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यक्ष-पक्षी-प्रतिमाविज्ञान ]
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ल० आठवी-नवीं शती ई० में २४ यक्ष-यक्षी युगलों की सूची तैयार हुई। प्रारम्भिकतम सूचियां कहावली (श्वेतांबर), तिलोयपण्णत्ति (दिगंबर)२ एवं प्रवचनसारोद्धार (श्वेतांबर)3 में मिलती हैं । २४ यक्ष-यक्षी युगलों की स्वतन्त्र लाक्षणिक विशेषताएं ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० में निर्धारित हुई। ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की २४ यक्षयक्षी युगलों की सूची प्रारम्भिक सूची से, यक्ष-यक्षियों के नामों के सन्दर्भ में, कुछ भिन्न हैं । तिलोयपण्णत्ति के ब्रह्मेश्वर एवं किंपुरुष यक्षों और वज्रांकुशा, जया एवं सोलसा यक्षियों के नाम परवर्ती सूची में नहीं प्राप्त होते । चक्रेश्वरी एवं अप्रतिचक्रेश्वरी नाम से एक ही यक्षी का तिलोयपण्णत्ति में दो बार क्रमशः पहली और छठीं यक्षियों के रूप में उल्लेख है। प्रवचनसारोद्धार की सूची में मनुज एवं सुरकुमार यक्षों और ज्वाला, श्रावत्सा, प्रवरा एवं अच्छुप्ता यक्षियों के नाम ऐसे हैं जो परवर्ती ग्रन्थों में नहीं मिलते । परवर्ती ग्रन्थों में उनके स्थान पर यक्षेश्वर, कुमार, भृकुटि, मानवी, चण्डा एवं नरदत्ता के नामोल्लेख हैं। प्रवचनसारोद्धार में छठीं यक्षी का नाम अच्यता और बीसवीं यक्षी का अच्छुपा दिया है। परवर्ती ग्रन्थों में छठी यक्षी का नाम तो अच्यता ही है, पर बीसवीं यक्षी का नाम नरदत्ता है।
सर्वप्रथम निर्वाणकलिका (११ वी-१२ वीं शती ई०) में २४ यक्ष-यक्षी युगलों की स्वतन्त्र लाक्षणिक विशेषताएं विवेचित हुई। बारहवीं शती ई० के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (श्वेतांबर), प्रवचनसारोद्धार पर सिद्धसेनसूरि की टीका (श्वेतांबर) एवं प्रतिष्ठासारसंग्रह (दिगंबर) में भो २४ यक्ष-यक्षियों की लाक्षणिक विशेषताएं निरूपित हैं। बारहवीं शतीई० के बाद अन्य कई ग्रन्थों में भी २४ यक्ष-यक्षी युगलों के प्रतिमानिरूपण से सम्बन्धित उल्लेख हैं। इनमें पद्मानन्दमहाकाव्य (या चतुर्विशति जिनचरित्र-श्वेतांबर, १२४१ ई०), मन्त्राधिराजकल्प (श्वेतांबर, १२ वीं-१३ वीं शती ई०), आचारदिनकर (श्वेतांबर, १४११ ई०), प्रतिष्ठासारोद्धार (दिगंबर, १२२८ ई०) एवं प्रतिष्ठातिलकम (नेमिचन्द्र संहिता या अर्हत् प्रतिष्ठासारसंग्रह-दिगंबर, १५४३ ई०) प्रमुख हैं। कुछ जैनेतर ग्रन्थों में भी २४ यक्ष एवं यक्षियों की लाक्षणिक विशेषताएं निरूपित हैं। इनमें अपराजितपुच्छा (दिगंबर परम्परा पर आधारित, ल० १३ वीं शती ई०) एवं रूपमण्डन और देवतामूतिप्रकरण (श्वेतांबर परम्परा पर आधारित, ल० १५ बीं शती ई०) प्रमुख हैं।
उपर्युक्त ग्रन्थों के आधार पर २४ यक्ष एवं यक्षियों की सूचियां निम्नलिखित हैं :
२४-यक्ष-गोमुख, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर (या ईश्वर),५ तुम्बरु (या तुम्बर), कुसुम (या पुष्प), मातंग (या बरनन्दि), विजय (श्याम-दिगंबर), अजित, ब्रह्म, ईश्वर, कुमार, षण्मुख (चतुर्मुख-दिगंबर), पाताल, किन्नर, गरुड, गन्धर्व, यक्षेन्द्र (खेन्द्र-दिगंबर), कुबेर (या यक्षेश), वरुण, भृकुटि, गोमेध, पाव (धरण-दिगंबर) एवं मातंग २४ यक्ष हैं।
१ शाह, यू० पी०, 'इन्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज इन जैन बरशिप', प्रो०ट्रां०ओ०कां०, २० वां अधिवेशन, __भुवनेश्वर, १९५९, पृ० १४७ २ तिलोयपण्णत्ति ४.९३४-३९
३ प्रवचनसारोद्धार ३७५-७८ ४ यह भूल यक्षियों की सूची में दूसरी से सातवीं यक्षियों के नामोल्लेख में महाविद्याओं के नामों के क्रम के अनुकरण __ के कारण हुई है। ५ श्वेतांबर परम्परा में ईश्वर और यक्षेश्वर, तथा दिगंबर परम्परा में केबल यक्षेश्वर नाम से उल्लेख है। ६ प्रवचनसारोद्धार में यक्ष का नाम वामन है। ७ २४ यक्षों की उपर्युक्त सूची को ध्यान से देखने पर एक बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि २४ यक्षों में से
कई को दो बार एक ही नाम या कुछ भिन्न नामों के साथ निरूपित किया गया। इनमें मातंग, ईश्वर, कुमार (या षण्मुख) एवं यक्षेश्वर (या यक्षेन्द्र या यक्षेश) मुख्य हैं। भृकुटि नाम से यक्ष और यक्षी दोनों के उल्लेख हैं।
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