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७८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श स्थित था। गुलाबचन्द्र चौधरी के अनुसार नालन्दा जिले में स्थित पावापुरी या पावा नगरी या पावा ग्राम एक न होकर पावा और पूरी दो भिन्न गाँवों का सम्मिलित नाम है। परस्पर वे १.५, २ मील दूरी पर स्थित हैं। जैन धर्मावलम्बी, पोखरपुर एवं दशरथपुर के मध्य के भूभाग को पावापुरी सिद्धक्षेत्र रूप में मानते हैं। पुरी में विशाल मन्दिरों की शृङ्खला दृष्टिगोचर होती है। पुरी के प्राचीन काल से ही ग्राम होने की पुष्टि यहाँ स्थित मुख्य, ग्राम मन्दिर या समवसरण मन्दिर, जहाँ महावीर ने कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् उपदेश दिया था, से होता है। ग्राम मन्दिर के अतिरिक्त जलमन्दिर व श्वेताम्बरों एवं दिगम्बरों के अनेक मन्दिर, यहाँ निर्मित हैं। यात्रियों को सुख-सुविधा के लिए धर्मशालायें भी निर्मित हैं। वर्तमान में यहाँ विद्यमान दो मंजिला ग्राम मन्दिर के ५ भव्यशिखर दो मंजिला भव्य धर्मशाला उसके मुख्य विशाल द्वार, निकटवर्ती अन्य धर्मशालाएँ, दोनशाला, जलमन्दिर एवं निकटवर्ती पर्यटक विभाग कार्यालय, महताव बीबी मन्दिर, दिगम्बर मन्दिर आदि आकर्षक भवन हैं। १८१२ में बुकनन ने इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया। उनके अनुसार पुरी स्थित ग्राम मन्दिर के दोनों आँगन के चारों कोणों पर ४ शिखर निर्मित थे। मुख्य मन्दिर ईंट निर्मित वृत्ताकार चबूतरे के रूप में था, इस पर पलस्तर किया हुआ था। चबूतरे की परिधि निचले भाग की परिधि से बड़ी थी जिस पर प्रस्तर निर्मित महावीर के युगल चरण स्थापित थे। ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां निर्मित थीं। इन मन्दिरों के निर्माण का श्रेय प्रसिद्ध जगत सेठ तथा उनके परिवार वालों को था।
कनिंघम ग्राम मन्दिर या समवसरण मन्दिर को अपूर्व, दर्शनीय एवं निर्माण कला का अनुपम उदाहरण मानते हैं। ब्राडले' ने सम्भावना व्यक्त की है कि पुरी के दक्षिण में सरोवर के निकट गुम्बदाकार प्राचीन
१. डॉ० चौधरी, गुलाबचन्द्र, भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावा, पृ०
४८, गोरखपुर १९७३ । २. मान्टगोमरी मार्टिन, एम० आर०, हिस्ट्री एन्टीक्विटीज टोपोग्राफी एण्ड
स्टैटिस्टिक्स आव ईस्टर्न इंडिया, ( पटना-गया ) खण्ड १, पृ० १६८-६९ । ३. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इंडिया रिपोर्ट, जिल्द--१,
पृ० २८ । ४. जर्नल आव एसियाटिक सोसायटी आव बेंगाल १८७२ पृ० २९९ ।
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