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________________ जिन - प्रतिमाविज्ञान ] १०९ विमलवसही की देवकुलिकाओं (१२, २४, ३० ) में बारहवीं शती ई० की तीन मूर्तियां हैं। सभी के लेखों में शान्तिनाथ का नाम है । सभी उदाहरणों में यक्ष-यक्षी के रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं । लूणवसही की देवकुलिका १४ की मूर्ति (१२३६ ई० ) में भी सर्वानुभूति एवं अम्बिका का ही अंकन है । शान्तिनाथ की एक चौवीसी ( १५१० ई०) भारत कला भवन, वाराणसी (२१७३३) में है (चित्र २१) । विश्लेषण — इस प्रकार स्पष्ट है कि कुछ उदाहरणों (कुम्भारिया, धांक) के अतिरिक्त इस क्षेत्र में लांछन नहीं उत्कीर्ण किया गया है । पर पीठिका - लेखों में शान्ति का नाम उत्कीर्ण है । यक्ष यक्षी सभी उदाहरणों में सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही हैं । उत्तर प्रदेश- मध्यप्रदेश -ल० आठवीं शतीई० की ध्यानमुद्रा में एक मूर्ति मथुरा से मिली है जो सम्प्रति पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा (बी ७५ ) में है । इसमें धर्मचक्र के दोनों ओर मृग लांछन की दो आकृतियां उत्कीर्ण हैं । यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । परिकर में ग्रहों की भी आठ मूर्तियां बनी हैं। इनमें केतु नहीं है । कौशाम्बी से मिली ल०नवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति इलाहाबाद संग्रहालय (५३५ ) में है । इसमें धर्मचक्र के दोनों ओर मृग लांछन उत्कीर्णं है । यक्ष-यक्षी नहीं बने हैं। दसवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (एम ५४ ) ग्यारसपुर के मालादेवी मन्दिर के मण्डप की दक्षिणी रथिका में सुरक्षित है । इसकी पीठिका पर मृग लांछन और चतुर्भुज यक्ष-यक्षी, तथा परिकर में चार जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ल० दसवीं शती ई० की शान्तिनाथ की एक कायोत्सर्गं मूर्ति दुदही (ललितपुर) से मिली है। इसमें जिन निर्वस्त्र हैं और उनका मृग लांछन धर्मचक्र के दोनों ओर उत्कीर्ण है । देवगढ़ में नवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की मृग-लांछन-युक्त ६ मूर्तियां हैं 3 पांच उदाहरणों में शान्ति कायोत्सर्ग में निर्वस्त्र खड़े हैं । मन्दिर १२ के गर्भगृह की नवीं शती ई० की विशाल मूर्ति के अतिरिक्त अन्य सभी उदाहरणों में यक्ष-यक्षी निरूपित हैं। तीन उदाहरणों में द्विभुज यक्ष-यक्षी सामान्य लक्षणों वाले हैं । मन्दिर १२ की पश्चिमी चहारदीवारी की दो मूर्तियों में यक्षी चतुर्भुजा है पर यक्ष केवल एक में ही चतुर्भुज है । मन्दिर १२ ( प्रदक्षिणापथ ) एवं मन्दिर ४ की दो मूर्तियों ( ११वीं शती ई० ) में शान्ति के स्कन्धों पर जटाएं भी प्रदर्शित हैं । मन्दिर १२ (गर्भगृह) एवं साहू जैन संग्रहालय की मूर्तियों में नवग्रहों की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। साहू जैन संग्रहालय की मूर्ति में ग्रहों की मूर्तियां ध्यानमुद्रा में बनी हैं। यहां केतु स्त्री रूप में निरूपित है । मन्दिर १२ की पश्चिमी चहारदीवारी की मूर्ति के परिकर में चार छोटी जिन आकृतियां एवं चार उड्डीयमान मालाधर आमूर्तित हैं । मन्दिर ४ की मूर्ति के परिकर में चार जिन एवं दो घटधारी आकृतियां बनी हैं। मन्दिर १२ की पश्चिमी चहारदीवारी की एक अन्य मूर्ति के परिकर में दस और प्रदक्षिणापथ की मूर्ति में दो जिन आकृतियां उत्कीर्णं हैं । खजुराहो में ग्यारहवीं-बारहवीं शतीई० की मृग-लांछन-युक्त चार मूतियां हैं। दो उदाहरणों में शान्ति कायोत्सर्गं में खड़े हैं । स्थानीय संग्रहालय की एक मूर्ति (के ३९) में चामरधरों के स्थान पर दो कायोत्सर्ग जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । मन्दिर १ की विशाल कायोत्सर्गं मूर्ति (१०२८ ई० ) में चामरधरों के समीप पार्श्वनाथ की दो कायोत्सर्ग मूर्तियां हैं । परिकर में २४ छोटी जिन मूर्तियां भी बनी हैं। सिहासन छोरों पर चतुर्भुज यक्ष-यक्षी हैं। स्थानीय संग्रहालय की एक ध्यानस्थ मूर्ति (के ६३) में स्कन्धों पर जटाएं भी प्रदर्शित हैं। पीठिका छोरों पर द्विभुज यक्ष-यक्षी एवं परिकर में छह जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं । स्थानीय संग्रहालय की एक मूर्ति (के ३९) में यक्ष-यक्षी नहीं हैं, पर पावों में दो जिन मूर्तियां बनी १ चन्द्र, प्रमोद, पू०नि०, पृ० १४३ २ ब्रुन, क्लाज, 'जैन तीर्थंज इन मध्यदेश: दुदही', जैन युग, वर्ष १, नवम्बर १९५८, पृ० ३२-३३ ३ मन्दिर ८ के बरामदे में शान्ति की मूर्ति का एक सिंहासन भी सुरक्षित है। इसमें यक्ष चतुर्भुज है और यक्षी के रूप द्विभुज अम्बिका निरूपित है। यक्ष के करों में गदा, परशु, पद्म एवं फल हैं । ४ साहू जैन संग्रहालय, मन्दिर १२ ( प्रदक्षिणापथ), मन्दिर ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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