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________________ • ६२: महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श मल्लराष्ट्र के लिए मल्लक का उल्लेख ('मल्लक' में 'क' लघुवाचक प्रत्यय) सम्भवतः इस तथ्य का द्योतक है कि मल्लराष्ट्र की शक्ति पहले से क्षीण हो गई थी, फिर भी उसका स्वतन्त्र अस्तित्व बना हुआ था । इससे प्रतीत होता है कि मौर्यकाल में मल्लराष्ट्र के शासनाध्यक्ष अपनी कुशलता एवं राजनैतिक प्रवीणता के कारण मगध सम्राट् के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित किये हुए थे । सम्राट् अशोक का बुद्ध की परि निर्वाण भूमि कुशीनगर में आगमन मल्लराष्ट्र से मित्रवत् सम्बन्ध का परिचायक है । सम्राट् अशोक के पश्चात् मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था शिथिल पड़ने लगी । मोर्य वंश के अन्तिम काल में देश की अव्यवस्था के कारण पुनः यूनानियों (बात्रियों) के आक्रमण की आशंका बढ़ गई थी । निर्बल तथा प्रजापालन में अक्षम अन्तिम मौर्य राजा बृहद्रथ को उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने शासनच्युत कर बागडोर अपने हाथ में ली। इस प्रकार शुंग-युग का आरम्भ हुआ । पुष्यमित्र वैदिक धर्मं का प्रबल समर्थक तथा बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी था, इसकी धार्मिक कट्टरता के कारण ही उसके शासन काल में मल्लराष्ट्र का अस्तित्व सदैव के लिए समाप्त हो गया । इसके पश्चात् मल्लराष्ट्र या गणतन्त्र की चर्चा कहीं प्राप्त नहीं होती है । शुंगों के समकालीन पातंजल 'महाभाष्य' में जहाँ अनेक प्रदेशों एवं राज्यों का उल्लेख है, वहाँ मल्लराष्ट्र अथवा गणतन्त्र की कहीं भी चर्चा नहीं है । शुंग शासन काल में लिखित मनुस्मृति में मल्लों के विषय में उल्लेख है : : झल्लो मल्लश्च राजन्याद व्रात्यन्निच्छिविखेच । नटश्च करणश्चैव खसो द्रविड एव च ॥' व्रात्य (वैदिक संस्कार से च्युत) क्षत्रिय एवं सवर्ण स्त्रियों से झल्ल, मल्ल, निच्छवि ( लिच्छवि), नटकरण, खस, द्रविड़ आदि जातियाँ उत्पन्न हुईं। मनुस्मृति के उपर्युक्त विवरण से मल्लों के विषय में स्पष्ट है कि शुग-युग में वैदिक धर्म के व्यापक प्रचार के कारण ही बौद्ध धर्मावलम्बी मल्लों को वैदिक संस्कार से च्युत घोषित कर वर्णसंकर जाति (निम्नश्रेणी) में स्थान दिया गया था, जो उचित प्रतीत नहीं होता है । उपरोक्त अध्ययन से ज्ञात होता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् मल्ल गणतन्त्र ने नागवंशी एवं मौर्यवंशी सम्राटों के अधीनस्थ १. मनुस्मृति, १० / २२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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