SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ जैन प्रतिमाविज्ञान उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश - सुपार्श्व की सर्वाधिक मूर्तियां इसी क्षेत्र में उत्कीर्ण हुई। पांच सर्पफणों के छत्र से शोभित और कायोत्सर्ग - मुद्रा में खड़े सुपाखं को दसवीं शती ई० की एक मूर्ति शहडोल से मिली है। दसवीं - ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां क्रमशः मथुरा संग्रहालय ( बी० २६) एवं ग्यारसपुर के बजरामठ (बी० ११) में हैं । ध्यानमुद्रावाली एक मूर्ति बैजनाथ (कांगड़ा) से मिली है । " स्वस्तिक लांछन युक्त मूलनायक के दोनों ओर चन्द्रप्रभ एवं वासुपूज्यकी लांछन युक्त मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । ग्यारहवीं शती ई० की ध्यानमुद्रा में ही एक मूर्ति राज्य संग्रहालय, लखनऊ (जे ९३५) में है जिसके पीठिका छोरों पर तीन सर्पफणों के छत्र वाले यक्ष-यक्षी निरूपित हैं । १०२ देवगढ़ में ग्यारहवीं शती ई० की पांच मूतयां हैं। सभी में पांच सर्पफणों के छत्र से शोभित सुपार्श्व कायोत्सर्गमुद्रा में खड़े हैं। स्वस्तिक लांछन केवल मन्दिर १२ की चहारदीवारी की एक मूर्ति में उत्कीर्ण है । इसी चहारदीवारी की एक अन्य मूर्ति में सुपाश्खं जटाओं से युक्त हैं । यक्ष-यक्षी केवल एक ही मूर्ति ( मन्दिर ४ ) में निरूपित हैं। तीन सर्पफणों की छत्रावली से शोभित द्विभुज यक्ष यक्षी के करों में पुष्प एवं कलश प्रदर्शित हैं । मन्दिर १२ (उत्तरी चहारदीवारी ) की एक मूर्ति के परिकर में द्विभुज अम्बिका की दो मूर्तियां हैं। मन्दिर ४ और मन्दिर १२ की उत्तरी चहारदीवारी के दो उदाहरणों में परिकर में चार जिन एवं दो घटधारी आकृतियां उत्कीर्ण हैं । खजुराहो में बारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां ( मन्दिर ५ एवं २८) हैं। दोनों में सुपाखं पांच सर्पफणों वाले और कायोत्सर्ग-मुद्रा में हैं । दूसरी मूर्ति में पीठिका पर स्वस्तिक लांछन और शान्तिदेवी उत्कीर्ण हैं । बायीं ओर तीन अन्य चतुर्भुज देवियां भी निरूपित हैं । इनकी भुजाओं में कुण्डलित पद्मनाल, पद्म, पद्म एवं फल प्रदर्शित हैं । मन्दिर ५ की मूर्ति में बायीं ओर एक चतुर्भुज देवी आमूर्तित है जिसकी अवशिष्ट वाम भुजाओं में पद्म एवं फल हैं। ऊपर तीन छोटी जिन मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं | विश्लेषण - उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की मूर्तियों के अध्ययन से स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में पांच सर्पफणों के छत्रों का प्रदर्शन नियमित था । सर्प की कुण्डलियां सामान्यतः घुटनों या चरणों तक प्रसारित हैं । सुपार्श्व अधिकांशतः कायोत्सर्ग - मुद्रा में निरूपित हैं । स्वस्तिक लांछन केवल कुछ ही उदाहरणों में है । यक्ष-यक्षी का चित्रण विशेष लोकप्रिय नहीं था । कुछ मूर्तियों में सुपार्श्व से सम्बन्ध प्रदर्शित करने के उद्देश्य से यक्ष-यक्षी के मस्तकों पर भी सर्पफणों के छत्र प्रदर्शित हैं । बिहार - उड़ीसा - बंगाल — बिहार एवं बंगाल से सुपार्श्व की मूर्तियां नहीं ज्ञात हैं। उड़ीसा में बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं में दो मूर्तियां हैं। बारभुजी गुफा की मूर्ति के शीर्षभाग में सर्पफण नहीं प्रदर्शित हैं। पीठिका पर उत्कीर्ण लांछन भी सम्भवतः नन्द्यावर्त है । नीचे यक्षी की मूर्ति उत्कीर्ण है । त्रिशूल गुफा की मूर्ति में भी सपंफण नहीं प्रदर्शित है । पर स्वस्तिक लांछन बना है । " (८) चन्द्रप्रभ जीवनवृत्त चन्द्रप्रभ इस अवसर्पिणी के आठवें जिन | चन्द्रपुरी के शासक महासेन उनके पिता और लक्ष्मणा ( या लक्ष्मी देवी ) उनकी माता थीं । जैन परम्परा के अनुसार गर्भकाल में माता की चन्द्रपान की इच्छा पूर्ण हुई थी और बालक की १ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह ५९.२८ २ वत्स, एम० एस० ए नोट आन टू इमेजेज फ्राम बनीपार महाराज ऐण्ड बैजनाथ', आ०स०ई०ए०रि०, १९२९ - ३०, पृ० २२८ ३ चतुर्भुज शान्तिदेवी अभयमुद्रा, कुण्डलित पद्मनाल, पुस्तक- पद्म एवं जलपात्र से युक्त हैं । शान्तिदेवी के सिर पर सर्पण की छत्रावली भी है । ४ मित्रा, देबला, पू० नि०, पृ० १३१ ५ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy