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________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान वाहन गज और अज्ञातनाम दूसरे ग्रन्थ में सर्पं कहा गया है।" इस प्रकार स्पष्ट कि दक्षिण भारतीय परम्परा महायक्ष के निरूपण में उत्तर भारतीय दिगंबर परम्परा से सहमत है । महायक्ष के साथ सर्पवाहन का उल्लेख दक्षिण भारतीय परम्परा की नवीनता है । मूर्ति-परम्परा यहायक्ष की एक भी स्वतन्त्र मूर्ति नहीं मिली है । केवल देवगढ़ एवं खजुराहो की जिन-संश्लिष्ट मूर्तियों (११वींसाथ यक्ष का अंकन प्राप्त होता है (चित्र १५) । पर किसी भी उदाहरण में यक्ष सभी मूर्तियों में द्विभुज यक्ष सामान्य लक्षणों वाला है जिसके हाथों में मुद्रा १२वीं शती ई०) में ही अजितनाथ के परम्परा विहित लक्षणों से युक्त नहीं है एवं फल ( या जलपात्र) प्रदर्शित हैं । । (२) अजिता (या रोहिणी) यक्षी शास्त्रीय परम्परा जिन अजितनाथ की यक्षी को श्वेतांबर परम्परा में अजिता (या अजितबला या विजया) और दिगंबर परम्परा में रोहिणी नाम दिया गया है । दोनों परम्पराओं में चतुर्भुजा यक्षी को लोहासन पर विराजमान बताया गया है । श्वेतांबर परम्परा - निर्वाणकलिका में लोहासन पर विराजमान चतुर्भुजा अजिता के दाहिने हाथों में वरदमुद्रा एवं पाश और बायें हाथों में अंकुश एवं फल के प्रदर्शन का विधान है । 3 अन्य ग्रन्थों में भी उपर्युक्त लक्षणों के ही उल्लेख हैं । आचारदिनकर एवं देवतामूर्तिप्रकरण में यक्षी के वाहन के रूप में लोहासन के स्थान पर क्रमशः गाय और गोधा का उल्लेख है । ५ दिगंबर परम्परा – प्रतिष्ठासारसंग्रह में लोहासन पर विराजमान चतुर्भुजा रोहिणी के हाथों में वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, शंख एवं चक्र के अंकन का निर्देश है ।" अन्य ग्रन्थों में भी यही विवरण प्राप्त होता है । इस प्रकार दोनों परम्पराओं में केवल यक्षी के नामों एवं आयुधों के सन्दर्भ में ही भिन्नता प्राप्त होती है । श्वेतांबर परम्परा में अजिता के मुख्य आयुध पाश एवं अंकुश, और दिगंबर परम्परा में रोहिणी के मुख्य आयुध चक्र एवं शंख हैं । यक्षी का अजिता नाम सम्भवतः उसके जिन ( अजितनाथ ) से तथा रोहिणी नाम प्रथम महाविद्या रोहिणी से ग्रहण किया गया है। दक्षिण भारतीय परम्परा – दिगंबर परम्परा के अनुसार चतुर्भुजा यक्षी के ऊपरी हाथों में चक्र और नीचे के हाथों में अभयमुद्रा और कटकमुद्रा होने चाहिए । अज्ञातनाम श्वेतांबर ग्रन्थ में मकरवाहना चतुर्भुजा यक्षी के करों में वज्र, अंकुश, कटार (संकु) एवं पद्म के प्रदर्शन का निर्देश है । यक्ष-यक्षी लक्षण में धातु निर्मित आसन पर विराजमान यक्षी के १ रामचन्द्रन, टी० एन० पु०नि०, पृ० १९८ २ मन्त्राधिराजकल्प ३ .... समुत्पन्नामजिताभिधानां यक्षिणीं गौरवर्णा लोहासनाधिरूढां चतुर्भुजां बरदपाशाधिष्ठितदक्षिणकरां बीजपुरकांकुश - युक्तवामक चेति ॥ निर्वाणकलिका १८.२ ४ त्रि०श०पु०च० २.३.८४५-४६; पद्मानन्दमहाकाव्य : परिशिष्ट- अजितस्वामीचरित्र २१ - २२; मन्त्राधिराजकल्प ३.५२ ५ आचारदिनकर ३४, पृ० १७६; देवतामूर्तिप्रकरण ७.२१ ६ देवी लोहासना रोहिण्याख्या चतुर्भुजा । वरदाभयहस्तासौ शंखचक्रोज्वलायुधा ॥ प्रतिष्ठासारसंग्रह ५.१८ ७ प्रतिष्ठासारोद्धार ३.१५७; प्रतिष्ठातिलकम ७.२, पृ० ३४१; अपराजितपृच्छा २२१.१६ ८ महाविद्या रोहिणी की एक भुजा में शंख भी प्रदर्शित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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