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पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ७९
टीले का जो अवशेष रहा होगा, उसे समवसरण मन्दिर के चबूतरे के निर्माण के समय उपयोग में लिया होगा । वहाँ से उन्हें अनेक बुद्ध प्रतिमायें प्राप्त हुई थीं। इसी कारण उन्होंने इसे बौद्ध स्मारक अथवा स्तूप के रूप में स्वीकार किया है । जे० डी० बेंगलर' ने १८७२-७३ के अपने सर्वेक्षण के समय पुरी के मुख्य मन्दिर का जीर्णोद्धार होते हुए देखा 'था। गुलाबचन्द्र जैन के अनुसार पुरी ग्राम में श्वेताम्बरों का एक बृहद जैन मन्दिर है । पुरी के मन्दिरों की तुलना में पावा के मन्दिर नगण्य 'प्रतीत होते हैं । पावा के सर्वेक्षण के समय बुकनन ने ६०' x १५०' के ' धरातल पर निर्मित इंट एवं मिट्टी के खण्डित अवस्था में प्राप्त टीले को देखा था । इन्होंने टीले में बुद्ध की कुछ कलाकृतियों के होने की सम्भावना व्यक्त की थी। इन भग्नावशेष के दोनों तरफ सरोवर थे । - एक सरोवर के समीप एक लघुसूर्य मन्दिर, जिसमें लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित थी, निर्मित था । इसके १८ वीं शताब्दी के अन्त में निर्मित होने की सम्भावना है ।
डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी के अनुसार पुरी ग्राम में श्वेताम्बरों का एक विशाल जैन मन्दिर है, पुरी के मन्दिरों की तुलना में पावा के मन्दिर नगण्य प्रतीत होते हैं । पावा के विषय में डॉ० चौधरी ने लिखा है, "पावा एक ग्राम का नाम है जो प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध बिहार घोषितराम ( घुसराना ) तथा तिमिरराम ( तितरांवा ) के समीप स्थित है । वहाँ प्राचीनता के द्योतक चिन्ह नहीं प्राप्त होते हैं । यहाँ जैन धर्मावलम्बी कभी भक्तिभाव प्रकट करने भी नहीं गये हैं । महावीर की निर्वाण स्थली से पावा का कोई सम्बन्ध नहीं है । क्योंकि पावा ग्राम की जनश्रुतियों में भी इसकी कोई चर्चा नहीं है |
पुरी के ग्राम मन्दिर की प्राचीनता के विषय में अनेक रोचक तथ्य
१. आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इंडिया रिपोर्ट ८, पृ० ७७-७८, ( १८७२७३ ) ।
- २. डॉ० चौधरी - गुलाबचन्द्र - भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि पावा, पृ०४८ । ३. मान्टगोमरी मार्टिन, एम० आर० हिस्ट्री एन्टी क्विटीज टोपोग्राफी एण्ड स्टैटिस्टिक्स आव ईस्टर्न इंडिया ( पटना-गया) खण्ड १, पृ० १६८-६९ । ४. डॉ० चौधरी, गुलाबचन्द्र, भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि पावा, पृ० ४९ ।
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