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________________ १८४ [ जैन प्रतिमाविज्ञान है । यक्षी का निरूपण १४वीं महाविद्या अच्युता से प्रभावित है । " ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर की दक्षिणी भित्ति पर एक अष्टभुज मूर्ति (१०वीं शती ई०) है । इसमें ललितमुद्रा में विराजमान यक्षी के आसन के नीचे अश्ववाहन उत्कीर्ण है । यक्षी के अवशिष्ट हाथों में खड्ग, पद्म, कलश, घण्टा, फलक, आम्रलुम्बि एवं मातुलिंग प्रदर्शित हैं। खजुराहो के पुरातात्विक संग्रहालय में भी चतुर्भुजा मनोवेगा की एक मूर्ति (क्रमांक ९४० ) है । ग्यारहवीं शती ई० की इस स्थानक मूर्ति में यक्षी का अश्ववाहन पीठिका पर उत्कीर्ण है । यक्षी के एक अवशिष्ट हाथ में सनाल पद्म है। यक्षी के पावों में दो स्त्री सेविकाओं एवं उपासकों की मूर्तियां हैं। यक्षी के स्कन्धों के ऊपर चतुर्भुज सरस्वती की दो लघु मूर्तियां बनी हैं। बारभुजी गुफा की मूर्ति में चतुर्भुजा यक्षी हंसवाहना है । यक्षी के हाथों में वरदमुद्रा, वज्र (?), शंख (?) और पताका प्रदर्शित हैं । उपर्युक्त मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि बारभुजी गुफा की मूर्ति के अतिरिक्त अन्य में सामान्यतः अश्ववाहन एवं खड्ग और खेटक के प्रदर्शन में दिगंबर परम्परा का निर्वाह किया गया है । (७) मातंग यक्ष शास्त्रीय परम्परा सिंह है। मातंग जिन सुपार्श्वनाथ का यक्ष है । श्वेतांबर परम्परा में मातंग का वाहन गज और दिगंबर परम्परा में 'श्वेतांबर परम्परा — निर्वाणकलिका में चतुर्भुज मातंग को गजारूढ़ तथा दाहिने हाथों में बिल्वफल और पाश एवं बायें में नकुल और अंकुश से युक्त कहा गया है।" आचारदिनकर में पाश एवं नकुल के स्थान पर क्रमशः नागपाश और वज्र का उल्लेख है । अन्य ग्रन्थों में निर्वाणकलिका के ही आयुध उल्लिखित हैं । ७ मातंग के साथ गजवाहन एवं अंकुश और वज्र का प्रदर्शन हिन्दू देव इन्द्र का प्रभाव हो सकता है । दिगंबर परम्परा – प्रतिष्ठासारसंग्रह में द्विभुज यक्ष के करों में वज्र एवं दण्ड के वाहन का अनुल्लेख है ।" प्रतिष्ठासारोद्धार में मातंग का वाहन सिंह है और उसकी भुजाओं में है। अपराजित पृच्छा में मातंग का वाहन मेष है और उसकी भुजाओं में गदा और पाश वर्णित है । १" दक्षिण भारतीय परम्परा — दोनों परम्पराओं में मातंग ( या वरनंदि) का वाहन सिंह है । श्वेतांबर एवं दिगंबर ग्रन्थों में द्विभुज यक्ष के हाथों में त्रिशूल एवं दण्ड का उल्लेख है । यक्ष-यक्षी लक्षण में चतुर्भुज यक्ष का करों में त्रिशूल, १ महाविद्या अच्युता का वाहन अश्व है और उसके हाथों में खड्ग, खेटक, शर एवं चाप प्रदर्शित हैं। ओसिया के महावीर मन्दिर पर समान लक्षणों वाली महाविद्या अच्युता की दो मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । २ पद्म का निचला भाग श्रृंखला के रूप में प्रदर्शित है । ३ सरस्वती के करों में अभयमुद्रा, पद्म, पुस्तक एवं जलपात्र हैं । ४ मित्रा, देबला, पु०नि०, पृ० १३० ५ मातंगयक्षं नीलवर्णं गजवाहनं चतुर्भुजं बिल्वपाशयुक्तदक्षिणपाणि नकुलकांकुशान्वितवामपाणि चेति । निर्वाणकलिका १८.७ ६ नीलोगजेन्द्रगमनश्च चतुर्भुजोपि बिल्वाहिपाशयुतदक्षिणपाणियुग्मः । प्रदर्शन का निर्देश है, पर दण्ड और शूल का वर्णन वज्र कुशप्रगुणितीकृतवामपाणिर्मातंगराड् .... ७ त्रि० श०पु०च० ३.५.११०-११; पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट - सुपार्श्वनाथ १८-१९; मन्त्राधिराजकल्प ३.३२ ८ सुपार्श्वनाथदेवस्य यक्षो मातंग संज्ञकः । farstatusोसौ कृष्णवर्णः प्रकीर्तितः ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.२९ ९ सिंहाधिरोहस्य सदण्डशूलसव्यान्यपाणेः कुटिलाननस्य । प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१३५; प्रतिष्ठातिलकम् ७.७, पृ० ३३३ १० मातंगः स्याद् गदापाशी द्विभुजो मेषवाहनः । अपराजित पृच्छा २२१.४७ Jain Education International .... ॥ आचारदिनकर ३४, पृ० १७४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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