SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मल्लराष्ट्र : ६१ एकच्छत्र राजा होगा । वह अनुल्लंधित शासन होकर विन्ध्य और हिमालय के बीच सम्पूर्ण पृथ्वी पर शासन करेगा। उपर्युक्त विजित राजाओं की सूची में 'ऐक्ष्वाकान्' अर्थात् इक्ष्वाकु वंश के अन्तर्गत शाक्य, मौर्य एवं मल्ल सम्मिलित रहे हैं। इस सूची में नागवंशीय कोलियों का कहीं स्वतन्त्र उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, निःसंदेह वे 'अन्य राज्यों में सम्मिलित रहे हैं । इससे ज्ञात होता है कि मगध सम्राट महापद्म ने इस जनपद पर आक्रमण किया था, जिसके परिणाम स्वरूप शाक्य एवं कोलिय गणतन्त्र का राजनैतिक अस्तित्व सदा के लिए नष्ट हो गया और इसी कारण उत्तरवर्ती ग्रन्थों से इन राष्ट्रों की कोई सूचना प्राप्त नहीं होती है। किन्तु मौर्य साम्राज्य के उदय के समय इन दोनों राज्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मल्ल एवं मौर्य गणतन्त्र मगध की आधीनता स्वीकार कर अपनी स्वतन्त्र सत्ता का भोग करते रहे हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मौर्य शासन काल में भी मल्लराष्ट्र का अस्तित्व किसी न किसी रूप में अवश्य रहा है। कौटिल्य अर्थशास्त्र' से मौर्यकालीन भारतवर्ष की शासन प्रणाली के सम्बन्ध में सूचनायें प्राप्त होती हैं। मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त ने सभी एकतांत्रिक (राजाओं द्वारा शासित) राज्यों को समूल नष्ट कर दिया तथा उत्तर भारत के गणतंत्रों को अधीन कर लिया था, लेकिन उनकी स्वतन्त्र सत्ता बनी रही। मौर्य कालीन गणतन्त्रों की निम्नलिखित सूची में मल्लक गणतन्त्र का भी. उल्लेख है। १. काम्भोज २. सुराष्ट्र ७. पान्चाल ३. क्षत्रिय ८. मल्लक ४. मद्रक ९. लिच्छवि ५. कुकुर १०. वज्जि उपर्युक्त गणतन्त्रों की सूची के प्रथम तीन भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर भाग तथा चौथे से सात पूर्वी पंजाब एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गणतंत्र थे। बिहार में लिच्छवि एवं वृज्जि (वज्जि) गणतन्त्र का अस्तित्व बना रहा तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में केवल मल्लराष्ट्र ही शेष रह गया था। सूची में, १. कौटिल्य, अर्थशास्त्र ११/१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy