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जिन-प्रतिमाविज्ञान ]
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पर द्विभुज सर्वानुभूति एवं अम्बिका आमूर्तित हैं। जिन के साथ यक्ष-यक्षी के चित्रण का यह प्राचीनतम उदाहरण है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गुप्तकाल तक ऋषभ की मूर्तियों में उनके लांछन वृषभ का तो नहीं किन्तु यक्ष-यक्षी का (जो परम्परासम्मत नहीं थे) निरूपण प्रारम्भ हो गया था।
अकोटा से ल० सातवीं शती ई० की भी तीन मूर्तियां मिली हैं। इनमें भी जटाओं से शोभित ऋषभ के साथ यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका ही हैं । सिंहासन केवल एक उदाहरण में उत्कीर्ण है । वसन्तगढ़ (पिण्डवाड़ा, राजस्थान) से भी सातवीं शतो ई० की एक कायोत्सर्ग मति मिली है। पूर्वमध्ययुगीन मूर्तियां
गुजरात-राजस्थान-वसन्तगढ़ की आठवीं शती ई० के प्रारम्भ की एक ध्यानस्थ मूर्ति में सिंहासन के छोरों पर यक्ष-यक्षी नहीं निरूपित हैं।४ ओसिया के महावीर मन्दिर के अर्धमण्डप पर भी ऋषभ की एक ध्यानस्थ मूर्ति है (ल० ९वीं शती ई०) जिसमें द्विभुज सर्वानुभूति एवं अम्बिका आमूर्तित हैं। आठवीं-नवीं शती ई० की एक मूर्ति गोध्रा (गुजरात) से मिली है।५ कायोत्सर्ग में खड़ी मूर्ति निर्वस्त्र है। वृषभ लांछन केवल वसंतगढ़ की एक मूर्ति (८वीं-९वीं शती ई०) में ही प्रदर्शित है। अकोटा से आठवीं से दसवीं शती ई० के मध्य की पांच श्वेतांबर मूर्तियां मिली हैं। इनमें केवल जटाओं के आधार पर ही ऋषभ की पहचान की गई है। इन मूर्तियों में यक्ष-यक्षी सर्वानुभूति एवं अम्बिका हैं। लिल्वादेव (पांचमहल, गुजरात) से दसवीं शती ई० को कई मूर्तियां मिली हैं। एक मूर्ति में सिंहासन पर नवग्रहों एवं अम्बिका यक्षी की मूर्तियां हैं। दूसरी मूर्ति में सिंहासन के छोरों पर सर्वानुभूति एवं अम्बिका और मूलनायक के पार्यों में दो जिन (कायोत्सर्ग-मुद्रा मे) आमूर्तित हैं। दो अन्य मूर्तियों के परिकर में २३ छोटी जिन-आकृतियां उत्कीर्ण हैं। १०९४ ई० की एक मूर्ति पिण्डवाड़ा (सिरोही, राजस्थान) के जैन मन्दिर में सुरक्षित है। इसके परिकर में २३ जिन आकृतियां, गोमुख यक्ष और (चक्रेश्वरी के स्थान पर) अम्बिका यक्षी उत्कीर्ण हैं।"
गंगा गोल्डेन जुबिली संग्रहालय, बीकानेर में ग्यारहवीं-बारहवीं शती ई० की दो जिन मूर्तियां (बी०एम०१६६१ एवं १६६८) सुरक्षित हैं। इनमें ध्यानमुद्रा में आसीन ऋषभ के साथ यक्ष-यक्षी सर्वानूभूति एवं अम्बिका हैं। एक मूर्ति (११४१ ई०) में मलनायक के पाों में दो जिन एवं आसन पर नवग्रह आकृतियां उत्कीर्ण हैं।११ विमलवसही में ऋषभ की चार मतियां हैं । वृषभ लांछन केवल गर्भगृह की मूर्ति में उत्कीर्ण है। अन्य उदाहरणों में पीठिका लेखों में ऋषभ के नाम दिये हैं । गर्भगृह एवं देवकुलिका २५ की दो मूर्तियों में गोमुख-चक्रेश्वरी और देवकुलिका १४ एवं २८ की मतियों में सर्वानुभूति-अम्बिका निरूपित हैं। देवकुलिका १४ एवं २८ की मूर्तियों में मूलनायक के पावों में कायोत्सर्ग और ध्यानमुद्रा में दो जिन मूर्तियां भी हैं।
बोस्टन संग्रहालय में राजस्थान से मिली एक ध्यानस्थ मूर्ति (६४-४८७ : ९ वीं-१० वीं शतो ई०) सुरक्षित है । ऋषभ वृषभ लांछन एवं पारम्परिक यक्ष-यक्षी, गोमुख-चक्रेश्वरी, से युक्त हैं । लटों से शोभित ऋषभ की केशरचना
१ शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, बंबई, १९५९, पृ० २६, २८-२९ २ वही, पृ० ३८, ४१-४३ ३ शाह, यू० पी०, 'ब्रोन्ज होर्ड फ्राम वसन्तगढ़', ललितकला, अं० १-२, पृ० ५६ ४ वही, पृ० ५८ ५ देवकर, वी० एल०, 'ए जैन तीर्थंकर इमेज रीसेन्टली एक्वायर्ड बाइ दि बड़ौदा म्यूजियम', बु०म्यू०पि०गै०, खं० १९, पृ० ३५-३६
६ शाह, यू० पी०, पू०नि०, पृ० ५९ ७ शाह, यू० पी०, अकोटा ब्रोन्जेज, पृ० ४५, ५६-५९ ८राव, एस० आर०, 'जैन ब्रोन्जेज फ्राम लिल्वादेव', ज० इ०म्यू०, खं०११, पृ० ३०-३३ ९ शाह, यू० पी०, 'सेवेन ब्रोन्जेज फ्राम लिल्वा-देव', बु०व०म्यू०, खं० ९, भाग १-२, पृ० ४७-४८ १० शाह, यू०पी०, 'आइकानोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी, दि यक्षी ऑव ऋषभनाथ', ज०ओ०ई०, खं०२०, अं०३, पृ०३०१ ११ श्रीवास्तव, वी०एस०, केटलाग ऐण्ड गाईड टू गंगा गोल्डेन जुबिली म्यूजियम, बीकानेर, बंबई, १९६१, पृ०१७-१९
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