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जिन - प्रतिमाविज्ञान ]
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अभिनंदन की स्वतन्त्र मूर्तियां केवल देवगढ़, खजुराहो एवं उड़ीसा की नवमुनि, बारभुजी और त्रिशूल गुफाओं में हैं । देवगढ़ से केवल एक मूर्ति ( मन्दिर ९, १० वीं शती ई०) मिली है । कायोत्सर्ग में खड़े अभिनन्दन के आसन पर कपिलांछन एवं सिंहासन - छोरों पर सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी अंकित हैं । यक्ष-यक्षो के करों में अभयमुद्रा और कलश प्रदर्शित हैं । अभिनन्दन के स्कन्धों पर जटाएं प्रदर्शित हैं । खजुराहो से दो मूर्तियां (१० वीं - ११ वीं शती ई० ) मिली हैं । दोनों में जिन ध्यानमुद्रा में विराजमान हैं । पहली मूर्ति पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति पर और दूसरी मन्दिर २९ में हैं । दोनों में कपि लांछन और सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष-यक्षी अभयमुद्रा और फल ( या कलश) के साथ निरूपित हैं । मन्दिर २९ की मूर्ति में चार छोटी जिन मूर्तियां भो उत्कीर्ण हैं। तीन ध्यानस्थ मूर्तियां नवमुनि, बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं में हैं ।' दो मूर्तियों में यक्षियां भी आमूर्तित हैं ।
(५) सुमतिनाथ
जीवनवृत्त
सुमतिनाथ इस अवसर्पिणी के पांचवें जिन हैं । अयोध्या के शासक मेघ ( या मेघप्रभ) उनके पिता और मंगला उनकी माता थीं । मंगला ने गर्भकाल में अपनी सुन्दर मति से जटिलतम समस्याओं का हल प्रस्तुत किया, अतः गर्भस्थ बालक का उसके जन्म के उपरान्त सुमतिनाथ नाम रखा गया । राजपद के उपभोग के बाद सुमति ने दीक्षा ली और २० वर्षों की कठिन तपस्या के बाद अयोध्या के सहस्राम्रवन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त किया । इनकी निर्वाणस्थली सम्मेद शिखर है ।
मूर्तियां
सुमतिनाथ की भी दसवीं शती ई० से पूर्व की एक भी मूर्ति नहीं प्राप्त हुई है । सुमति का लांछन क्रौंच पक्षी, यक्ष तुम्बरु तथा यक्षी महाकाली हैं । दिगंबर परम्परा में यक्षी का नाम नरदत्ता ( या पुरुषदत्ता ) है । मूर्त अंकनों में सुमति के पारम्परिक यक्ष-यक्षी नहीं निरूपित हुए ।
गुजरात-राजस्थान क्षेत्र में आबू और कुम्भारिया से सुमतिनाथ की मूर्तियां मिली हैं । विमलवसही की देवकुलका २७ एवं कुम्भारिया के पार्श्वनाथ मन्दिर की देवकुलिका ५ में बारहवीं शती ई० की दो मूर्तियां हैं। दोनों उदाहरणों
मूलनायक की मूर्तियां नष्ट हैं, पर लेखों में सुमतिनाथ का नाम उत्कीर्ण है । विमलवसही की मूर्ति में मूलनायक के पार्श्वो में दो कायोत्सर्गं और दो ध्यानस्थ जिन मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । कुम्भारिया की मूर्ति में यक्ष-यक्षी नहीं उत्कीर्ण हैं । सिंहासन के मध्य में शान्तिदेवी के स्थान पर दो चामरघरों से सेवित चतुर्भुज महाकाली आमूर्तित है । मूर्ति के तोरण-स्तम्भों पर अप्रतिचक्रा, वज्रांकुशी, वज्रशृंखला, वैरोट्या, रोहिणी, मानवी, सर्वास्त्रमहाज्वाला एवं महामानसी महाविद्याओं तथा सरस्वती एवं कुछ अन्य देवियों की मूर्तियां हैं ।
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उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश के क्षेत्र में केवल खजुराहो एवं महोबा (११५८ ई०) ३ से सुमति की मूर्तियां मिली हैं । खजुराहो में दसवीं-ग्यारहवीं शती ई० की दो ध्यानस्थ मूर्तियां हैं। दोनों उदाहरणों में लांछन और सामान्य लक्षणों वाले द्विभुज यक्ष यक्षी आमूर्तित हैं । यक्ष-यक्षी के करों में अभयमुद्रा ( या पुष्प ) एवं फल प्रदर्शित हैं । पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह की उत्तरी भित्ति की मूर्ति में चामरघरों के समीप दो खड्गासन जिन मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं । मन्दिर ३० की दूसरी मूर्ति के परिकर में चार कायोत्सर्ग जिन मूर्तियां हैं ।
१ कुरेशी, मुहम्मद हमीद, पू०नि०, पृ० २८१
२ हस्तीमल, पु०नि०, पृ० ७५- ७८
३ स्मिथ, वो०ए० तथा ब्लैक, एफ०सी०, 'आब्जरवेशन आन सम चन्देल एन्टिक्विटीज', ज०ए०सो० बं०, खं० ५८, अं० ४, पृ० २८८
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