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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
यक्ष एवं अम्बिका यक्षी की धारणा जैन आगम एवं टीका ग्रन्थों के माणिभद्र पूर्णभद्र यक्ष और बहुपुत्रिका यक्षी की प्रारम्भिक धारणा से प्रभावित है ।' ल० छठीं से नवीं शती ई० के मध्य की जिन मूर्तियों में सभी जिनों के साथ यही यक्ष-यक्षी युगक आमूर्तित है। इसका कारण यह था कि दसवीं ग्यारहवीं शती ई० के पूर्व सर्वानुभूति एवं अम्विका के अतिरिक्त अन्य किसी यक्ष - यक्षी युगल की लाक्षणिक विशेषताएं निर्धारित नहीं हो पायी थीं । अकोटा की ऋषभ ( ल० छठीं शती ई०) ३, भारत कला भवन वाराणसी (२१२) की नेमि (ल० ७ वीं शती ई०), पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा की शान्ति एवं नेमि ( बी ७५, बी ६५, ८ वीं - ९ वीं शती ई०), धांक की पार्श्व (ल० ७ वीं शती ई०) ४, ओसिया के महावीर मन्दिर की ऋषभ ( ल० ९ वीं शती ई०), तथा अकोटा की अन्य कई ऋषभ एवं पार्श्व ( ७ वीं - ९ वीं शती ई०) ५ मूर्तियों में यही यक्ष-यक्षी युगल निरूपित है (चित्र २६ ) । इनमें यक्ष के हाथों में सामान्यतः फल एवं धन का थैला, और यक्षी के हाथों में आम्रलुम्बि एवं बालक प्रदर्शित हैं ।
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अकोटा से ल० छठीं -सातवीं शती ई० की एक स्वतन्त्र अम्बिका मूर्ति भी मिली है ।" द्विभुजा सिंहवाहिनी अम्बिका के करों मे आम्रलुम्बि एवं फल हैं। एक बालक देवी की गोद में और दूसरा समीप ही खड़ा है । अम्बिका के शीर्ष भाग में सात सर्पफणों वाली पार्श्वनाथ की एक छोटी मूर्ति है, जो यहां अम्बिका के पार्श्व की यक्षी के रूप में निरूपण की सूचक है ।" यक्षराज ( सर्वानुभूति) एवं अम्बिका की लाक्षणिक विशेषताओं का सर्वप्रथम निरूपण बप्पभट्टिसूरि ( ७४३ - ८३८ ई०) की चतुर्विंशतिका में प्राप्त होता है । इस ग्रन्थ में यक्षों से सेव्यमान और गजारूढ़ यक्षराज की आराधना समृद्धि एवं धन के देवता के रूप में की गयी है । यद्यपि यक्षराज के हाथ में धन के थैले का उल्लेख नहीं है, " पर सम्भवतः समृद्धि के देवता के रूप में उल्लेख के कारण ही मूर्तियों में सर्वानुभूति के साथ ल० छठीं सातवीं शती ई० में धन का थैला प्रदर्शित किया गया। यहां यक्षराज पार्श्व से सम्बद्ध है । अम्बा देवी का ध्यान नेमि एवं महावीर दोनों के साथ किया गया है । शीर्ष भाग में आम्रफल के गुच्छकों से शोभित और सिंह पर आरूढ़ अम्बा बालकों से युक्त है ।" अम्बा के कर में आम्रलुम्बि का उल्लेख नहीं है । सम्भवतः इसी कारण प्रारम्भिक मूर्तियों में अम्बिका के साथ आम्रलुम्बि का प्रदर्शन नियमित नहीं था । धरणपट्ट (पद्मावती) का धरणेन्द्र की पत्नी के रूप में उल्लेख है, जो सर्प से युक्त है ।१३ इसका उल्लेख अजितनाथ के साथ किया गया है । हरिवंशपुराण (७८३ ई०) में सिंहवाहिनी अम्बिका और चक्रधारण करनेवाली अप्रतिचक्रा यक्षियों के उल्लेख हैं । 3 महापुराण (पुष्पदन्तकृत, ल० ९६० ई०) में चक्रेश्वरी, अम्बिका, सिद्धायिका, गौरी और गान्धारो देवियों की आराधना की गई है । १४
१ शाह, यू०पी०, 'यक्षज वरशिप इन अर्ली जैन लिट्रेचर', ज०ओ०ई०, खं० ३, अं० १, पृ० ६२
२ ऋषभ, शान्ति, नेमि, पाखं ।
३ शाह, यू०पी, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० २८-२९
४ स्ट०जे०आ०, पृ० १७
५ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ० ३५-३९
६ भारत कला भवन, वाराणसी की मूर्ति में यक्ष के हाथों में अभयमुद्रा - पद्म एवं पात्र हैं । मथुरा संग्रहालय की मूर्ति ( बी ६५ ) में फल के स्थान पर प्याला है ।
७ भारत कला भवन, वाराणसी एवं मथुरा संग्रहालय ( बी ६५ ) की मूर्तियों में आम्रलुम्बि के स्थान पर पुष्प प्रदर्शित है ।
८ शाह, यू०पी० पू०नि०, पृ० ३०-३१
९ ल० १० वीं शती ई० में सर्वानुभूति (या कुबेर या गोमेध) और अम्बिका को नेमिनाथ से सम्बद्ध किया गया ।
१० चतुविशतिका २३.९२, पृ० १५३
११ चतुविशतिका २२.८८, पृ० १४३, २४.९६, पृ० १६२
१२ वही, २.८, पृ० १८
१३ हरिवंशपुराण ६६.४४
१४ शाह, यू० पी०, 'आइकानोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी, दि यक्षी ऑव ऋषभनाथ', ज०ओ० इं०, खं० २०, अं० ३, पृ० ३०४-०५
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