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मल्लराष्ट्र : ६३
रहते हुए भी अपनी कुशलता, राजनैतिक सूझ-बूझ एवं वाक्पटुता के कारण उनसे मधुर सम्बन्ध स्थापित कर अपना अस्तित्व सुरक्षित रक्खा था, किन्तु शुग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र के शासन काल में उसका पतन हो गया।
किसी भी राष्ट्र के लोप हो जाने के कारण उसकी प्रमुख जाति की महत्ता भले ही घट जाय, किन्तु उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता है। विशाल मल्ल राज्य का समय-समय पर विस्तार एवं संकुचन होता रहा, अन्ततोगत्वा उसका अस्तित्व समाप्त हो गया। लेकिन मल्ल जाति अब भी वर्तमान है।
कालांतर में मल्ल जाति की अनेक शाखायें विकसित हुई हैं, जिसमें मझौली के मल्ल प्रमुख हैं। इनका सम्बन्ध विसेन वंश से है। विसेन वंश की उत्पत्ति के विषय में इतिहास से ज्ञात होता है कि विक्रम से ३०० वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में मौर्य और मल्ल दो राष्ट्र थे। मौर्य साम्राज्य के उदय से मौर्य गणतन्त्र उसमें विलीन हो गया, किन्तु मल्लराष्ट्र ने मौर्य साम्राज्य के अधीन रहकर भी अपने अस्तित्व को बचाये रक्खा । मौर्यों में बहुत से क्षत्रियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण नहीं किया था। चन्द्रगुप्त भी बौद्ध धर्मावलम्बी नहीं था। उस समय तक मौर्यों में एकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की प्रवृत्ति उत्पन्न हो चुकी थी। मल्लों पर भी इसका प्रभाव पड़ा था। जिसके फलस्वरूप विशाल मल्लराष्ट्र के दक्षिणी भाग, मझौली में, जो देवरिया जनपद के दक्षिणी छोर पर, देवरिया से दक्षिण-पूर्व में ३५ कि० मी० की दूरी पर स्थित है, एक छोटे राजवंश की स्थापना हुई थी। ऐसा ज्ञात होता है कि अमक वैदिक धर्मावलम्बी मौर्य का विवाह मझौली की मल्ल राजकुमारी के साथ हुआ था, जिससे उत्पन्न विश्वसेन इस राजवंश के प्रथम पुरुष थे, किन्तु इसके ननिहाल में रहने के कारण इसके अभिजन अपने को विसेन सम्बोधित करने लगे। इस प्रकार मल्लों के मझौली राज्य में विसेन वंश की स्थापना हुई। विसेन क्षत्रियों के विषय में डॉ० राज. बली पाण्डेय का मत है कि मल्ल एवं मौर्यों के मिश्रण से उत्पन्न हई नवीन राजवंशकी क्षत्रिय जाति की शाखा को विसेन सम्बोधित किया जाने लगा । मझौली के विसेन (मल्ल) राजवंश के विषय में वे इस निष्कर्ष पर पहँचते हैं कि :
१. मुख्य राजवंश की मल्ल उपाधि थी। १. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद की क्षत्रिय जातियों का इतिहास,
पृ० १४५-१४६ ।
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