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________________ ८८ [ जैन प्रतिमाविज्ञान ध्यानस्थ मूर्ति (१० वीं शती ई०) में लांछन नष्ट बारहवीं शती ई० की बड़ौदा संग्रहालय की एक जटाजूट के रूप में आबद्ध है। बयाना ( भरतपुर, राजस्थान) से प्राप्त एक हो गया है पर चतुर्भुज गोमुख एवं चक्रेश्वरी की मूर्तियां सुरक्षित हैं ।" दिगम्बर मूर्ति वृषभ लांछन और परिकर में चार लघु जिन आकृतियों से युक्त है । विश्लेषण — इस प्रकार गुजरात राजस्थान की मूर्तियों में सामान्यतः लटकती जटाओं एवं पीठिका लेखों में उत्कीर्ण नाम के आधार पर ही ऋषभ की पहचान की गई है। वृषभ लांछन एवं गोमुख चक्रेश्वरी केवल कुछ ही उदाहरणों, विशेषकर दिगम्बर मूर्तियों में उत्कीर्ण हैं । इनका उत्कीर्णन ल० आठवीं से दसवीं शती ई० के मध्य प्रारम्भ हुआ । अधिकांश उदाहरणों में यक्ष यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । उत्तरप्रदेश - मध्यप्रदेश — ऋषभ की सर्वाधिक मूर्तियां इसी क्षेत्र में उत्कीर्ण हुई । आठवीं नवीं शती ई० की मूर्तियां मुख्यतः लखनऊ (जे ७८) और मथुरा (१८.१५० - ४) संग्रहालयों एवं देवगढ़ में हैं जिनका कुछ विस्तार से उल्लेख किया जायगा। ग्वालियर स्थित तेली के मन्दिर पर नवीं शती ई० की एक कायोत्सर्ग मूर्ति है जिसके परिकर में २४ जिन-आकृतियां उत्कीर्ण हैं । * ग्यारसपुर के बजरामठ मन्दिर में दसवीं शती ई० की (ध्यानमुद्रा में) दो मूर्तियां हैं। लांछन और यक्ष-यक्षी (गोमुख और चक्रेश्वरी) एक में ही उत्कीर्ण हैं । धर्मचक्र के दोनों ओर दो गज बने हैं, जिनका चित्रण केवल गुजरात एवं राजस्थान की श्वेताम्बर जिन मूर्तियों में ही लोकप्रिय था । पाश्ववर्ती चामरधरों के समीप दो देव आकृतियां हैं जिनके हाथों में अभयमुद्रा, पद्म, पद्म एवं कलश प्रदर्शित हैं । परिकर में दस छोटी जिनमूर्तियां और साथ ही शंख बजाती एवं घट से युक्त मूर्तियां भी उत्कीर्ण हैं | राज्य संग्रहालय, लखनऊ में आठवीं से बारहवीं शती ई० के मध्य की २३ मूर्तियां हैं । १५ उदाहरणों में ऋषभ कायोत्सर्गं में खड़े हैं । केवल एक उदाहरण (जे ९४९) में जिन धोती से युक्त हैं। वृषभ लांछन से युक्त ऋषभ दो, तीन या पांच लटों से शोभित हैं । नौ उदाहरणों में यक्ष-यक्षी नहीं आमूर्तित हैं। एक मूर्ति (जे ९५०, ११ वीं शती ई० ) में (केतु के अतिरिक्त) आठ ग्रहों की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । दुबकुण्ड (ग्वालियर) की एक मूर्ति (जे ८२०, ११ वीं शती ई०) में त्रिछत्र के ऊपर आमलक एवं कलश, और परिकर में २२ छोटी जिन मूर्तियां बनी हैं। इनमें तीन और पांच सर्पफणों से आच्छादित दो जिनों की पहचान पार्श्वं एवं सुपार्श्व से सम्भव है । कंकाली टीले की ल० आठवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति (जे ७८ ) में वृषभ लांछन एवं जटाओं से शोभित ऋषभ के साथ यक्ष यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं । यक्ष-यक्षी की आकृतियों के ऊपर सात सर्पफणों के छत्र से शोभित बलराम एवं किरीटमुकुट से शोभित कृष्ण की स्थानक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । बलराम के तीन हाथों में प्याला, मुसल एवं हल प्रदर्शित हैं और चौथी भुजा जानु पर स्थित है । कृष्ण अभयमुद्रा, ध्वजयुक्त गदा, चक्र एवं शंख से युक्त हैं । ज्ञातव्य है कि सर्वानुभूति यक्ष, अम्बिका यक्षी एवं बलराम कृष्ण नेमिनाथ से सम्बन्धित हैं । अतः ऋषभ के साथ इनका निरूपण परम्परा के विरुद्ध है । लखनऊ संग्रहालय की ६ मूर्तियों में ऋषभ के साथ यक्ष निरूपित है । गोमुख यक्ष केवल तीन ही उदाहरणों में उत्कीर्ण है । शेष में सर्वानुभूति आमूर्तित है । ११ उदाहरणों में यक्षी चक्रेश्वरी है। कुछ में सामान्य लक्षणों वाली यक्षी *(जे ७८९) एवं अम्बिका (जे ७८, एस ९१४) मी निरूपित हैं । ल० दसवीं ग्यारहवीं शती ई० की दो मूर्तियों (१६.०.१७८, जे ९४९) में ऋषभ के साथ चक्रेश्वरी के अतिरिक्त अम्बिका, पद्मावती एवं लक्ष्मी की भी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, जो ऋषभ की विशेष प्रतिष्ठा की सूचक हैं (चित्र ७) । अधिकांश मूर्तियों के परिकर में ४, १४, २०, २२ या २३ १ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह १५७. १२ २ शाह, यू०पी०, 'जैन स्कल्पचर्स इन दि बड़ौदा म्यूजियम', बु०ब० म्यू०, खं० १, भाग २, पृ० २९ ३ ल० नवीं शती ई० की एक ध्यानस्थ मूर्ति कोसम (उ० प्र०) से मिली है (चित्र ६) । ४ अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑव इण्डियन स्टडीज, वाराणसी, चित्र संग्रह ८३.६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002137
Book TitleJain Pratimavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaruti Nandan Prasad Tiwari
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size13 MB
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