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________________ १८० [ जैन प्रतिमाविज्ञान कमण्डलु, वरदमुद्रा एवं पद्म हैं। यक्ष-यक्षी-लक्षण में हंसवाहना यक्षी के करों में वरदमुद्रा, फल, पाश एवं अक्षमाला का वर्णन है। वाहन हंस एवं भुजाओं में पाश, अक्षमाला एवं फल के प्रदर्शन में दक्षिण भारतीय परम्पराएं उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा के समान हैं। मूर्ति-परम्परा (क) स्वतन्त्र मूर्तियां-वज्रशृंखला की तीन मूर्तियां मिली हैं। ये मूर्तियां उत्तर प्रदेश में देवगढ़ से (मन्दिर १२) एवं उड़ीसा में उदयगिरि-खण्डगिरि की नवमुनि और बारभुजी गुफाओं से मिली हैं । इनमें यक्षी के साथ पारम्परिक विशेषताएं नहीं प्रदर्शित हैं। देवगढ़ की मूर्ति (८६२ ई०) में जिन अभिनन्दन के साथ आमूर्तित द्विभुजा यक्षी को लेख में 'भगवती सरस्वती' कहा गया है। यक्षी की दाहिनी भुजा में चामर है और बायीं जानु पर स्थित है। नवमुनि गुफा की मूर्ति में यक्षी चतुर्भुजा है तथा उसकी भुजाओं में अभयमुद्रा, चक्र, शंख और बालक हैं । किरीटमुकुट से शोभित यक्षी का वाहन कपि है। स्पष्ट है कि यक्षी के निरूपण में कलाकार ने संयुक्त रूप से हिन्दू वैष्णवी (चक्र, शंख एवं किरीटमकूट) एवं जैन यक्षी अम्बिका (बालक)3 की विशेषताएं प्रदर्शित की हैं। यक्षी का कपिवाहन अभिनन्दन के लांछन (कपि) से ग्रहण किया गया है । बारभुजी गुफा की मूर्ति में यक्षी अष्टभुजा और पद्म पर आसीन है। यक्षी के दो हाथों में उपवीणा (हार्प) और दो में वरदमुद्रा एवं वज्र हैं । शेष हाथ खण्डित हैं। (ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां-देवगढ़ एवं खजुराहो की जिन अभिनन्दन की तीन मूर्तियों (१० वीं-११ वीं शती) में यक्षी सामान्य लक्षणों वाली और द्विभुजा है तथा उसके करों में अभयमुद्रा एवं फल (या कलश) प्रदर्शित हैं। _(५) तुम्बरु यक्ष शास्त्रीय परम्परा तुम्बरु (या तुम्बर) जिन सुमतिनाथ का यक्ष है। दोनों परम्पराओं में तुम्बरु को चतुर्भुज और गरुड वाहनवाला कहा गया है। श्वेतांबर परम्परा-निर्वाणकलिका में तुम्बरु के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं शक्ति और बाये में नाग एवं पाश के प्रदर्शन का निर्देश है। दो ग्रन्थों में नाग के स्थान पर गदा का उल्लेख है। अन्य ग्रन्थों में गदा और नाग-पाश दोनों के उल्लेख हैं। दिगंबर परम्परा-प्रतिष्ठासारसंग्रह में नाग यज्ञोपवीत से सुशोभित चतुर्भुज यक्ष के दो करों में दो सर्प और शेष में वरदमुद्रा एवं फल का वर्णन है।' परवर्ती ग्रन्थों में भी इन्हीं विशेषताओं के उल्लेख हैं।' १ रामचन्द्रन, टी०एन०, पू०नि०, पृ० १९९ २ मित्रा, देवला, पू०नि०, पृ० १२८ ३ बालक का प्रदर्शन हिन्दू मातृका का भी प्रभाव हो सकता है। ४ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३० ५ ""तुम्बठ्यक्षं गरुडवाहनं चतुर्भुजं वरदशक्तियुत-दक्षिणपाणि नागपाशयुक्तवामहस्तं चेति । निर्वाणकलिका १८.५ ६ दक्षिणौ वरदशक्तिधरौ बाहू समुद्वहन् । वामौ बाहू गदाधारपाशयुक्तौ च धारयन् ॥ त्रिश०पु००० ३.३.२४६-४७ द्रष्टव्य, पद्मानन्दमहाकाव्यः परिशिष्ट-सुमतिनाथ १८-१९ ७ .."वरशक्तियुक्तहस्तौ गदोरगपपाशगवामपाणिः । मन्त्राधिराजकल्प ३.३०, द्रष्टव्य, आचारदिनकर ३४, पृ०१७४ ८ सुमतेस्तुम्बरोयक्षः श्यामवर्णश्चतुर्भुजः । सर्पद्वयफलं धत्ते वरदं परिकीर्तितः । सर्पयज्ञोपवीतोसौ खगाधिपतिवाहनः ।। प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.२३-२४ ९ द्रष्टव्य, प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१३३; प्रतिष्ठातिलकम् ७.५, पृ० ३३२; अपराजितपुच्छा २२१.४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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