्विंशति सद्भुजा ॥ पाशासिकुंतवालेन्दुगदामुशलसंयुतं । - भुजाष्टकं समाख्यातं चतुर्विंशतिरुच्यते ॥ शंखासिचक्रवालेन्दु पद्मोत्पलशरासनं । पाशांकुशं घंट (यायु) बाणं मुशलखेटकं । त्रिशूलंपरशुं कुन्तं भिण्डमालं फलं गदा । पत्रंचपल्लवं धत्ते वरदा धर्मवत्सला ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.६७-७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy