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यक्ष-यक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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हाथों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, शंख एवं चक्र का उल्लेख है। इस प्रकार उत्तर और दक्षिण भारत के ग्रन्थों में चक्र, शंख, अंकुश एवं अमय-(या वरद-) मुद्रा के प्रदर्शन में समानता प्राप्त होती है । यक्ष-यक्षी-लक्षण का विवरण पूरी तरह , प्रतिष्ठासारसंग्रह के समान है। मूर्ति-परम्परा
गुजरात-राजस्थान-इस क्षेत्र की अजितनाथ मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का चित्रण नहीं प्राप्त होता है। पर आबू, कुम्भारिया, तारंगा, सादरी, घाणेराव जैसे श्वेतांबर स्थलों पर दो ऊवं करों में अंकुश एवं पाश धारण करने वाली चतुर्भुजा देवी का निरूपण विशेष लोकप्रिय था। देवी के निचले करों में वरद-(या अभय-) मुद्रा एवं मातुलिंग (या जलपात्र) प्रदर्शित हैं । देवी का वाहन कभी गज और कभी सिंह है । देवी की सम्भावित पहचान अजिता से की जा सकती है।
उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश-( क ) स्वतन्त्र मूर्तियां-मालादेवी मन्दिर ( ग्यारसपुर, विदिशा ) एवं देवगढ से रोहिणी की दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की तीन मूर्तियां मिली हैं। मालादेवी मन्दिर की मूर्ति (१० वीं शती ई०) उत्तरी मण्डप के अधिष्ठान पर उत्कीर्ण है। इसमें द्वादशभुजा रोहिणी ललितमुद्रा में लोहासन पर विराजमान है। लोहासनके नीचे एक अस्पष्ट सी पशु आकृति (सम्भवतः गज-मस्तक) उत्कीर्ण है। यक्षी के छह अवशिष्ट हाथों में पद्म, वज्र, चक्र, शंख, पुष्प और पद्म प्रदर्शित हैं। देवगढ़ में रोहिणी की दो मूर्तियां हैं। एक मूर्ति (१०५९ ई०) मन्दिर ११ के सामने के स्तम्भ पर है (चित्र ४७)। इसमें अष्टभुजा रोहिणी ललितमुद्रा में भद्रासन पर विराजमान है। आसन के नीचे गोवाहन उत्कीर्ण है । रोहिणी वरदमुद्रा, अंकुश, बाण, चक्र, पाश, धनुष, शूल एवं फल से युक्त है । दूसरी मूर्ति (११वीं शती ई०) मन्दिर १२ के अर्धमण्डप के समीप के स्तम्भ पर है । इसमें गोवाहना रोहिणी चतुर्भुजा है और उसकी भुजाओं में वरदमुद्रा, बाण, धनुष एवं जलपात्र हैं।
(ख) जिन-संयुक्त मूर्तियां-जिन-संयुक्त मूर्तियों में यक्षी का अपने विशिष्ट स्वतन्त्र स्वरूप में निरूपण नहीं प्राप्त होता । देवगढ़ एवं खजुराहो की अजितनाथ की मूर्तियों में सामान्य लक्षणों वाली द्विभुजा यक्षी अभयमुद्रा (या खडग) एवं फल (या जलपात्र) से युक्त है।
बिहार-उड़ीसा-बंगाल-इस क्षेत्र में केवल उड़ीसा की नवमुनि एवं बारभुजी गुफाओं से ही रोहिणी की मूर्तियां (११वीं-१२वीं शती ई०) मिली हैं। नवमुनि गुफा की मूर्ति में अजित की यक्षी चतुर्भुजा है और उसका वाहन गज है। यक्षी के हाथों में अभयमुद्रा, वज्र, अंकुश और तीन कांटे वाली कोई वस्तु प्रदर्शित हैं। किरीटमुकुट से शोभित यक्षी के ललाट पर तीसरा नेत्र उत्कीर्ण है। यक्षी के निरूपण में गजवाहन एवं वज्र और अंकुश का प्रदर्शन हिन्दू इन्द्राणी (मातृका) का प्रभाव है । बारभुजी गुफा में अजित के साथ द्वादशभुजा रोहिणी आमूर्तित है । वृषमवाहना रोहिणी की अवशिष्ट दाहिनी भुजाओं में वरदमुद्रा, शूल, बाण एवं खड्ग और बायीं में पाश (?), धनुष, हल, खेटक, सनाल पद्म एवं घण्टा (?) प्रदर्शित हैं । यक्षी की एक बायीं भुजा वक्षःस्थल के समक्ष स्थित है। यक्षी के साथ वृषभवाहन एवं धनुष और बाण का प्रदर्शन रोहिणी महाविद्या का प्रभाव है। बारभुजी गुफा की एक दूसरी मूर्ति में रोहिणी अष्टभुजा है। वृषभवाहना यक्षी के शीर्ष भाग में गज-लांछन-युक्त अजितनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण है। रोहिणी के दक्षिण करों में वरदमुद्रा, पताका.
१ रामचन्द्रन, टी० एन०, पू०नि०, पृ० १९८ २ श्वेतांबर स्थलों पर महाविद्याओं की विशेष लोकप्रियता, यक्षियों की स्वतन्त्र मूर्तियों की अल्पता एवं अजितनाथ
की मूर्तियों में यक्ष-यक्षी का न उत्कीर्ण किया जाना, स पहचान में बाधक हैं। ३ देवगढ़ की मूर्तियों पर श्वेतांबर परम्परा की महाविद्या रोहिणी का प्रभाव है। गोवाहना रोहिणी महाविद्या की
भुजाओं में बाण, अक्षमाला, धनुष एवं शंख प्रदर्शित हैं। ४ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १२८
५ वही, पृ० १३०
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