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६४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा एक विमर्श
२. मयूर (मौर्य) से उनका सम्बन्ध था । ३. मझौली उनकी राजधानी थी ।
मत है कि मल्लों का
मल्ल जाति के विषय में काशी प्रसाद जायसवाल' का मौर्यों के समय में या इसके कुछ पीछे गणजाति के रूप में तिरोभाव हो गया था, यद्यपि ग्यारहवीं शताब्दी तथा इसके बाद तक तिरहुत और नेपाल में व्यक्तिगत मल्ल परिवारों का उदय होता रहा है । मल्लों के वर्तमान प्रतिनिधि गोरखपुर और आजमगढ़ जिलों में मल्ल जाति के लोग हैं । हरनन्दन पाण्डेय का कथन है कि पावा (नगरी) कुशीनगर के बहुत पास स्थित थी । आज भी इस क्षेत्र में रहने वालों का एक भाग अपने को मल्ल कहता है हिन्दू समाज में उन्हें सैंथवार कहा जाता है, उनका समाज में स्थान आर्थिक समृद्धि एवं स्थानीय प्रभाव पर अवलम्बित है। उनमें से कुछ तो जाति क्रम में क्षत्रियों के बाद माने जाते हैं । पड़रौना तहसील में सैंथवारों के सो गाँव हैं । वे आर्य पूर्वजों से उत्पन्न हुए समझे जाते हैं । ऐसा अनुमान है कि सैंथावरों का यहाँ आगमन आजमगढ़ जनपद के लखनौर परगना से हुआ था, जहाँ पर उनके परिवार वाले अब भी बड़ी संख्या में निवास करते हैं और जो अपने को मल्ल सम्बोधित करते हैं । एक मान्यता यह भी है कि ये हुमायूँ के शासन काल में मझौली के राज दरबार में सैंथवार सैनिक के रूप में इलाहाबाद से आये हुए थे । उनके वंशज राजपूत थे तथा वे मल्ल उपाधि धारण किये. हुए । उच्च वर्ग के सैंथवारों को अब भी मल्ल सम्बोधित किया जाता है । वे क्षत्रिय होने का दावा करते हैं जिनको स्थानीय उच्च वर्ग के हिन्दू अनुचित मानते हैं । निष्कर्ष यह है कि सैंथवारों के पूर्वज सैनिक रहे हैं । क्षत्रियों से उत्पत्ति का दावा करते हैं तथा अपने को मल्ल सम्बोधित करते हैं । उनमें से अधिकांश ( धार्मिक उदासीनता के कारण ) द्विजाद्योचित संस्कार नहीं करते हैं । उपर्युक्त तथ्य आधुनिक मल्लों एवं (बौद्ध धर्म से प्रभावित) प्राचीन प्रसिद्ध मल्लों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध के द्योतक हैं । राजबली पाण्डेय के अनुसार 'सैंथवार' शब्द प्राचीन 'संस्थागार' का प्राकृत रूप है । संस्थागार गणजातियों का सभाभवन था । ये जातियाँ गणतन्त्र के टूट जाने पर भी, बौद्ध संघ के प्रभाव से (बौद्ध संघ का संचा
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१. हि० पो० प्रथम भाग, पृ० ५० ।
२. पाण्डेय हरनन्दन, जर्नल आफ बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, खण्ड ६, भाग २, पृ० २६२-२६५ ।
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