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[ जैन प्रतिमाविज्ञान
(१६) शान्तिनाथ जीवनवृत्त
शान्तिनाथ इस अवसपिणी के सोलहवें जिन हैं। हस्तिनापुर के शासक विश्वसेन उनके पिता और अचिरा उनकी माता थीं। जैन परम्परा में उल्लेख है कि शान्तिनाथ के गर्भ में आने के पूर्व हस्तिनापुर नगर में महामारी का रोग फैला था, पर इनके गर्भ में आते ही महामारी का प्रकोप शान्त हो गया। इसी कारण बालक का नाम शान्तिनाथ रखा गया । शान्ति ने २५ हजार वर्षों तक चक्रवर्ती पद से सम्पूर्ण भारत पर शासन किया और उसके बाद दीक्षा ली। एक वर्ष की कठोर तपस्या के बाद शान्ति को हस्तिनापुर के सहस्राम्र उद्यान में नन्दिवृक्ष के नोचे कैवल्य प्राप्त हआ। सम्मेद शिखर इनकी निर्वाण-स्थली है।'
मूर्तियां
शान्ति का लांछन मृग है और यक्ष-यक्षी गरुड (या वाराह) एवं निर्वाणी (या धारिणी) हैं । दिगंबर परम्परा में यक्षी का नाम महामानसी है । मूर्तियों में शान्ति के पारम्परिक यक्ष-यक्षी का अंकन नहीं हुआ है। ल. सातवीं शती ई. से पूर्व की कोई शान्ति मूर्ति नहीं मिली है। शान्ति की मूर्तियों में ल० आठवीं शता ई० में लांछन और यक्ष-यक्षी का निरूपण प्रारम्भ हुआ ।
गुजरात-राजस्थान-ल० सातवीं शती ई० को एक ध्यानस्थ मूर्ति खेड्ब्रह्मा से मिली है। इसमें यक्ष-यक्षी सर्वानुभति एवं अम्बिका हैं। सिंहासन पर धर्मचक्र के दोनों ओर दो मृग उत्कीर्ण हैं जिन्हें यू० पी० शाह ने जिन के लांछन (मृग) का सूचक माना है । सातवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति धांक गुफा में भी है। इसमें सिंहासन के मध्य में मृग लांछन और परिकर में त्रिछत्र एवं चामरधर सेवक आमूर्तित हैं।
कम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर की देवकुलिका १ में ग्यारहवीं शती ई० की एक मूर्ति है । मूर्ति के लेख में शान्तिनाथ का नाम उत्कीर्ण है। यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । मूलनायक के दोनों ओर सुपार्श्व एवं पार्श्व की कायोत्सर्ग मूर्तियां हैं। परिकर में २४ छोटी जिन आकृतियां भी हैं। कुम्मारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर के गूढ़मण्डप में १९१९-२० ई० की एक कायोत्सर्ग मूर्ति है (चित्र २०)। पीठिका पर मृग लांछन और लेख में शान्तिनाथ का नाम
यक्ष-यक्षी नहीं उत्कीर्ण हैं । परिकर में आठ चतुर्भुज देवियां निरूपित हैं । इनमें वज्रांकुशी, मानवी, सर्वास्त्रमहाज्वाला. असा एवं महामानसी महाविद्याओं और शान्तिदेवी की पहचान सम्भव है । ११३८ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति राजपताना संग्रहालय, अजमेर (४६८) में है। लेख में शान्तिनाथ का नाम उत्कीर्ण है। ११६८ ई० को चाहमान काल की एक नोकांस्य मति विक्टोरिया ऐण्ड अलबर्ट संग्रहालय, लन्दन में है। यहां शान्ति अलंकृत आसन पर ध्यानमुद्रा में बैठे हैं।
१ हस्तीमल, पू०नि०, पृ० ११४-१८ २ शाह, यू० पी०, 'ऐन ओल्ड जैन इमेज फ्राम खेड्ब्रह्मा (नार्थ गुजरात)', ज०ओ०ई०, खं० १०, अं० १,
पृ० ६१-६३ ३ यह पहचान तर्कसंगत नहीं है क्योंकि धर्मचक्र के दोनों ओर दो मृगों का उत्कीर्णन गुजरात एवं राजस्थान के
। मूर्तियों को एक सामान्य विशेषता थी। अतः यहां मृगों को लांछन का सूचक मानना उचित नहीं होगा। ४ संकलिया, एच० डी०, 'दि अलिएस्ट जैन स्कल्पचर्स इन काठियावाड़', ज०रा०ए०सो०, जुलाई १९३८,
पृ० ४२८-२९; स्ट००आ०, पृ० १७ ५०क०स्था०, खं० ३, पृ० ५६०-६१
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