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________________ ૪૨ [ जैन प्रतिमाविज्ञान 1 प्रारम्भ कर दिया कि कहीं धनावह चन्दना से विवाह न कर ले। मूला अब चन्दना को हटाने का उपाय सोचने लगी। एक दिन अपराह्न में धनावह जब बाजार से घर लौटा तो सेबकों के उपस्थित न होने कारण चन्दना ही धनावह का पैर धोने लगी नीचे झुकने के कारण चन्दना का जूड़ा खुल गया और उसकी केशराधि बिखर गई चन्दना के केश कहीं कीचड़ में न सन जायें, इस दृष्टि से सहज वात्सल्य से प्रेरित होकर धनावह ने चन्दना की केशराशि को अपनी यष्टि से ऊपर उठा कर जूड़ा बांध दिया । संयोगवश मूला यह सब देख रही थी । उसने अपने सन्देह को वास्तविकता का रूप दे डाला और चन्दना का सर्वनाश करने पर तुल गई। एक बार जब धनावह कार्यवश किसी दूसरे गांव चला गया था, तब मूला ने चन्दना के बालों को मुड़वा कर उसे शारीरिक यातनाएं दीं और उसे एक कमरे में बन्द कर दिया। तीन दिनों तक चन्दना भूखी-प्यासी उसी कमरे में बन्द रही। वापिस लौटने पर जब धनावह को यह ज्ञात हुआ तो वह रो पड़ा। रसोईघर में जाने पर उसे ग्रुप में कुछ उड़द के बांकलों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। उसने चन्दना से उन्हीं को ग्रहण करने को कहा । उसी समय एक मुनि आया जिसे चन्दना ने उन उड़द के बांकलों की भिक्षा दी। मुनि और कोई नहीं बल्कि स्वयं महावीर थे। उसी क्षण आकाश में महादान महादान की देववाणी हुई उत्पन्न हो गई और इन्द्र ने महावीर की वन्दना के बाद चन्दना का भी प्राप्त हुआ तो चन्दनवाला ने महावीर से दीक्षा ग्रहण की और श्रमणी संघ का संचालन करते हुए निर्वाण प्राप्त किया।" दक्षिण की ओर चन्दनवाला को धनावह का पैर धोते हुए दिखाया गया है। नीचे 'चन्दनबाला' अभिलिखित है। धनावह एक यहि की सहायता से चन्दना की बिखरी केशराशि को उठा रहा है। अगले दृश्य में चन्दनवाला एक कमरे में बन्द है और उसके समीप मुनि की एक आकृति खड़ी है। मुनि स्वयं महावीर हैं। मुनि के एक हाथ में मुखपट्टिका है और दूसरा व्याख्यान मुद्रा में है। चन्दनवाला मुनि को भिक्षा देने की मुद्रा में निरूपित है। दोनों आकृतियों के नीचे क्रमशः 'चन्दनबाला' और 'महावीर' अभिलिखित हैं। आगे नमस्कार - मुद्रा में इन्द्र की एक मूर्ति है। पूर्व की ओर महावीर की एक मूर्ति है। महावीर दो वृक्षों के मध्य ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। नीचे 'समवसरण श्रीमहावीर' अभिलिखित है । आगे महावीर की एक कायोत्सर्ग मूर्ति भी उत्कीर्ण है । चन्दना के मुण्डित मस्तक पर लम्बी केशराशि अभिवादन किया । जब महावीर को केवल -ज्ञान कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के वितान के दृश्य कुछ नवीनताओं के अतिरिक्त महावीर मन्दिर के दृश्यांकन के समान हैं ( चित्र ४९ ) । सम्पूर्ण दृश्यांकन चार आयतों में विभक्त हैं। बाहर से प्रथम आयत में पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की ओर महावीर के पूर्वभवों के विस्तृत अंकन हैं। पूर्व में भरत चक्रवर्ती और उनके पुत्र मारीचि (तीसराभव ) की आकृतियां हैं । मारीचि की साधु के रूप में भी एक आकृति है । दक्षिण की ओर विश्वभूति ( १६वां भव) के जीवन की एक घटना चित्रित है। जैन परम्परा में उल्लेख है कि जैन श्रावक के रूप में विचरण करते हुए विश्वभूति किसी समय मथुरा पहुंचे और वहां एक गाय के धक्के से गिर पड़े। इस पर उनके भाई विशालनन्दिन ने विश्वभूति की शक्ति का परिहास किया। इस बात से विश्वभूति क्रोषित हुए और उन्होंने उस गाय को केवल शृंग से पकड़कर नियंत्रण में कर लिया। दृश्य में विश्वभूति एक गाय का श्रृंग पकड़े हुए हैं। नीचे 'विश्वभूति' उत्कीर्ण है। समीप ही एक अन्य गाय और पुरुष आकृतियां बनी हैं। आगे नयसार के जीव को देवता के रूप में प्रदर्शित किया गया है। देवता के समक्ष हल और मुसल से युक्त एक आकृति खड़ी है। पश्चिम की ओर त्रिपृष्ठ की कथा चित्रित है । एक कायोत्सर्गं आकृति के समीप सिंह और त्रिपृष्ठ की आकृतियां उत्कीर्ण हैं । यह सिंह और त्रिपृष्ठ के युद्ध का चित्रण है। आगे त्रिपृष्ठ और शय्यापालक की मूर्तियां हैं। शय्यापालक नमस्कार - मुद्रा में खड़ा है और त्रिपृष्ठ उसके मस्तक पर प्रहार कर रहे हैं। यह शय्यापालक को दण्डित करने का दृश्य है । समीप ही एक नर्तकी और वाद्यवादन करती दो आकृतियां भी निरूपित हैं। आगे प्रियमित्र चक्रवर्ती ( २२वां भव) की आकृति है । १ वि०श०पु०च० १०.४.५१६-६०० Jain Education International २ प्रि००पु०० १०.१.८६ - १०७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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