________________
जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
१३७
गुप्तकाल की महावीर की केवल एक मूर्ति ज्ञात है। ल० छठी शतो ई० की यह मूर्ति वाराणसी से मिली है और भारत कला भवन, वाराणसी (१६१) में संगृहीत है (चित्र ३५)।' महावीर एक ऊंची पीठिका पर ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं और उनके आसन के समक्ष विश्वपद्म उत्कीर्ण है। महावीर चामरधर सेवकों, उड्डीयमान आकृतियों एवं कांतिमण्डल से युक्त हैं। पीठिका के मध्य में धर्मचक्र और उसके दोनों ओर महावीर के सिंह लांछन उत्कीर्ण हैं । पीठिका के छोरों पर दो ध्यानस्थ जिन मूतियां बनी हैं । गुप्त युग में महावीर की दो जीवन्तस्वामी मूर्तियां भी उत्कीर्ण हुईं। ये मूर्तियां अकोटा से मिली हैं। इन श्वेतांबर मूर्तियों में महावीर कायोत्सर्ग में खड़े हैं और मुकुट, हार आदि आभूषणों से अलंकृत हैं (चित्र ३६) । ल. सातवीं शती ई० की दो दिगंबर मूर्तियां धांक (गुजरात) की गुफा में उत्कीर्ण हैं। इनमें महावीर कायोत्सर्ग में खड़े हैं और उनका सिंह लांछन सिंहासन पर बना है। पूर्वमध्ययुगीन मूर्तियां
गुजरात-राजस्थान-इस क्षेत्र से तीन मूर्तियां मिली हैं । दो मूर्तियों में लांछन भी उत्कीर्ण है। दो उदाहरणों में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। एक उदाहरण में यक्ष-यक्षी स्वतन्त्र लक्षणों वाले हैं। १००४ ई० की एक ध्य मूर्ति कटरा (भरतपुर) से मिली है और सम्प्रति राजपूताना संग्रहालय, अजमेर (२७९) में सुरक्षित है। सिंह-लांछन-युक्त इस महावीर मूति के सिंहासन के छोरों पर स्वतन्त्र लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। चामरधरों के समीप कायोत्सर्ग-मुद्रा में दो निर्वस्त्र जिन आकृतियां भी उत्कीर्ण हैं। ११८६ ई० की एक मूर्ति कुम्भारिया के नेमिनाथ मन्दिर की पश्चिमो भित्ति पर है। यहां महावीर ध्यानमुद्रा में सिंहासन पर विराजमान हैं। सिंह लांछन के साथ ही लेख में महावीर का नाम भी उत्कीणं है। यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। पाववर्तो चामरधरों के ऊपर दो छोटी जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं। एक मूर्ति सुपाश्व की है। ११७९ई० की एक मूर्ति कुम्भारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर की देवकूलिका २४ में है । लेख में महावीर का नाम उत्कीर्ण है पर यक्ष-यक्षी अनुपस्थित हैं।
इस क्षेत्र में जीवन्तस्वामी महावीर की भी कई मूर्तियां उत्कीर्ण हुई। राजस्थान के सेवड़ी एवं ओसिया (चित्र 300 से दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की जीवन्तस्वामी मूर्तियां मिली हैं। बारहवीं शती ई० की एक मति सरदार संग्रहालय, जोधपुर में है । सभी उदाहरणों में वस्त्राभूषणों से सज्जित जीवन्तस्वामी महावीर कायोत्सर्ग में खड़े हैं।
___ उत्तरप्रदेश-मध्यप्रदेश राज्य संग्रहालय, लखनऊ में दसवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की पांच महावीर मतियां हैं। तीन उदाहरणों में महावीर ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं। सिंह लांछन सभी में उत्कीर्ण है पर यक्ष-यक्ष एक ही उदाहरण (जे ८०८) में निरूपित हैं। दसवीं शती ई० की इस कायोत्सर्ग मूर्ति में द्विभुज यक्ष-यक्षी सामान्य लक्षणों वाले हैं। १०७७ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (जे ८८०) में लांछन के साथ ही पीठिका-लेख में भी 'वीरनाथ' उत्कीर्ण है। मलनायक के पावों में चामरधरों के स्थान पर दो कायोत्सर्ग जिन मूर्तियां बनी हैं जिनके ऊपर पुनः दो ध्यानस्थ जिन आमूर्तित हैं।
___ अशवखेरा (इटावा) की ११६६ ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (जे ७८२) में सिंहासन नहीं उत्कीर्ण है । पीठिका के मध्य में धर्मचक्र के स्थान पर एक द्विभुजी देवी हाथों में अभयमुद्रा और कलश के साथ आमूर्तित है। मति के दाहिने छोर पर गदा और शृंखला से युक्त द्विभुज क्षेत्रपाल की नग्न आकृति खड़ी है। समीप ही वाहन श्वान् भी उत्कीर्ण है । क्षेत्रपाल
तिवारी, एम०एन०पी०, 'ऐन अन्पब्लिश्ड जिन इमेज इन दि भारत कला भवन, वाराणसी'. वि०ई० ज०.
खं० १३, अं० १-२, पृ० ३७३-७५ २ शाह, यू०पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० २६-२८ ३ संकलिया, एच०डी०, 'दि अलिएस्ट जैन स्कल्पचसं इन काठियावाड़', ज०रा०ए०सो०, जुलाई १९३८, पृ० ४२९ ४ राजपूताना संग्रहालय, अजमेर २७१
१८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org