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जिन-प्रतिमाविज्ञान]
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जीवन दृश्य
शान्ति के जीवनदृश्यों के चित्रण कुम्मारिया के शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों (११वीं शती ई०) तथा विमलवसही की देवकुलिका १२ (१२वीं शती ई०) के वितानों पर मिलते हैं ।'
कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के दूसरे वितान पर शान्ति के जीवनदश्य हैं। शान्ति के पूर्वजन्म की एक कथा के चित्रण के आधार पर ही सम्पूर्ण दृश्यावली की पहचान की गई है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उल्लेख है कि पूर्वभव में शान्ति मेघरथ महाराज थे। एक बार ईशानेन्द्र देवसभा में मेघरथ के धर्माचरणों की प्रशंसा कर रहे थे। इस पर सुरूप नाम के एक देवता ने मेघरथ की परीक्षा लेने का निश्चय किया। पृथ्वी पर आते समय सुरूप ने एक बाज और कपोत को लड़ते हुए देखा । परीक्षा लेने के उद्देश्य से सुरूप कपोत के शरीर में प्रविष्ट हो गया। कपोत रक्षा के लिए आर्तनाद करता हआ मेघरथ की गोद में आ गिरा । मेघरथ ने उसे प्राण रक्षा का वचन दिया। कुछ देर बाद बाज भी वहां पहुंचा और उसने मेघरथ से कहा कि वह क्षुधा से व्याकुल है, इसलिए उसके आहार (कपोत) को वे लौटा दें। पर मेघरथ ने बाज से कपोत के स्थान पर कुछ और ग्रहण करने को कहा। इस पर बाज ने कहा कि यदि उसे कपोत के भार के बराबर मनुष्य का मांस मिल जाय तो उससे वह अपनी क्षुधा शान्त कर लेगा। मेघरथ ने तत्क्षण एक तराजू मंगवाया और अपने शरीर से मांस काट कर उस पर रखने लगे। पर कपोत के भीतर के देवता ने धीरे-धोरे अपना भार बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। अन्त में मेघरथ स्वयं तराजू पर बैठ गये। इस प्रकार मेघरथ को किसी भी प्रकार धर्म से च्यत होते न देखकर सुरूप देव ने अन्त में अपने को प्रकट किया और मेघरथ को आशीर्वाद दिया।
शान्तिनाथ मन्दिर के दृश्य तीन आयतों में विभक्त हैं। बाहर से प्रथम आयत में पश्चिम की ओर सैनिकों एवं संगीतज्ञों से वेष्टित मेघरथ एक ऊंचे आसन पर विराजमान हैं। आगे एक तराजू बनी है जिस पर एक ओर कपोत और दसरी ओर मेघरथ बैठे हैं । दक्षिण की ओर मेघरथ जैन आचार्यों के उपदेशों का श्रवण कर रहे हैं। पूर्व की ओर सम्भवतः मेघरथ की कायोत्सर्ग में तपस्यारत मूर्ति है। आगे वार्तालाप की मुद्रा में शान्ति के माता-पिता की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। समीप ही माता की विश्रामरत मूर्ति एवं १४ शुभ स्वप्न भी अंकित हैं। दूसरे आयत में पूर्व की ओर शान्ति की माता शिश के साथ लेटी हैं। आगे नैगमेषी द्वारा शिशु को मेरु पर्वत पर ले जाने का दृश्य है। दक्षिण की ओर इन्द्र की गोद में बैठे शिश (शान्ति) के जन्म-अभिषेक का दृश्य उत्कीर्ण है। इन्द्र के पावों में चामरधर एवं कलशधारी सेवक चित्रित हैं। तीसरे आयत में चक्रवर्ती पद के कुछ लक्षण, यथा नवनिधि के सूचक नौ घट, खड्ग, छत्र, चक्र आदि उत्कोर्ण हैं। आगे कई आकतियां हैं जिनके समीप चक्रवर्ती शान्ति ऊंचे आसन पर विराजमान हैं। समीप की आकृतियां सम्भवतः अधीनस्थ शासकों की सचक हैं। दाहिनी ओर शान्ति का समवसरण उत्कीर्ण है जिसमें ऊपर की ओर शान्ति की ध्यानस्थ मति है।
कुम्भारिया के महावीर मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के ५वें वितान पर भी शान्ति के जीवनदृश्य अंकित हैं (चित्र २२ दक्षिणार्ध)। सम्पूर्ण दृश्यावली तीन आयतों में विभक्त है । बाहर से प्रथम आयत में दक्षिण को ओर शान्ति के माता-पिता की वार्तालाप में संलग्न आकृतियां हैं। पश्चिम की ओर (बायें से) शान्ति की माता शय्या पर लेटी हैं। आगे १४ मांगलिक स्वप्न और नवजात शिशु के साथ माता की विश्रामरत मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। समीप ही सेविकाओं एवं नैगमेषी की भी मूर्तियां हैं। नीचे 'श्री अचिरादेवी-प्रसूतिगृह-शान्तिनाथ' उत्कीर्ण है। उत्तर-पूर्व के कोने पर शान्ति के जन्माभिषेक का दृश्य है, जिसमें एक शिशु इन्द्र की गोद में बैठा अंकित है। इन्द्र के दोनों पाश्वों में कलशधारी आकृतियां खडी हैं। आगे चक्रवर्ती शान्ति एक ऊँचे आसन पर विराजमान हैं। नीचे 'शान्तिनाथ-चक्रवर्ती-पद' लिखा है। दक्षिणी-पूर्वी कोने पर शान्ति की गज और अश्व पर आरूढ़ कई मूर्तियां हैं जिनके नीचे शान्तिनाथ का नाम भी उत्कीर्ण है। ये आकृतियां
१ लूणवसही की देवकुलिका १४ की शान्तिनाथ मूर्ति के आधार पर वितान के दृश्यों की भी सम्भावित पहचान
शान्ति से की गई है : जयन्तविजय, मुनिश्री, होली आबू, भावनगर, १९५४, पृ० १२२-२३ २ त्रिशपु०च०, खं० ३, गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज १०८, बड़ौदा, १९४९, पृ० २९१-९३
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