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जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
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उत्तर की ओर सिद्धार्थ और त्रिशला की वार्तालाप करती, त्रिशला की शय्या पर अकेली और शिशु के साथ लेटो. महावीर के जन्म-अभिषेक एवं बाल्यकाल की घटनाओं से सम्बन्धित मूर्तियां हैं। बाल्यकाल की घटनाओं के चित्रण में सबसे पहले महावीर को एक पुरुष आकृति को पीठ पर बैठे हुए दिखाया गया है। महावीर की एक भुजा में सम्भवतः चाबुक है। आकृति के नीचे 'वीर' उत्कीर्ण है। जैन परम्परा में उल्लेख है कि एक बार इन्द्र देवताओं से कुमार महावीर की निर्मयता की प्रशंसा कर रहे थे। इस पर एक देवता ने महावीर की शक्ति-परीक्षा लेने का निश्चय किया। देवता महावीर के क्रीड़ा-स्थल पर आया। उस समय महावीर संकुली और तिन्दुसक खेल खेल रहे थे। संकुली खेल में किसी वक्ष विशेष को लक्षित कर बालक उस ओर दौड़ते हैं और जो बालक सबसे पहले उस वृक्ष पर चढ़कर नीचे उतर आता है वह विजयी माना जाता है, और विजेता पराजित बालक के कन्धों पर चढ़कर उस स्थान तक जाता है, जहां से दौड़ प्रारम्भ हुई होती है। देवता विषधर सर्प का स्वरूप धारण कर वृक्ष के तने पर लिपट गया। सभी बालक सर्प से डर गये पर महाबोर ने निःशंक भाव से उस सर्प को पकड़कर रज्जु की तरह एक ओर फेंक दिया। देवता ने बालक का रूप धारण कर दौड़ के खेल में भी भाग लिया, पर महावीर से पराजित हुआ। महावीर नियमानुसार उस देवत। पर आरूढ़ होकर वृक्ष से खेल के मूल स्थान तक आये।' दृश्य में एक बालक की पीठ पर महावीर बैठे हैं। समीप ही एक वृक्ष उत्कीर्ण है जिसके पास महावीर खड़े हैं और एक सर्प को फेंक रहे हैं । नीचे 'वीर' उत्कीर्ण है।
आगे वार्तालाप की मुद्रा में कुमार महावीर और सिद्धार्थ की मूर्तियां हैं। समीप ही महावीर की दीक्षा का दृश्य उत्कीर्ण है। दीक्षा के पूर्व महावीर को दान देते हुए और एक शिविका में बैठकर दीक्षा-स्थल की ओर जाते हए दिखाया गया है। तीसरे आयत में (पूर्व की ओर) महावीर को ध्यानमुद्रा में बैठे और दाहिनी भुजा से केशों का लंचन करते हा दिखाया गया है। दाहिने पावं की इन्द्र को आकृति एक पात्र में लुचित केशों को संचित कर रही है। आगे महावीर की चार कायोत्सर्ग मूर्तियां हैं जो महावीर की तपस्या का चित्रण है। समीप ही कायोत्सर्ग में खड़ी महावीर-मति के शीर्ष भाग में एक चक्र उत्कीर्ण है और उनके जानु के नीचे का भाग नहीं प्रदर्शित है। बायीं ओर दो स्त्री-पुरुष आकृतियां खड़ी हैं। यह संगम देव द्वारा महावीर पर कालचक्र (१८ वां उपसर्ग) चलाये जाने का मूर्त अंकन है। स्मरणीय है कि कालचक्र के प्रभाव से महावीर के घुटनों तक का भाग भूमि में प्रविष्ट हो गया था। इसी कारण मूर्ति में भी महावीर के जानु के नीचे का भाग नहीं उत्कीर्ण किया गया है । बायें कोने पर क्षमायाचना की मुद्रा में संगम देव की मूर्ति है।
दक्षिण की ओर (दाहिने) चन्दनबाला की कथा उत्कीर्ण है। एक मण्डप में चतुर्भुज इन्द्र आसीन हैं। समीप ही महाबोर की कायोत्सर्ग में तपस्यारत एवं मुनिरूप में दण्ड से युक्त मूर्तियां हैं। आगे चन्दनबाला धनावह का पैर धो रही है । धनावह एक यष्टि से चन्दनबाला की बिखरी केशराशि को उठाये है। आकृतियों के नीचे 'श्रेष्ठी' और 'चन्दनबाला' उत्कीर्ण है। चन्दनबाला के समीप श्रेष्ठी-पत्नी मूला आश्चर्य से यह दृश्य देख रही है। आगे चन्दनबाला को एक कमरे में बन्द और महावीर को भिक्षा देते हुए निरूपित किया गया है। आकृतियों के नीचे 'चन्दनबाला' और 'वीर' लिखा है। समीप ही इस महादान पर प्रसन्नता व्यक्त करती हुई आकृतियां अंकित हैं। वितान पर महावीर का समवसरण नही उत्कीर्ण है।
कल्पसत्र के चित्रों में महावीर के पूर्वभवों, पंकल्याणकों, उपसर्गों एवं देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में स्थानांतरण के विस्तृत अंकन हैं। एक चित्र में महावीर सिद्धरूप में प्रदर्शित हैं । सिद्धरूप में महावीर ध्यानमुद्रा में विराजमान और विभिन्न अलंकरणों से युक्त हैं। अगले चित्रों में महावीर के प्रमुख गणधर इन्द्रभूति गौतम और महावीर के निर्वाण के बाद दीपावली का उत्सव मनाने के अंकन हैं।
१ त्रिश०पु०च० १०.२.८८-१२४ ३ ब्राउन, डब्ल्यू०एन०, पू०नि०, पृ० ११-४४
२ हस्तीमल, पू०नि०, पृ० ३८९
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