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________________ ११० [ जैन प्रतिमाविज्ञान हैं। जाडिन संग्रहालय की एक मूर्ति में द्विभुज यक्ष सर्वानुभूति है, पर यक्षी की पहचान सम्भव नहीं है। परिकर में चार जिन मूर्तियां भी बनी हैं। पभोसा की मृग-लांछन-युक्त एक ध्यानस्थ मूर्ति (११ वीं शती ई०) इलाहाबाद संग्रहालय (५३३) में है (चित्र १९)। मूर्ति में यक्ष-यक्षी रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं। पार्ववर्ती चामरधरों के स्थान पर दो कायोत्सर्ग जिन मूर्तियां बनी हैं । परिकर में दो छोटी जिन मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं । सामान्य मालाधर युगलों के अतिरिक्त ६ अन्य मालाधर भी चित्रित हैं। पधावली एवं अहाड़ (११८० ई०) से दो कायोत्सर्ग मतियां मिली हैं। एक मति (११४६ ई०) धुबेला संग्रहालय में भी है। यहां लेख में शान्ति का नाम उत्कीर्ण है।२ ११७९ ई० की एक कायोत्सर्ग मति बजरंगगढ़ (गुना) से मिली है। इसकी पीठिका पर यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं। १०५३ ई० एवं ११४७ ई० की दो कायोत्सर्ग मूर्तियां मदनपुर से प्राप्त हुई हैं । विश्लेषण-उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश से प्राप्त मूर्तियों में शान्तिनाथ अधिकांशतः कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं। इस क्षेत्र की जिन मूर्तियों में मृग लांछन का नियमित अंकन हुआ है। कुछ उदाहरणों में लेख में भी शान्ति का नाम उत्कीर्ण है। इस क्षेत्र में धर्मचक्र के दोनों ओर मृग लांछन के चित्रण की परम्परा विशेष लोकप्रिय थी। यक्ष-यक्षी अधिकांशतः सर्वानभति एवं अम्बिका, तथा शेष में सामान्य लक्षणों वाले हैं। कुछ उदाहरणों में शान्ति के साथ जटाएं भी प्रदर्शित हैं। बिहार-उड़ीसा-बंगाल-ल. नवीं शती ई० की मृग-लांछन-युक्त एक मूर्ति राजपारा (मिदनापुर) से मिली है। चरंपा से मिली ल० दसवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति उड़ीसा राज्य संग्रहालय, भुवनेश्वर में सुरक्षित है। पीठिका पर यक्ष-यक्षी आमूर्तित हैं । पक्बीरा (पुरुलिया) से ग्यारहवीं शती ई० की मृग-लांछन-युक्त एक कायोत्सर्ग मूर्ति मिली है।" परिकर में अजमुख नैगमेषी एवं अंजलि-मुद्रा में चार स्त्रियां आमूर्तित हैं। सिंहासन के नीचे कलश और शिवलिंग बने हैं। परिकर की नवग्रहों की मूर्तियां खण्डित हैं । छितगिरि (अम्बिकानगर) के मन्दिर में भी शान्ति की एक कायोत्सर्ग मूर्ति है। परिकर में चार छोटी जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। उजेनी (बर्दवान), अलु आरा एवं मानभूम से भी शान्ति की ग्यारहवींबारहवीं शती ई० की कायोत्सर्ग मूतियां मिली हैं। दो ध्यानस्थ मूर्तियां बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं में हैं । बारभुजी गुफा की मूर्ति में यक्षी भी निरूपित है। विश्लेषण-अध्ययन से स्पष्ट है कि बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल की मूर्तिर्यों में भी शान्ति अधिकांशतः कायोत्सर्ग में ही निरूपित हैं। मृग लांछन का चित्रण नियमित था, पर यक्ष-यक्षी का अंकन लोकप्रिय नहीं था। १ चन्द्र, प्रमोद, पू०नि०, पृ० १५८ २ जैन, बालचन्द्र, 'धुबेला संग्रहालय के जैन मूर्ति लेख', अनेकान्त, वर्ष १९, अं० ४, पृ० २४४-४५ ३ जैन, नीरज, 'बजरंगगढ़ का विशद जिनालय', अनेकान्त, वर्ष १८, अं० २, पृ० ६५-६६ ४ कोठिया, दरबारीलाल, 'हमारा प्राचीन विस्मृत वैभव', अनेकान्त, वर्ष १४, अगस्त १९५६, पृ० ३१ ५ गुप्ता, पी०सी० दास, 'आकिअलाजिकल डिस्कवरी इन वेस्ट बंगाल', बुलेटिन ऑव वि डाइरेक्टरेट ऑव आकिअ लाजी, वेस्ट बंगाल, अं० १, १९६३, पृ० १२ ६ दश, एम०पी०, पू०नि०, पृ० ५२ ७ डे, सुधीन, 'टू यूनीक इन्स्क्राइब्ड जैन स्कल्पचसं', जैन जर्नल, खं० ५, अं० १, पृ० २४-२६ ८ गुप्ता, पी०एल०, पू०नि०, पृ० ९०; एण्डरसन, जे०, पू०नि०, पृ० २०१-०२ ९ मित्रा, देवला, पू०नि०, पृ० १३२; कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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