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जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
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पहली मूर्ति में अष्टभुज यक्षी भी आमूर्तित है। विमलवसही की देवकुलिका ५० में एक मूर्ति है जिसके ११८८ ई० के लेख में विमल का नाम है तथा पीठिका के बायें छोर पर यक्षी अम्बिका निरूपित है।
(१४) अनन्तनाथ जीवनवृत्त
अनन्तनाथ इस अवसर्पिणो के चौदहवें जिन हैं। अयोध्या के महाराज सिंहसेन उनके पिता और सुयशा (या सर्वयशा) उनकी माता थीं। जैन परम्परा में उल्लेख है कि अनन्त के गर्भकाल में पिता ने भयंकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी, इसी कारण बालक का नाम अनन्त रखा गया ।' राजपद के उपभोग के बाद अनन्त ने प्रव्रज्या ग्रहण की और तीन वर्षों की तपस्या के बाद अयोध्या के सहस्राम्र वन में अशोक (या पोपल) वृक्ष के नीचे केवल-ज्ञान प्राप्त किया । सम्मेद शिखर इनकी निर्वाण-स्थली है। मूर्तियां
श्वेतांबर परम्परा में अनन्त का लांछन श्येन पक्षी और दिगंबर परम्परा में रीछ बताया गया है।३ अनन्त के यक्ष-यक्षी पाताल एवं अंकुशा (या वरभृता) हैं । दिगंबर परम्परा में यक्षी का नाम अनन्तमति है। मूर्तियों में पारम्परिक यक्ष-यक्षी का चित्रण नहीं हुआ है । अनन्त की भी ग्यारहवीं शती ई० से पूर्व की कोई मूर्ति नहीं मिली है। ध्यानस्थ अनन्त की एक मूर्ति बारभुजी गुफा में है। मूर्ति के नीचे अष्टभुज यक्षी भी निरूपित है। एक ध्यानस्थ मूर्ति (१२ वीं शती ई०) विमलवसही की देवकूलिका ३३ में है जिसमें यक्ष-यक्षी रूप में सर्वानुभूति एवं अम्बिका निरूपित हैं।
(१५) धर्मनाथ जीवनवृत्त
धर्मनाथ इस अवसर्पिणी के पन्द्रहवें जिन हैं। रत्नपुर के महाराज मानु उनके पिता और सुव्रता उनकी माता थीं। जैन परम्परा के अनुसार गर्भकाल में माता को धर्मसाधन का दोहद उत्पन्न हुआ, इसी कारण बालक का नाम धर्मनाथ रखा गया। राजपद के उपभोग के बाद धर्म ने दीक्षा ग्रहण की और दो वर्षों की तपस्या के बाद रत्नपुर के उद्यान में दधिपर्ण वृक्ष के नीचे उन्होंने केवल-ज्ञान प्राप्त किया। सम्मेद शिखर इनकी निर्वाण-स्थली है।"
मूर्तियां
धर्मनाथ का लांछन वज्र है और यक्ष-यक्षी किन्नर एवं कन्दर्पा (या मानसी) हैं। मूर्त अंकनों में यक्ष-यक्षी का अंकन नहीं हुआ है। केवल बारभुजी गुफा की मूर्ति में नीचे यक्षी भी आमूर्तित है। ग्यारहवीं शती ई० से पहले की धर्मनाथ की कोई मूर्ति नहीं मिली है। वज्र-लांछन-युक्त दो ध्यानस्थ मूर्तियां बारभुजी एवं विशल गुफाओं में हैं। बारहवीं शती ई० की एक कायोत्सर्ग मूर्ति इन्दौर संग्रहालय में है । विमलवसही की देवकुलिका १ की मूर्ति (१२वीं शती ई०) के लेख में धर्मनाथ का नाम उत्कीर्ण है। मूर्ति में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं।
१ त्रिश.पु०च० ४.४.४७ २ हस्तीमल, पू०नि०, पृ० १०५-०७ ३ भट्टाचार्य, बी० सी०, पू०नि०, पृ० ७० ४ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३१ ५ हस्तीमल, पू०नि०, पृ० १०८-१३ ६ मित्रा, देबला, पू०नि०, पृ० १३२; कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८१ ७ दिस्कालकर, डी० बी०पू०नि०, पृ० ५
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